जर्मनी का कहना है कि यूरोपीय संघ को ऐसा एक जरिया तैयार करना चाहिए जिससे जरूरत पड़ने पर तुरंत कहीं भी सेना तैनात की जा सके. गुरुवार को यूरोपीय संघ ने अफगानिस्तान के घटनाक्रम से मिले सबकों को पर चर्चा की.अफगानिस्तान में तालिबान के एकाएक कब्जे ने दुनिया को चौंका दिया, जिसके बाद यूरोपीय संघ विचार कर रहा है कि इस पूरी स्थिति से क्या सीखने को मिला. इसी दौरान जर्मनी ने एक दशक पुराने उस विचार को फिर से जिंदा कर दिया है जिसमें यूरोपीय संघ की अपनी एक रैपिड एक्शन फोर्स बनाने की बात थी. 2007 में ऐसी एक व्यवस्था तैयार की गई थी जिसके तहत 1,500 सैनिकों का एक लड़ाकू दल कहीं भी फौरन तैनाती के लिए रखा जाना था. लेकिन इस दल के लिए धन और तैनाती को लेकर मतभेदों के चलते इसे कभी इस्तेमाल नहीं किया गया. अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के फैसले के बाद रैपिड एक्शन फोर्स का यह मुद्दा यूरोपीय संघ में फिर से चर्चा के केंद्र में है क्योंकि यूरोपीय संघ ऐसी जगहों से सिर्फ अपने दम पर अपने लोगों को बचा लाने की स्थिति में नहीं है जहां अफगानिस्तान जैसी गंभीर स्थितियां हैं. जैसे कि माली में यूरोपीय फौजें ट्रेनिंग के लिए तैनात हैं.योसेप बोरेल का सुझाव यूरोपीय विदेश नीति प्रमुख योसेप बोरेल ने स्लोवेनिया में हुई बैठक में उम्मीद जताई कि अक्टूबर-नवंबर तक इस बारे में एक योजना तैयार की जा सकती है. उन्होंने कहा, “कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं जो इतिहास को नया मोड़ देती हैं, जो कुछ नया शुरू करती हैं. और मुझे लगता है कि अफगानिस्तान ऐसी ही घटना है.” बोरेल ने यूरोपीय संघ से आग्रह किया कि 5,000 सैनिकों का एक ऐसा बल तैयार करे जिसे फौरन कहीं भी तैनात किया जा सके, ताकि अमेरिका पर निर्भरता कम हो. उन्होंने कहा कि जो बाइडेन लगातार तीसरे ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने यूरोप को चेतावनी दी है कि उनका देश यूरोप की नजदीकी जगहों में जारी विदेशी दखल से हाथ खींच रहा है. बोरेल ने कहा, “यह यूरोपीयों के लिए एक चेतावनी है कि उन्हें जागने की जरूरत है और अपनी जिम्मेदारी खुद उठाने की जरूरत है.” सहमति में मुश्किलें स्लोवेनिया में यूरोपीय संघ की बैठक में शामिल हुए राजनयिकों ने कहा कि अभी बल की स्थापना को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है क्योंकि कई मुद्दों पर मतभेद हैं.राजनियकों के मुताबिक इस बात पर सहमति नहीं बन पा रही है कि बिना सभी 27 देशों की सहमति लिए, बल को कहीं फौरन तैनात करने का फैसला कैसे लिया जाएगा. इसके लिए सभी देशों की संसदों से सहमति लेनी होगी और इनमें ऐसे भी देश होंगे जो पहले संयुक्त राष्ट्र की सहमति चाहेंगे. देखिएः तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान जर्मनी के इस प्रस्ताव पर अमेरिका ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, “एक मजबूत और ज्यादा सक्षम यूरोप हमारे साझे हितों के लिए जरूरी है.” उन्होंने कहा कि अमेरिका यूरोपीय संघ और अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो के बीच सहयोग बढ़ाने का समर्थन करता है. प्राइस ने पत्रकारों से कहा, “नाटो और यूरोपीय संघ को और ज्यादा मजबूत और संस्थागत संपर्क स्थापित करने चाहिए और हर संस्थान की विशेष योग्यताओं का लाभ इस तरह उठाना चाहिए कि बहुत कम मात्रा में उपलब्ध संसाधनों का नुकसान ना हो.” क्या ऐसा बल संभव है? यूरोपीय संघ की सबसे मजबूत सैन्य शक्तियों में से एक जर्मनी ऐतिहासिक रूप से अपनी फौजों की विदेशों में तैनाती को लेकर झिझकता रहा है. अब उसका यह प्रस्ताव संघ के फैसले पर टिका है.जर्मनी की रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने एक ट्वीट में कहा, “यूरोपीय संघ में जो देश इच्छुक हैं, वे सभी का फैसला आने के बाद कदम उठा सकते हैं.” देखिएः तालिबान को मिला होगा हथियारों का जखीरा ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर हो जाने के बाद अब त्वरित कार्रवाई करने वाले एक साझे बल की स्थापना की संभावना बढ़ गई है. फ्रांस के अलावा ब्रिटेन भी यूरोपीय संघ की साझी रक्षा नीति को लेकर बहुत इच्छुक नहीं था. क्रांप कारेनबावर ने कहा कि मुख्य सवाल यह नहीं था कि यूरोपीय संघ अपना एक सैन्य दल स्थापित करेगा या हीं और बातचीत यहां रुकनी नहीं चाहिए. उन्होंने कहा, “यूरोपीय संघ सदस्यों के सदस्यों की सैन्य क्षमताएं तो हैं. यूरोपीय सुरक्षा और रक्षा नीति के लिए मुख्य सवाल ये है कि हम आखिरकार अपनी सैन्य क्षमताओं को मिलकर कैसे प्रयोग करें