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ब्लैक फंगस कर रहा वार, मेरठ में पैर रहा पसार, अब तक मिल चुके हैं20 मरीज, तीन की हुई मौत

कोविड-19 के साथ साथ अब धीरे-धीरे ब्लैक फंगस यानी म्यूकर माइकोसिस भी मेरठ में पैर पसारने लगा है। अब तक 20 केस मिल चुके हैं और तीन की मौत हो चुकी है। 

मेडिकल के कोविड प्रभारी डॉ. सुधीर राठी ने बताया कि जिन लोगों को कोविड-19 दौरान स्ट्रॉयड दवाएं जैसे डेक्सामेथासोन मिथाइलप्रेडनीसोलोन आदि का सेवन कराया गया है या काफी दिन तक ऑक्सीजन पर रखना पड़ा है या आईसीयू में रखा गया है, ऐसे मरीजों को ब्लैक फंगस का इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज के मरीज, कैंसर और किडनी इत्यादि के मरीजों में खतरा ज्यादा है।

आनंद अस्पताल में इन मरीजों का इलाज करने वाले डॉ. पुनीत भार्गव ने बताया कि कोरोना होने पर स्ट्रॉयड का प्रयोग बिना डॉक्टर की सलाह के न करें। कोरोना होते ही तुरंत स्ट्रॉयड शुरू न करें। यह बीमारी शुरू होने के 7 दिनों बाद डॉक्टर लक्षण देखकर शुरू करते हैं।

अपनी देखरेख में 5 से 10 दिनों के लिए देते हैं और कोरोना के हर मरीज को स्ट्रॉयड नहीं दिए जाते हैं। इसमें थोड़ी सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। अगर हम शुरुआत में ही खांसी, जुकाम और बुखार जैसे लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह ले लें तो शुरुआती लक्षणों में ही कोरोना कंट्रोल हो जाता है।

मरीज किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी से बच जाता है। लिहाजा शुरुआती लक्षणों में ही डरने और छिपाने के बजाय तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। 
संक्रमित मरीजों के लक्षण
 मरीज की नाक से काला कफ जैसा तरल पदार्थ निकलता है।
 आंख, नाक के पास लालिमा के साथ दर्द होता है।
 मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है।
 खून की उल्टी होने के साथ सिर दर्द और बुखार होता है।
 मरीज को चेहरे में दर्द और सूजन का एहसास होता है।
 दांतों और जबड़ों में ताकत कम महसूस होने लगती है।
 कई मरीजों को धुंधला दिखाई देता है।
 मरीजों को सीने में दर्द होता है।
 स्थिति बेहद खराब होने की स्थिति में मरीज बेहोश हो जाता है।

यह बरतें सावधानी
 धूल भरे निर्माण स्थलों पर जाने पर मास्क का प्रयोग करें।
 मिट्टी (बागवानी), काई या खाद को संभालते समय जूते, लंबी पतलून, लंबी बांह की कमीज और दस्ताने पहनें।
 साफ-सफाई व व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें।
 कोविड संक्रमित मरीज के डिस्चार्ज के बाद और मधुमेह रोगियों में भी रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करें।
 स्टेरॉयड का सही समय, सही खुराक और अवधि का विशेष ध्यान दें।
 ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए स्वच्छ, जीवाणु रहित पानी का उपयोग करें।
 फंगल का पता लगाने के लिए जांच कराने में संकोच न करें।
 नल के पानी और मिनरल वाटर का इस्तेमाल कभी भी बिना उबाले न करें।
 
क्या है ब्लैक फंगस
म्यूकोर्मिकोसिस को काला कवक के नाम से भी पहचाना जाता है। इसका संक्रमण नाक से शुरू होता है और आंखों से लेकर दिमाग तक फैल जाता है। इस फंगस को गले में ही शरीर की एक बड़ी धमनी कैरोटिड आर्टरी मिल जाती है। आर्टरी का एक हिस्सा आंख में रक्त पहुंचाता है। फंगस रक्त में मिलकर आंख तक पहुंचता है। कई गंभीर मामलों में मस्तिष्क भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकता है।

… तो स्थिति हो सकती है गंभीर
फंगल इंफेक्शन से गाल की हड्डी में एक तरफ या दोनों दर्द हो सकता है। यह फंगल इंफेक्शन के शुरुआती लक्षण है। विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे ब्लैक फंगल इंफेक्शन किसी व्यक्ति को चपेट में लेता है, तो उसकी आंखों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। इसके कारण आंखों में सूजन और रोशनी भी कमजोर पड़ सकती है। फंगल इंफेक्शन मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है।