उत्तराखंड में भाजपा विधायकों के साढ़े चार साल के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए गोपनीय सर्वे शुरू हो गया है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने इसके लिए एक प्राइवेट एजेंसी को हायर किया है। यह एजेंसी 40- 40 दिन के तीन सर्वे करेगी। इसके आधार पर हर विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक और अन्य संभावित दावेदारों का राजनीतिक भविष्य तय किया जाएगा। बीजेपी हाईकमान की ओर से विधानसभा और लोकसभा चुनावों से सर्वे कराती आई है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने गोपनीय सर्वे शुरू कर दिया है। इसका पहला चरण 10 सितंबर तक चलेगा, जिसमें राज्य की सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इसकी पुष्टि की। दूसरा चरण 15 सितंबर और तीसरा सर्वे 25 अक्तूबर से शुरू होगा। सूत्रों ने बताया कि इन तीनों सर्वे के नतीजों से पार्टी अपनी ताकत और कमजोरियों का आकलन करेगी। जनता में किसी मुद्दे पर नाराजगी नजर आई तो उसे समय रहते दूर करने की कोशिश की जाएगी, ताकि ऐनवक्त पर ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े। विधानसभा चुनाव में सिटिंग विधायकों व अन्य संभावित दावेदारों के टिकट वितरण में सर्वे को मुख्य आधार बनाया जाएगा। इससे हाईकमान को प्रांतीय नेतृत्व पर ज्यादा निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। सूत्र बताते हैं कि एक अन्य खुफिया सर्वे भी कराया जाएगा।
आयुष्मान कार्ड पर फोकस
उत्तर प्रदेश में की तर्ज पर उत्तराखंड में भी अटल आयुष्मान कार्ड को भुनाने की तैयारी है। उत्तराखंड में इस कार्ड पर प्रत्येक परिवार के लिए साल भर में पांच लाख तक मुफ्त इलाज की सुविधा है। राज्य में लगभग 40 लाख लोगों के कार्ड बन चुके हैं, लेकिन जिस तरह से योगी सरकार इसे भुना रही है, उसके मुकाबले उत्तराखंड की तरफ से ठोस कोशिश नहीं हुई। लिहाजा, पार्टी स्तर से सरकार को यह सुझाव भी दे दिया है।
कुछ विधायकों के टिकट कटने तय
भाजपा में चर्चा है कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कुछ सिटिंग विधायकों के टिकट कटने तय हैं। इसके लिए विधायक का अब तक का व्यक्तिगत प्रदर्शन, जनता में विश्वास, छवि, सक्रियता और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख मानक आधार बनेंगे। इसके साथ ही पिछले विस चुनावों में पराजित दावेदारों का इन साढ़े चार साल के दौरान पार्टी संगठन के साथ समन्वय और उनकी सक्रियता का आकलन किया जाएगा।
चुनाव क्षेत्र से बाहर रहने वाले विधायक
ऐसे विधायक भी चिह्नित किए जाएंगे जो अपने विधानसभा क्षेत्रों के बजाय दून और दिल्ली को ज्यादा समय दे रहे हैं। पहाड़ के काफी विधायक अक्सर एक माह में कम से कम 12-14 दिन दून में पड़े रहते हैं, जबकि तीन-चार विधायक दिल्ली का रुख कर जाते हैं। पार्टी विधायकों को बार-बार अपने विस क्षेत्र में जनता के बीच रहने की हिदायत देती रही, पर विधायक इस नसीहत को हल्के में ले रहे हैं।