कोरोना का वायरस फेफड़े को संक्रमित करने के साथ ही खून को गाढ़ा कर रहा है। संक्रमितों में डी-डाइमर प्रोटीन तेजी से बढ़ रहा है। इससे खून का थक्का बन रहा है। खून गाढ़ा होने पर बन रहे थक्के दिल का दौरा पड़ने की वजह बन सकते हैं। इससे ब्रेन स्ट्रोक व फेफड़े की धमनी में अवरोध समेत कई बीमारियां हो सकती हैं। गंभीर बात यह है कि संक्रमितों के साथ ही संक्रमण से उबर चुके लोगों के खून में भी डी-डाइमर बढ़ा हुआ मिला है।
गोरखपुर में कोरोना इन दिनों कहर बरपा रहा है। वायरस संक्रमण शरीर के अंदर उथल-पुथल कर रहा है। फेफड़े के बाद इसका सबसे ज्यादा असर खून पर हो रहा है। आमतौर पर होम आइसोलेशन में रहने वाले संक्रमित इसको लेकर अनजान होते हैं। वह खून की जांच नहीं कराते। ऐसे में निगेटिव होने बाद भी उनका ऑक्सीजन लेवल गिर जा रहा है।
असर छोड़ जाता है कोरोना
फिजीशियन डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि संक्रमण खत्म होते ही ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि वे पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। यह सही नहीं है। वायरस शरीर में कई दुष्प्रभाव छोड़ता है। यह खून को गाढ़ा कर देता है। इससे खून में थक्के बनते हैं। जो दिल का दौरा, लकवा, फेफड़े की धमनी में अवरोध समेत कई बीमारियां हो सकती हैं। थक्का बनने की पहचान खून में डी-डाइमर नामक प्रोटीन बढ़ने से होती है।
होम आइसोलेशन में 30 फीसदी मरीजों को होती है दरकार
जिला अस्पताल के फिजीशियन डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि मध्यम या गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित होने वाले 20 से 30 फीसद मरीजों में स्वस्थ होने के बाद भी डी-डाइमर प्रोटीन तय मात्रा से पांच गुना तक ज्यादा मिल रहा है। होम आइसोलेशन में रहने वाले 30 फीसदी संक्रमितों में ऐसा मिल रहा है। ओपीडी में हर दिन एक या दो मरीज इस तरह के आ रहे हैं।
निगेटिव मरीजों में बढ़ा मिला डी-डाइमर
चेस्ट फिजीशियन डॉ. ऋषभ गोयल ने बताया कि कई ऐसे मरीज भी मिल रहे हैं, जिन्हें कोई लक्षण नहीं हैं। फेफड़े का सीटी स्कैन सामान्य मिला लेकिन डी-डाइमर तीन से पांच गुना तक बढ़ा रहता है। ज्यादा थकान, मांसपेशियों में दर्द और सांस फूलना डी-डाइमर बढ़ने का संकेत हो सकता है। इलाज के लिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं।
बाजार से गायब है दवाएं
कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने के कारण खून पतला की दवाओं की मांग बढ़ गई है। इन दवाओं की बाजार में किल्लत हो गई है। गंभीर रूप से बीमार मरीजों को खून पतला करने के लिए इनोक्सापैरिन सोडियम इंजेक्शन के तौर पर दिया जाता है। यह बाजार में बेहद कम हो गया है। आलम यह है कि कोविड अस्पताल संचालकों को मांग के सापेक्ष महज 20 फीसदी आपूर्ति हो पा रही है। कोविड अस्पताल संचालक डॉक्टर शिव शंकर शाही ने बताया कि इस इंजेक्शन की 100 वायल की दरकार थी। मिली सिर्फ 20 वायल।
इनोक्सापैरिन सोडियम इंजेक्शन की मांग पांच से सात गुना तक बढ़ गई है। दवा की अचानक मांग बढ़ने से कुछ किल्लत हो गई है। हालांकि बाजार में दवाएं मौजूद हैं। अस्पतालों को जरूरत के मुताबिक दवाएं दी जा रही हैं। किसी को ज्यादा मात्रा में स्टोर करने के लिए नहीं दिया जा रहा है।