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केंद्र शासित प्रदेश बनते ही लेह में विकास जोर पर, नए बने होटलों में भी बुकिंग फुल

सूखे, रेतीले और बर्फीले पहाड़ों से घिरे लद्दाख, जहां घास देखने को भी आंखें तरस जाती हैं वहां अब विकास का नया दौर चल रहा है। लेह आने वाले हवाई जहाज इन दिनों पूरे भरे आ रहे हैं। इनमें पर्यटक और मजदूरों की तो खासी संख्या है ही लेकिन उनके साथ वीआईपी मूवमेंट भी बहुत ज्यादा हो रहा है। सांसद, मंत्री और अधिकारियों की इतनी ज्यादा आवाजाही लद्दाख के लोगों को अचंभित करने वाली है। लेह की हर गली में इन दिनों नया निर्माण तेजी से हो रहा है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या नए बन रहे होटलों की है, इसके अलावा आवासीय भवनों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। यह सारा बदलाव बीते लगभग दो साल का है, जबकि लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग होकर अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला।

केंद्र शासित प्रदेश बनते ही तेज बदलाव

लद्दाख खासकर लेह की तस्वीर विकास और बदलाव की नई इबारत लिखती दिख रही है। बीते डेढ़ साल में जो विकास हुआ है वह यहां के लोगों को के लिए चौंकाने वाला है। उन्होंने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के साथ इतनी तेजी से बदलाव आएगा। पहले यहां पर सीमित संख्या में होटल थे लेकिन अब पर्यटकों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि नए होटल बनाने पड़ रहे हैं। पहले से बने होटलों में तो कई कई दिन दिन तक की बुकिंग है। ऐसे में नए बने होटल जिनमें अभी पूरी सुविधाएं भी नहीं हो पाई है वह भी तेजी से बुकिंग कर रहे हैं।

200 से ज्यादा सांसद आ चुके लेह 

यहां पर पर्यटकों के लिए टैक्सियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। नए बन रहे भवनों के लिए बाहर से मजदूर लाए जा रहे हैं, क्योंकि सर्दियों में 4 से 5 महीने से सारा काम ठप रहता है, इसलिए सात आठ महीनों में ही सारा विकास कार्य का ढांचा खड़ा किया जा रहा है। होटलों में काम करने वाले अधिकांश कर्मचारी उत्तर प्रदेश से आए हुए हैं, जबकि मजदूरों में बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश की संख्या काफी ज्यादा है। केंद्र सरकार का लद्दाख के विकास पर काफी जोर है और बीते डेढ़ साल से तमाम केंद्रीय मंत्री तो यहां पर आए ही हैं। अब संसदीय समितियां भी यहां तेजी से पहुंच रही हैं। हाल में 13 संसदीय समितियों ने यहां का दौरा किया है और यह क्रम अभी जारी है। 200 से ज्यादा सांसद लेह आ चुके हैं। ऐसे में यहां का इंफ्रास्ट्रक्चर विकास भी तेजी से हो रहा है। नए उपराज्यपाल आर के माथुर का कहना है कि इस दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र की तमाम कठिनाइयों के बावजूद यहां के लोग विकास के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

पर्यटकों की संख्या बढ़ी

हाई एल्टीट्यूड पर होने के कारण यहां पर ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम है और आने वाले लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद पर्यटक तेजी से आ रहे हैं। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। बीते कुछ दशकों में भारत ने जो एकमात्र बड़ा युद्घ लड़ा वह कारगिल का ही था, जो इसी केंद्र शासित प्रदेश के तहत आता है। इसके अलावा चीन के साथ जो टकराव चल रहा है वह भी लद्दाख क्षेत्र में ही हो रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार की उच्च प्राथमिकता भी यहां पर है। आम जनता, सांसद व अधिकारियों की आवाजाही बढ़ने से यहां के लोगों में एक नया विश्वास देखने को मिलता है। उन्हें लगता है कि जिस तरह कारगिल में पाकिस्तान को मात दी वैसे ही भारत तिब्बत सीमा पर चीन को भी जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है।

चार गुना हुआ वार्षिक बजट

लद्दाख में दो जिले कारगिल व लेह है, लेकिन अब पुर्ण राज्य की मांग भी लोगों के मन में कुलबुलाने लगी है। वह चाहते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश की बजाए राज्य बने उसे अपनी विधानसभा मिले। वह अपने तमाम फैसले खुद कर सके। यहां की एक बड़ी समस्या धन के आवंटन की भी रही है। केंद्र शसित प्रदेश का दर्जा मिलने के पहले लद्दाख क्षेत्र को केवल 57 करोड़ का वार्षिक बजट था जो अब लगभग चार गुना बढ़कर 232 करोड़ हो चुका है, लेकिन उसमें एक क्लाज उपयोग न होने पर धनरशि लैप्स होने का भी है, जिससे कि क्षेत्र के विकास में समस्या आ रही है। क्योंकि लगभग चार महीने कोई काम हो ही नहीं पाता है और बाकी समय में पूरी धनराशि का उपयोग करना बेहद जटिल काम है। इससे एक बड़ी राशि लैप्स हो जाती है। यहां के लोग यह मांग भी यहां पहुंच रहे कि सरकार के विभिन्न नेताओं के सामने रख रहे हैं।