पेगासस जासूसी कांड, महंगाई और किसान आंदोलन के मुद्दे पर विपक्ष संसद के मॉनसून सत्र में सरकार को घेरने में काफी हद तक सफल रहा है। विपक्ष एकजुट होकर इस दबाव को बरकरार रखना चाहता है। यही वजह है कि अगले सप्ताह कांग्रेस अध्यक्ष ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है। इसमें संसद के बाहर एकजुटता पर बात होगी। विपक्षी दल मानते हैं कि उनकी एकता का पहला इम्तिहान उत्तर प्रदेश चुनाव है। पर अभी तक किसी दल ने सभी को एकजुट करने की पहल नहीं की है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम गठबंधन के लिए तैयार हैं। हमारा पहला लक्ष्य भाजपा को हराना है। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी इसका संकेत दे चुकी है। संसद सत्र के दौरान विपक्षी नेताओं की बैठकों में भी यूपी चुनाव में गठबंधन का मुद्दा छाया रहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिबब्ल के घर विपक्षी दलों के नेताओं की रात्रिभोज पर हुई बैठक में महाराष्ट्र की तरह बड़े लक्ष्य के लिए छोटे मतभेदों को भुलाने पर जोर दिया गया। इसका मकसद अखिलेश यादव पर गठबंधन के लिए दबाव बनाना था।
प्रदेश कांग्रेस एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को शिकस्त देनी है, तो विपक्ष के पास एकजुट होने के बजाए कोई विकल्प नहीं है। प्रदेश में सपा बड़ी पार्टी है, ऐसे में इसकी पहल अखिलेश यादव को करनी होगी। सपा, रालोद, कांग्रेस और दूसरे छोटे दल मिल जाए, तो चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकते हैं।
क्या है जीत का समीकरण
वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस-सपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, पर उस वक्त स्थिति अलग थी। सपा सरकार में थी और उसके खिलाफ माहौल था। पर अब भाजपा सरकार में है। ऐसे में सपा, कांग्रेस, रालोद और दूसरी छोटी पार्टियां मिलती हैं तो जीत की दहलीज तक पहुंचा जा सकता है। इन तीनों पार्टियों को करीब तीस फीसदी वोट मिला। जबकि भाजपा को 40 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारी पूरी कोशिश होगी कि यूपी चुनाव तक विपक्षी एकता बरकरार रहे। क्योंकि, विपक्ष यूपी में भाजपा को रोकने में सफल रहता है, तो 2024 की लड़ाई आसान हो जाएगी। पर इसके लिए विपक्ष को एकजुट होकर बेहकर तालमेल के साथ आगे बढ़ना होगा। यह तभी मुमकिन हो पाएगा।