सरकार को संसद सत्र का तय समय से पहले समापन नई बात नहीं है। लेकिन पूरे सत्र के दौरान विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच सरकार ज्यादातर विधाई कामकाज निपटाने में सफल रही। विपक्ष भी अपनी आक्रामकता दिखाने में कामयाब रहा। इस सत्र में अहम मुद्दों, जनता से जुड़े सरोकारों पर चर्चा नहीं हो पाई। लोगों से जुड़े प्रश्न नाममात्र के लिए पूछे जा सके। शून्यकाल का समय भी हंगामे की भेंट चढ़ा।सत्र को लेकर पक्ष-विपक्ष अपने-अपने जो भी दावे करे लेकिन सत्र को सार्थक बनाने में दोनों नाकाम रहे हैं। जिन मुद्दों पर सरकार पर सवाल उठ रहे हैं, उन मुद्दों पर वह अपना मजबूत पक्ष नहीं रख पाई। जबकि विपक्ष ने हंगामा खूब किया, लेकिन यदि वह अपने मुद्दों को लेकर खुलकर सदन में अपनी बात रखता तो वह सरकार को कटघरे में खड़ा करता औ जनता के बीच उसे ज्यादा फायदा होता।लोकसभा के पूर्व अपर सचिव एवं संसदीय प्रणाली के जानकार देवेन्द्र सिंह ने कहा कि पूरे सत्र के दौरान दोनों सदनों में पेगासस जासूसी विवाद छाया रहा। सरकार ने स्वत संज्ञान लेकर बयान दिया। लेकिन ऐसा बयान संसद में होने वाली चर्चा और उसमें उठाये जाने वाले प्रश्नों का जवाब नहीं हो सकता। इसी प्रकार पूरे सत्र में हंगामा करने वाला विपक्ष ओबीसी आरक्षण विधेयक पर चर्चा के लिए तैयार हुआ। क्योंकि इसमें सभी राजनीतिक दलों को अपना फायदा नजर आता है।
रोज हंगामा कर रहा विपक्ष इसलिए विधेयक के पक्ष में खड़ा हो गया क्योंकि वह आरक्षण का विरोधी नहीं दिखना चाहता है। हालांकि इस पर हुई चर्चा में भी विपक्ष घटती सरकारी नौकरियों और सरकारी संस्थानों के निजीकरण के चलते घटते आरक्षण पर सरकार की घेराबंदी करने में विफल रहा।
जानकारों का कहना है कि सत्र के दौरान लोकसभा में और राज्यसभा में बार-बार संसदीय मर्यादा को छिन्न-भिन्न करने वाली कई घटनाएं हुई हैं, यह घटनाएं सरकार को फायदा पहुंचाती हैं तथा विपक्ष के रवैये पर सवाल उठाती हैं। विभिन्न विषयों पर चर्चा की मांग करना विपक्ष का अधिकार है। जैसे किसानों से जुड़े मुद्दे, पेगासस जासूसी प्रकरण और कोरोना महामारी की दूसरी लहर के मुद्दे बेहद अहम थे। राज्यसभा में कोरोना महामारी पर चर्चा हुई भी लेकिन लोकसभा में नहीं हो सकी।
इसी प्रकार किसानों के मुद्दे पर चर्चा राज्यसभा में नियमों के फेर में उलझकर रह गई। जबकि पेगासस पर साफ नजर आ रहा था कि सरकार चर्चा के लिए तैयार नहीं है।
सिंह मानते हैं कि पेगासस पर चर्चा होना सरकार के लिए भी बेहतर था क्योंकि जब भी संसद में कोई चर्चा होती है तो बात रखने का सबसे ज्यादा वक्त सरकार को मिलता है। इसलिए उसके पास विपक्ष की तरफ से उठाये जाने वाले प्रश्नों का जवाब देने का अवसर था। इसी प्रकार किसानों या कोरोना आदि को लेकर जिस भी नियम के तहत सरकार तैयार हो रही थी, विपक्ष को मान जाना चाहिए था। चर्चा में भाग लेकर विपक्ष के पास सरकार की नीतियों और तैयारियों की खामियां को उजागर करने का मौका था।