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पाक की सरपरस्ती में आतंक का नया गठजोड़ भारत के लिए चुनौती, कश्मीर है टारगेट, समझें कैसे

काबुल एयरपोर्ट पर आईएसआईएस के हमले को भारत बहुत गंभीरता से ले रहा है। भारत मे सुरक्षा एजेंसियों का इनपुट और सामरिक जानकारों की राय के आधार पर माना जा रहा है कि तालिबानकी आतंकी गुटों से सांठगांठ है। इन आतंकी संगठनों की मजबूती में पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई की भी बड़ी भूमिका है। जानकारों का मानना है कि जिस तरह की तस्वीर उभर रही है, यह आने वाले दिनों में कश्मीर के लिए भी खतरनाक संकेत है। तालिबानी आतंकी और आईएसआईएस के गठजोड़ इस पूरे इलाके में बड़ी चुनौती बन सकता है।

सामरिक जानकार पीके मिश्र का कहना है कि काबुल का हमला चेतावनी है। यह अमेरिका, नाटो और अन्य प्रभावी देशों को समझना होगा कि तालिबान कितना भी इससे पल्ला झाड़े लेकिन हकीकत यही है कि तालिबान आतंकी, आईएस और अलकायदा ने हाथ मिला लिया है। उन्होंने कहा कि इनकी जड़ हमारे पड़ोस पाकिस्तान में है। इसलिए ये हमारे लिए बहुत चिंता की बात है। तालिबान में आतंकी संगठनों की मजबूती का फायदा पाकिस्तान में बैठे आतंकी गुट उठाएंगे और नया लश्कर, जैश के साथ इनका नया गठजोड़ कश्मीर में अस्थिरता के लिए आईएसआई का हथियार हो सकता है।

जानकारों का कहना है कि आईएस केपी की अफगानिस्तान में मौजूदगी कई मायनों में खतरा है। पिछले कुछ समय से केरल सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में आईएस प्रेरित आतंकी पकड़ मे आए हैं। जिनमें से कुछ का संबंध आईएस के से भी रहा है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों को खास सतर्क रहकर दुनिया भर की एजेंसियों से इनपुट साझा करना चाहिए। हालांकि कुछ जानकार इसे तालिबान और आईएस के वर्चस्व की जंग से भी जोड़कर देख रहे हैं। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में कई आतंकी संगठन तालिबान नेतृत्व की भी नहीं सुनते। इनका आईएस से गठजोड़ है और नई परिस्थितियों में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई है।फिलहाल जानकार मानते हैं कि आईएस-केपी का जन्म भी आतंक की धुरी पाकिस्तान की सरपरस्ती में ही हुआ। वजीरिस्तान इलाके में तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ पाकिस्तान जनरल राहिल शरीफ के नेतृत्व में अभियान चलाया जा रहा था। वर्ष 2014 में तहरीक-ए-तालिबान से अलग होकर कुछ तालिबान लड़ाकों ने आईएस-केपी गुट बनाया। ये बागी लड़ाके मुल्ला फजलुल्लाह की खिलाफत कर अलग हुए थे। बगावत का नेतृत्व उमर खालिद खुरासानी ने किया था। उस वक्त इस गुट ने अलग होकर आईएस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी। बाद में इस मॉड्यूल ने लश्कर-ए-जांघवी, लश्कर-ए-इस्लाम और उजबेकिस्तान के इस्लामिक मूवमेंट, चीन के उइगर मुसलमानों और अफगान तालिबान के बागियों के साथ मिलकर कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया।