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कैसे कुछ स्टूडेंट्स का संगठन बन गया अफगानिस्तान से अमेरिका तक के लिए सिरदर्द, पढ़ें तालिबान की पूरी कुंडली

अरबी भाषा का एक शब्द है तालिब। इसका अर्थ है छात्र। और माने छात्रों का ग्रुप। 1989 में सोवियत सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी हुई तो इस ग्रुप के लोग जमा होना शुरू हुए। इसमें से कई लोग सोवियत काल में सोवियत के खिलाफ लड़ चुके थे। ये लोग अफगानिस्तान में सोवियत के कब्जे का विरोध कर रहे थे। इन लोगों को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से ट्रेनिंग, हथियार और समर्थन मिला। इनके साथ पश्तून के युवा भी शामिल हुए जो पाकिस्तानी मदरसों में पढ़ते थे। पश्तून, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और अफगानिस्तान के दक्षिण-पूर्व में फैले हुए हैं।

फॉल ऑफ़ काबुल

सोवियत के जाने के बाद कई पॉवर सेंटर बन रहे थे। तालिबान ने अफगानिस्तान में शांति, कानून आदि की बात की और लोगों का समर्थन मिला। 1994 तक कंधार के इलाके में तालिबान का अच्छा-खासा असर हो चुका था। कई इलाकों पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका था। कंधार के कुछ पहाड़ी इलाकों में सोवियत ज़माने के हथियार पड़े हुए थे, तालिबान ने उसे लूट लिया। अब तालिबान और ताकतवर हो चुका था। कंधार जीतने के बाद तालिबान देश के और प्रदेशों पर भी कब्ज़ा करने लगा। करीब दो साल बाद सितंबर 1996 में तालिबान ने काबुल भी जीत लिया। इतिहासकार इस घटना को ‘फॉल ऑफ़ काबुल’ की शुरुआत कहते हैं।

पाकिस्तान ने तालिबान की सत्ता को दी थी मान्यता

पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई उन देशों में से था जिसने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को मान्यता दी थी। पांच साल तक अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा रहा। इस दौरान तालिबान ने इस्लामी शरिया कानून लागू किया। महिलाओं और बच्चियों के साथ रेप किया। महिलाओं को सिर से पैर तक बुर्का पहनना आवश्यक कर दिया। टीवी, संगीत आदि पर बैन कर दिया। उन पुरुषों को जेल में डाल दिया जिनकी दाढ़ी छोटी थी। तालिबान पर मानवाधिकारों और सांस्कृतिक शोषण का आरोप लगा। एक कुख्यात उदाहरण 2001 का है जब तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बावजूद मध्य अफगानिस्तान में प्रसिद्ध बामियान बुद्ध की मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया।9/11 हमलों के बाद अमेरिका ने आतंकियों के समूल नाश की बात कही। ओसामा बिन लादेन को खोजते-खोजते अमेरिका, अफगानिस्तान पहुंचा। अमेरिका के पास रिपोर्ट्स थी कि तालिबान ने अल-कायदा के आतंकियों और लादेन को छिपा रखा था। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला करना शुरू किया और तालिबान के शासन को गिरा दिया। इसके बाद तालिबान, अमेरिका का विरोध करता रहा। तालिबान को फिर से पाकिस्तान से समर्थन मिलना शुरू हुआ। तालिबान और अमेरिकी सेना के बीच लगातार हिंसक झड़प होती रही। 2020 आते-आते अमेरिका को लगा कि उसे अफगानिस्तान से जो चाहिए था, वह मिल गया। अफगानिस्तान के चक्कर में अब और नहीं पड़ना। अब अफगानिस्तान में रहने की कोई खास वजह बची नहीं। और अमेरिका, अफगानिस्तान को छोड़ने की तैयारी में लग गया।

पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई उन देशों में से था जिसने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को मान्यता दी थी। पांच साल तक अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा रहा। इस दौरान तालिबान ने इस्लामी शरिया कानून लागू किया। महिलाओं और बच्चियों के साथ रेप किया। महिलाओं को सिर से पैर तक बुर्का पहनना आवश्यक कर दिया। टीवी, संगीत आदि पर बैन कर दिया। उन पुरुषों को जेल में डाल दिया जिनकी दाढ़ी छोटी थी। तालिबान पर मानवाधिकारों और सांस्कृतिक शोषण का आरोप लगा। एक कुख्यात उदाहरण 2001 का है जब तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बावजूद मध्य अफगानिस्तान में प्रसिद्ध बामियान बुद्ध की मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया।9/11 हमलों के बाद अमेरिका ने आतंकियों के समूल नाश की बात कही। ओसामा बिन लादेन को खोजते-खोजते अमेरिका, अफगानिस्तान पहुंचा। अमेरिका के पास रिपोर्ट्स थी कि तालिबान ने अल-कायदा के आतंकियों और लादेन को छिपा रखा था। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला करना शुरू किया और तालिबान के शासन को गिरा दिया। इसके बाद तालिबान, अमेरिका का विरोध करता रहा। तालिबान को फिर से पाकिस्तान से समर्थन मिलना शुरू हुआ। तालिबान और अमेरिकी सेना के बीच लगातार हिंसक झड़प होती रही। 2020 आते-आते अमेरिका को लगा कि उसे अफगानिस्तान से जो चाहिए था, वह मिल गया। अफगानिस्तान के चक्कर में अब और नहीं पड़ना। अब अफगानिस्तान में रहने की कोई खास वजह बची नहीं। और अमेरिका, अफगानिस्तान को छोड़ने की तैयारी में लग गया।

तालिबान 90 के दशक वाले मोड में

14 अप्रैल, 2021। इस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि 11 सितंबर, 2021 को जब हम 9/11 हमले की 20वीं बरसी मनाएंगे, उससे पहले अमेरिकी और नाटो सेना अफगानिस्तान से वापस आ चुकी होगी। और अब जब विदेशी सेना अफगानिस्तान छोड़ रही है तो तालिबान का तांडव फिर से शुरू हो चुका है।

अफगानिस्तान में फिर से 1996 वाला पैटर्न नजर आ रहा है। तालिबान 90 के दशक वाले मोड में है। अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति के बीच पाकिस्तान, शिनजियांग और उज्बेकिस्तान के आतंकी पूर्वी और उत्तरी अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे वाले इलाके में पहुंच गए हैं। तालिबान ने अफगान सुरक्षा बलों के साथ ही आम लोगों पर हमले तेज कर दिए हैं। रिपोर्टर्स के मुताबिक़ 6 अगस्त तक अफगानिस्तान के 218 जिले तालिबान के कब्जे में हैं, जबकि अफगानिस्तान सरकार का 120 जिलों पर नियंत्रण है। 99 जिलों में तालिबान और अफगानिस्तान सेना के बीच लड़ाई जारी है। तालिबान ने पूर्वोत्तर प्रांत तखर सहित कई जिलों पर कब्जा कर लिया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि 34 प्रांतीय राजधानियों में से 17 को तालिबान से सीधे तौर पर खतरा है।