150 सालों से खामोश रहने के बाद, भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी एक बार फिर लावा उगलने लगा है। अंडमान और निकोबार के बैरन द्वीप में स्थित ज्वालामुखी राजधानी पोर्ट ब्लेयर से 140 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में है।
उल्लेखनीय है कि करीब डेढ़ सौ साल तक शांत रहने के बाद ये ज्वालामुखी 1991 में फिर सक्रिय हो गया था। उसके बाद से ही इसमें हलचल बनी है मगर इस बार लावा उगलने से वैज्ञानिकों में चिंता है।
पिछले महीने 23 जनवरी को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्था के वैज्ञानिकों की टीम ज्वालामुखी के पास समुद्र तल से नमूने इकट्ठे करने गई थी। इसी दौरान ज्वालामुखी से लावा और धुआं निकलना शुरू हो गया। इसके बाद टीम के सदस्य ज्वालामुखी के करीब गए तो उन्होंने पाया कि ज्वालामुखी करीब 10 मिनट तक फूटता रहा।
वैसे तो दिन के वक्त इससे सिर्फ राख निकलती देखी गई जबकि सूरज ढलने के बाद लावा भी दिखाई देने लगा। तीन दिन बाद वैज्ञानिकों का एक और दल बैरन द्वीप के पास गया और ज्वालामुखी के व्यवहार पर नजर रखी। हालांकि ज्वालामुखी द्वीप जाने में जोखिम के कारण वैज्ञानिक द्वीप को 1 किलोमीटर दूर से ही देख पाए। वैज्ञानिकों ने यहां जो सैंपल इकट्ठे किये हैं वो इस ज्वालामुखी के इतिहास पर रोशनी डालने में कारगर साबित होंगे।
वैसे तो अंडमान बेसिन को भूगर्भीय गतिविधियों के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि इस इलाके में समुद्र की गहराइयों में कई और भी ज्वालामुखी छिपे हैं। सुरक्षा के लिहाज से बैरन द्वीप में कोई आबादी नहीं है। बैरन का शाब्दिक अर्थ भी वीरान ही होता है। इस द्वीप के उत्तरी हिस्से में एक भी पेड़-पौधे भी नहीं है। इस वजह से भारत के नागरिक अंडमान-निकोबार के वन विभाग से खास इजाजत लेने के बाद ही द्वीप का दौरा कर सकते हैं।