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कब बनेगी सरकार, क्या है चुनौती और कैसे होगा बेड़ा पार? अफगानिस्तान में तालिबान राज को इन 7 सवालों से समझें

अफगानिस्तान की सत्ता में 20 साल बाद वापसी करने वाला तालिबान अब सरकार बनाने की कवायदों में जुटा है। माना जा रहा है कि तालिबान के बीच सरकार बनाने की रणनीति पर सहमति बन गई है और जल्द ही (संभवत: एक-दो दिन के भीतर) इस प्लान का ऐलान कर दिया जाएगा। अभी तक तालिबान की जो प्लानिंग है, उसके हिसाब से तालिबान प्रमुख शेख हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को सर्वोच्च नेता घोषित किया जाएगा और सरकार की कमान बरादर के हाथ में होगी। तो चलिए जानते हैं इन सात सवालों से तालिबान राज के बारे में सबकुछ।1.क्या समावेशी सरकार के गठन के वादे पर खरा उतरेगा तालिबान?
तालिबान ने अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार के गठन का भरोसा दिलाया है, जिसमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होगा। संगठन ने शांति समझौते में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पूर्ववर्ती सरकार में नंबर-दो की हैसियत रखने वाले अब्दुल्ला से कई दौर की वार्ता भी की है। तालिबान ने यह भी कहा है कि नई सरकार में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल होंगी। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के साथ तालिबान के खिलाफ युद्ध लड़ने वालों को संरक्षण देने पर जोर होगा।

2.क्या है ईरानी मॉडल, जिसे अपनाकर सरकार बनाना चाहता है तालिबान?
अंतरकलह से बचने के लिए तालिबान सरकार गठन में ईरानी मॉडल का सहारा ले सकता है। इसके तहत तालिबान प्रमुख शेख हिब्तुल्लाह अखुंदजादा को सर्वोच्च नेता घोषित किया जाएगा। मुल्क के संचालन के लिए गठित शूरा काउंसिल की कमान उसी के हाथों में होगी। अफगान सरकार में एक प्रधानमंत्री भी होगा, जिसे रईस उल वजीरा कहा जाएगा। उसकी अपनी कैबिनेट होगी। कैबिनेट शूरा के अधीन काम करेगी। वहीं, प्रांतीय सरकारों या विधानसभाओं को लेकर तस्वीर फिलहाल साफ नहीं है। तालिबान राज में न्यायिक मामलों को बहुत बारीकी और सख्ती से देखा जाएगा। संभव है, फैसलों के लिए शरीया कानून की मदद ली जाए।

3.अर्थव्यवस्था को संभालना तालिबान के लिए कितनी बड़ी चुनौती?
-अंतरराष्ट्रीय मदद रुकने के बाद अफगानिस्तान की लगातार डगमगाती अर्थव्यवस्था को संभालना तालिबान के लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि, मुल्क में गैर-ईंधन खनिजों का खजाना है, जिनका मूल्य एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा आंका गया है। लेकिन इन संसाधनों की वैज्ञानिक समझ अब भी अन्वेषी दौर में है। खनन को राजस्व के मुख्य स्रोत के रूप में तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर उनका उत्खनन करना होगा। इस काम में कम से कम सात से दस साल का समय लग सकता है।

4.क्या तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी?
अमेरिका सहित ज्यादातर देशों ने स्पष्ट किया है कि मान्यता हासिल करने के लिए तालिबान को समावेशी सरकार के गठन और अफगान सरजमीं का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए न होने देने के अपने वादे पर खरा उतरना होगा। यही नहीं, भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने एक प्रस्ताव पारित कर अफगानिस्तान का इस्तेमाल किसी देश को धमकाने या हमला करने

5.अफगानिस्तान में छूटे दूसरे देशों के लोग लौट पाएंगे या नहीं?
तालिबान ने बताया कि अमेरिकी बलों की पूर्ण वापसी के बाद काबुल स्थित हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे की मरम्मत शुरू कर दी गई है। मरम्मत कार्य पर ढाई से तीन करोड़ डॉलर खर्च होने का अनुमान है। इस राशि का भुगतान कतर और तुर्की करेंगे। संभव है एयरपोर्ट पर हवाई परिचालन इस सप्ताह दोबारा शुरू हो जाए। तालिबान के मुताबिक अफगानिस्तान छोड़ने की इच्छा रखने वालों को इसकी इजाजत मिलेगी। बशर्ते उनके पास पासपोर्ट, वीजा सहित अन्य वैध दस्तावेज मौजूद हों।

6.क्या भारत-अफगानिस्तान के बीच व्यापार बंद हो जाएगा?
दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद स्टेनेकजई ने मंगलवार को भारतीय राजदूत से हुई मुलाकात में भरोसा दिलाया था कि अफगान सरजमीं का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने दिया जाएगा। स्टेनेकजई ने भारत से सार्वजनिक रूप से अफगानिस्तान के साथ आर्थिक एवं व्यापारिक रिश्ते बहाल करने का आह्वान भी किया था। विशेषज्ञों का मानना है कि अफगान अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को देखते हुए तालिबान भारत से व्यापार नहीं बंद करेगा।

7. क्या अमेरिका अब भी अफगानिस्तान में हमले कर सकता है?
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अफगानिस्तान से सैन्य वापसी के बाद भी वहां आतंकवाद के खिलाफ जंग जारी रखने का आह्वान किया है। उन्होंने भरोसा दिलाया है कि वे अफगानिस्तान को दोबारा आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह नहीं बनने देंगे। हालांकि, तालिबान ने स्पष्ट किया है कि अमेरिका को 31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान में हमले करने की इजाजत नहीं होगी। संगठन ने बीते शुक्रवार नानगरहार प्रांत में आईएसआईएस-के को निशाना बनाकर किए गए अमेरिकी ड्रोन हमले के मद्देनजर यह बात कही थी।