Sunday , November 24 2024

जलवायु परिवर्तन: 2030 तक डेढ़ डिग्री पार कर जाएगी वैश्विक तापमान वृद्धि, भारत के सामने ये 3 चुनौतियां

जलवायु खतरों को लेकर इंटरगर्वमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट में वैश्विक तापमान बढ़ोतरी को लेकर भारी चिंताएं प्रकट की गई है। इसमें कहा गया है कि सदी के अंत तक तापमान बढ़ोतरी को डेढ़ डिग्री तक सीमित रखने का वक्त हाथ से फिसल चुका है। यदि इसी प्रकार उत्सर्जन बढ़ता रहा तो 2030 आते-आते ही तापमान में डेढ़ डिग्री की बढ़ोतरी हो जाएगी और यह सदी के आखिर तक 2.7 डिग्री तक पहुंच सकती है।

अभी पूरी दुनिया में इस बात पर बहस चल रही है कि सदी के आखिर तक तापमान बढ़ोतरी को कैसे डेढ़ डिग्री तक सीमित रखा जाए, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि यह खतरा तो सिर पर मंडरा रहा है। 2030 तक औसत तापमान में 1.5 या इससे भी अधिक 1.6 डिग्री की बढ़ोत्तरी हो सकती है। आईपीसीसी की 2018 में आई रिपोर्ट में कहा गया था 2052 तक तापमान में डेढ़ डिग्री बढ़ोतरी होगी। नए आकलन रिपोर्ट से साफ है कि उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास जमीनी स्तर पर सफल नहीं हो रहे हैं।

भारत को लेकर चिंताएं
रिपोर्ट में भारत के बारे में भी कई चिंताएं प्रकट की गई हैं। देश की स्थिति भी वैश्विक औसत जैसी ही है। आशंका जाहिर की अधिक गर्मी से जुड़ी घटनाओं की आवृत्ति एवं भयावहता में बढ़ोतरी हो सकती है। इससे खासतौर पर मैदानी इलाकों में तपिश, अत्यधिक गर्मी और आसमान से बरसती आग जैसी मौसमी घटनाओं में इजाफा होना तय है।

जोरदार बारिश होने की संभावना
रिपोर्ट के अनुसार गर्मी बढ़ने के कारण वार्षिक औसत बारिश में बढ़ोतरी हो सकती है। दक्षिणी हिस्सों में तीव्र वर्षा के मामले ज्यादा बढ़ सकते हैं तथा तटीय बारिश 20 फीसदी बढ़ेगी। यदि 1850-1900 की तुलना में तापमान चार डिग्री बढ़ता है तो सालाना वर्षा 40 फीसदी बढ़ सकती है। वैसे, बारिश की घटनाओं में विश्व भर में बढ़ोतरी की आशंका व्यक्त की गई है। दो डिग्री तापमान बढ़ने पर दस साल में एक बार होने वाली भीषण बारिश की घटनाएं दोगुनी हो सकती हैं। यदि चार डिग्री तापमान बढ़ता है तो यह 2.7 गुना ज्यादा हो सकती हैं।

मीथेन के उत्सर्जन में कमी लाने पर जोर
रिपोर्ट में पहली बार धूलकणों, पटिर्कुलेट मैटर एवं ओजोन एवं अन्य रिएक्टिव गैसों से होने वाले प्रदूषण के प्रभाव का भी आकलन किया गया है। एनओटू एवं एसओटू जैसी गैसों को भी शामिल किया गया। आईपीसीसी ने पहली बार मीथेन गैस के जलवायु खतरों का भी विश्लेषण किया है। जलवायु खतरों से निपटने के लिए मीथेन गैस के उत्सर्जन में कमी लाने पर जोर दिया है।

देश के सामने तीन चुनौती

समुद्र का जलस्तर : समुद्र का जलस्तर 50 सेमी बढ़ने से भारत की 7,517 किमी तटीय क्षेत्र में बसने वाली 2.86 करोड़ आबादी के समक्ष बड़ा खतरा होगा। इससे उत्पन्न बाढ़ से आर्थिक क्षति चार खरब डॉलर की होगी। यदि उत्सर्जन में कमी भी होती है तो भी समुद्र का जलस्तर बढ़ता रहेगा। सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में आधे से एक मीटर तक की बढ़ोत्तरी का अनुमान है। छह प्रमुख बंदरगाह शहरों चेन्नई, कोच्ची, कोलकात्ता, मुंबई, सूरत तथा विशाखापट्टनम में सबसे ज्यादा तबाही होगी।

ग्लेशियर : रिपोर्ट के अनुसार लाहौल स्पीति एवं पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर सदी के शुरू से ही पिघल रहे हैं। यदि उत्सजर्न में कमी नहीं आई तो हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में वे दो तिहाई घट जाएंगे। इससे 24 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

प्रदूषण : भारत दुनिया के दस में से छह सबसे प्रदूषित शहरों का घर है और लगातार वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। 2019 में वायु प्रदूषण के चलते देश में 16.70 लाख लोगों का जीवन दांव पर लगा। वहीं, दूसरी तरफ यह ग्लोबल स्तर पर दुनिया का तीसरा सबसे अधिक मीथेन उत्सर्जित करने वाला देश है। इन दोनों प्रदूषकों पर लगाम कसने की चुनौती हमारे सामने खड़ी है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मैटरोलाजी तथा आईपीसीसी रिपोर्ट के लेखक और वैज्ञानिक डॉ. राक्सी मैथ्यू कौल इस रिपोर्ट पर कहतो हैं, “यह रिपोर्ट बताती है कि पेरिस समझौते के तहत तापमान बढ़ोतरी को डेढ़-दो डिग्री के बीच रखने की पहल अपर्याप्त है। इसलिए जब पहले ही तापमान की बढ़ोतरी एक डिग्री को पार कर चुकी है और हम चरम मौसमी घटनाओं का सामना कर रहे हैं, ऐसे में हमें इसके जोखिम का मूल्यांकन करना होगा।”

आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप एक की सह अध्ययक वैरी मैसन कहती हैं, “यह रिपोर्ट एक रियलिटी चेक है। हमारे पास गुजरे वक्त, वर्तमान और भविष्य की ज्यादा साफ तस्वीर है, जो यह समझने के लिए जरूरी है कि हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं