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कुमारी पूजा के लिए हजारों भक्त पहुंचे बेलूर मठ

देश-विदेश से माता के भक्त देवी के रूप में कुमारी कन्या की पूजा के लिए बेलूर मठ पहुंचे हैं। दुर्गापूजा का आनंदोत्सव रविवार को महाष्टमी के दिन चरम पर पहुंच गया है। बेलूर में ही रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का वैश्विक मुख्यालय है।belur-math-kolkata-1

पूरे पश्चिम बंगाल का वातावरण भक्ति के आनंद में डूबा है। भक्तगण माता दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए अपने-अपने सबसे अच्छे परिधानों में सज धज कर पहुंच रहे हैं। वातावरण में ढोल और घंटियों की आवाजें गूंज रही हैं और श्रद्धा के दीपक जगमगा रहे हैं।

सोमवार को महानवमी है, जिसका इंतजार है। वह श्रद्धा और भक्ति का एक दूसरे प्रकार का उन्मादी क्षण होता है। पूर्वी भारत के इस महानगर के निवासी बड़ी संख्या में सड़कों पर उमड़ आते हैं और पूर्वी भारत के इस सर्वाधिक मशहूर महोत्सव के हरेक क्षण का मजा लेते हैं। कभी-कभार होने वाली बारिश के बावजूद उत्साह चरम पर है।

पूजा का अनुष्ठान सुबह कुमारी पूजा से शुरू हुआ जो नारीत्व के साहस का अनुष्ठान है। कुमारी पूजा में केवल उन बच्चियों की पूजा की जाती है जो रजस्वला नहीं हुई होती हैं।

बेलूर मठ हावड़ा जिले में है जो यहां से 10 किलोमीटर है। वहां पिछले साल की तरह ही इस साल भी काफी भीड़ देखी गई।

कुमारी पूजा इस मठ में स्वामी विवेकानंद ने 1901 में शुरू की थी। इसका मकसद महिलाओं के महत्व का उल्लेख करना था।

लड़की को उस शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है जो धरती पर सृजन, पालन और विनाश को नियंत्रित करती है।

तड़के पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के बाद कुमारी को लाल साड़ी पहना कर और फूलों और गहनों से सजाकर ललाट पर सिंदूर का तिलक लगाया गया।

कुमारी को जब तक पूजा समाप्त नहीं हो जाती तब तक उपवास करना होता है। कुमारी को माता दुर्गा की प्रतिमा के पहले सुसज्जित आसन पर बैठाया जाता है और पुजारी पृष्ठभूमि से आती परंपरागत ढोल और घंटी की आवाज के बीच मंत्रोच्चार करते हैं।

पुजारी के अनुसार, पूजा के बाद देवी का ईश्वरत्व कुमारी में चला आता है।

युवाओं के बीच सेल्फी लेने की होड़ लगी है। वे अष्टमी के दुर्गापूजा के अनुष्ठान के हर पल की तस्वीर लेने में व्यस्त हैं।

हालांकि इसकी संख्या कम है लेकिन बेलूर मठ में बहुत सारे मोबाइल के फ्लैश भी चमकते नजर आ रहे हैं और यहां की तस्वीरें फेसबुक पर डालकर उसकी जांच करते नजर आ रहे हैं। सौ साल से भी अधिक समय से चली आ रही इस पूजा की परंपरा को सोशल मीडिया पर भी साझा किया जा रहा है।

पांच दिवसीय यह समारोह दुनिया के इस हिस्से का सबसे बड़ा समारोह है। यहां तक कि अखबार भी बंद हैं पूरे दिन और रात सड़कें लोगों की भीड़ से जाम पड़ी हैं।

हिंदू मान्यता के अनुसार, दशमी के दिन पूरे देश में दशहरा मनाया जाता है।

परंपरागत रूप से सभी पंडालों में देवी दुर्गा की मूर्ति रखी जाती है जिसमें उन्हें सिंह पर सवार होकर दस भुजाओं में हथियार लिए महिषासुर राक्षस का वध करते दर्शाया गया होता है।