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केरल में क्यों काल बनता जा रहा है कोरोना, वैज्ञानिक इसे मान रहे हैं असली वजह

केरल में कोरोना एक बार फिर से काल बनता जा रहा है। केरल में बढ़ते कोरोना के अप्त्याशित मामलों ने देश की टेंशन बढ़ा दी है। केरल में कोरोना के संक्रमण में तेजी की वजह से कई स्तरों पर चिंता जताई जा रही है। इसे तीसरी लहर के खतरे के रूप में भी देखा जा रहा है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि केरल में पिछली लहर में संक्रमण अपेक्षाकृत कम रहने की वजह से यह अब बढ़ रहा है।

भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा मई में कराए गए सीरो सर्वे में पाया गया कि केरल में करीब 44 फीसदी आबादी में एंटीबॉडीज हैं। इसका मतलब हुआ कि टीकाकरण या संक्रमण की वजह से 44 फीसदी लोगों में प्रतिरोधक क्षमता पैदा हुई है। जबकि पूरे देश में करीब 67 फीसदी आबादी में प्रतिरोधकता पाई गई थी। कई राज्यों में यह प्रतिशत 67 से भी ज्यादा था। लेकिन केरल उन राज्यों में है, जहां यह सबसे कम 44 फीसदी रहा।

अधिक सीरो पॉजिटिविटी वाले राज्यों में संक्रमण का खतरा न्यूनतम
इसका मतलब यह है कि देशव्यापी दूसरी लहर के दौरान केरल कोरोना का प्रसार रोकने में काफी हद तक सफल रहा। जिस कारण उसकी आधी से भी कम आबादी ही प्रभावित हुई जबकि ज्यादातर राज्यों में दो तिहाई आबादी प्रभावित हुई है। दूसरे, जितनी ज्यादा संख्या में आबादी में एंटीबॉडीज पाई जाएंगी तो उससे नए संक्रमण का खतरा कम होगा। यह माना जा रहा है कि जिन राज्यों में 70-80 फीसदी तक सीरो पॉजिटिविटी पाई गई है, वहां संक्रमण का खतरा न्यूनतम रह गया है तथा जिन राज्यों में यह दर कम रही है, वहां संक्रमण का खतरा ज्यादा है। केरल के आंकड़ों से साफ है कि वहां संवेदनशील आबादी अभी भी 54 फीसदी है इसलिए संक्रमण फैल रहा है।

नया वेरिएंट नहीं आया तो संक्रमण का प्रसार होने की आशंका न्यूनतम
विशेषज्ञों के अनुसार, मौजूदा स्थिति में यदि वायरस का नया वेरिएंट नहीं आता है तो फिर संक्रमण का प्रसार होने की आशंका न्यूनतम है। बशर्ते की लोग कोरोना अनुकूल व्यवहार का पालन करें। लेकिन केरल में आबादी कम संक्रमित होने की वजह से डेल्टा वेरिएंट से संक्रमण अभी भी बढ़ रहा है। करीब-करीब यही स्थिति पूर्वोत्तर के राज्यों में हो रही है जहां अप्रैल-मई में संक्रमण कम हुआ था।