स्क्रैप पालिसी को लेकर राज्य का सेकेंड हैंड व्हीकल मार्केट भी सहमा हुआ है। डर इस बात का है कि 15 से 20 साल की आयु के बाद वाहनों को कबाड़ घोषित करने से उपभोक्ताओं का रुझान पुराने वाहनों से कम होगा। साथ ही सैकेंड हैंड वाहनों की कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है। वहीं पुरानी सस्ती कार खरीदकर अपने फोर व्हीलर का ख्वाब पूरा करने वाले मध्यमवर्गीय वर्ग के लिए भी विकल्प कम होने का डर है। उत्तराखंड में सेकेंड हैंड वाहनों का कारोबार काफी बड़ा है। आर्थिक रूप से इसका दायरा दो सौ करोड़ रुपये के करीब माना जाता है।
कोरेाना महामारी की वजह से बाकी सेक्टर की तरह सेकेंड वाहनों के सेक्टर पर भी गहरी मार पड़ी है। विख्यात कार निर्माता कंपनी मारुति प्रदेश में कई जगह ट्रू वैल्यू प्रोजेक्ट के तहत उपभोक्ता को किफायती मूल्य पर वाहन मुहैया कराती है। ट्रू वेल्यू के जीएम निखिल राजवंशी बताते हैं अब तक औसतन हर महीने एक हजार वाहनों की खरीदफरोख्त हो जाती थी। वर्ष 2006 तक के अच्छी कंडीशन के वाहन उपभोक्ता को अच्छी कीमत पर मिल जाते हैं। पर, जिस प्रकार स्क्रैप पालिसी के प्रावधान सामने आ रहे हैं, उससे कुछ चिंताएं भी पैदा हो गईं हैं।
छोटे मिस्त्री-गैराज का काम भी हो सकता है प्रभावित
स्क्रैप पालिसी की वजह से लोग नए वाहनों की खरीदने को प्राथमिकता देंगे। वर्तमान में एक नया वाहन कम से कम पांच साल के लिए मेंटिनेंस फ्री होता है। वाहन कंपनियों ऐसी पॉलिसी भी ला रहीं कि एक तय रकम अदा करने वो लंबे समय तक अपने हाईटेक गैराजों में ही वाहनों की मरम्मत और देखभाल की सुविधा दे सकती हैं। ऐसे में छोटे छोटे गैराज और मि्त्रिरयों का काम सिमट सकता है। उत्तराखंड में हजारों की संख्या लोग वाहनों की मरम्मत के काम से जुड़कर रोजीरोटी कमा रहे हैं।
आम तौर पर वर्ष 2006 और 2007 तक के अच्छे मॉडल के सेकेंड वाहन के दो लाख रुपये तक मिल जाते हैं। स्क्रैप पॉलिसी में वाहन की आयु सीमा तय होने से ज्यादा पुराने वाहन बिकना मुश्किल हो जाएगा। भले ही वो अच्छी हालत में भी हो, अच्छा मूल्य भी नहीं मिलेगा। उपभोक्ता भी सोचेगा कि ऐसा वाहन खरीदा जाए जिससे वो कुछ साल चला भी सके। ऐसे में विक्रेता और ग्राहक दोनों के विकल्प सीमित रह जाएंगे। यह एक चिंता का विषय है। बहरहाल स्क्रैप पालिसी का इंतजार किया जा रहा है। उसके बाद ही तस्वीर पूरी तरह से साफ हो सकेगी।
निखिल राजवंशी, महाप्रबंधक, मारूति ट्रू वेल्यू
जरूरी नहीं है कि 15 और 20 साल के बाद कोई वाहन कबाड़ हो ही जाए। मध्यमवर्गीय परिवार वाहनों को हिफाजत के साथ रखता है। आम मिडिल क्लास व्यक्ति कई लोग ऐसे ही वाहनों को अपनी क्षमता के अनुसार कीमत पर खरीद कर अपना शौक पूरा कर लेते हैं। नई नीति की वजह से यह मुश्किल हो जाएगा। केंद्र सरकार ने बड़े उद्योगपतियों के दबाव में आकर स्क्रैप पालिसी लागू की है। इसके दूरगामी असर होंगे।