अफगानिस्तान पर तालिबान ने अपने शासन का ऐलान कर दिया है और अमेरिकी फोर्स के वापस लौटने के साथ ही तालिबान ने पूरी आजादी का जश्न भी मना लिया है। हालांकि तालिबान के प्रति अमेरिका के विचार बिल्कुल नहीं बदले हैं। एक तरफ तालिबान शासन को मान्यता देने को लेकर अमेरिका अपना रूख साफ कर चुका है कि उसे इस काम की कोई जल्दी नहीं है। इसके साथ ही अमेरिका ने कहा है कि तालिबान पहले से एक क्रूर समूह है और अभी यह देखा जाना बाकी है कि यह बदलता है या नहीं। अमेरिका के एक बड़े जनरल ने यह बयान दिया है।
यूएस चीफ ऑफ स्टाफ अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने पेंटागन संवाददाता सम्मेलन में संवाददाताओं से कहा, “हम नहीं जानते कि तालिबान का भविष्य क्या है, लेकिन मैं आपको व्यक्तिगत अनुभव से बता सकता हूं कि यह हमेशा से एक क्रूर समूह है, और वे बदलते हैं या नहीं, यह देखा अभी जाना बाकी है।”
तालिबान के साथ सहयोग करने के सवालों पर उन्होंने कहा, “जहां तक उस हवाई क्षेत्र में या पिछले एक साल युद्ध में उनके साथ हमारे व्यवहार की बात है तो मिशन और बल के जोखिम को कम करने के लिए जो करना होता है, आप वह करते हैं, बजाय उसके जो आप करना चाहते हैं।”
रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि अमेरिका तालिबान के साथ “बहुत ही कम मुद्दों” पर काम कर रहा था, और यह केवल अधिक से अधिक लोगों को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए था जो वे कर सकते थे। निकासी मिशन के बारे में बताते हुए जनरल मिले ने कहा कि अमेरिका ने जमीन पर 5,000 से 6,000 सैन्य कर्मियों को तैनात किया था।तालिबान के राज को मान्यता देने को लेकर अमेरिका किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है। अमेरिका ने कहा कि उसे अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता देने की कोई जल्दी नहीं है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने बुधवार (वाशिंगटन के समयानुसार) को एक प्रेस वार्ता में कहा कि न तो हमें जल्दी है और न ही जिन देशों से अमेरिका ने हाल के दिनों में बात की है, उनमें ऐसी कोई हड़बड़ी है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह उनके (तालिबान) व्यवहार पर बहुत निर्भर करेगा और क्या वे वैश्विक समुदाय की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं।