देश में लड़ाकू विमान से लेकर कई किस्म के हथियारों का निर्माण हो रहा है। लेकिन लद्दाख और सियाचिन जैसे अत्यधिक सर्द इलाकों में तैनात जवानों के लिए कपड़ों का निर्माण देश में करना आज भी एक चुनौती बना हुआ है। लेकिन रक्षा मंत्रालय अब इस मुद्दे पर गंभीर है तथा आने वाले समय में इस प्रकार के कपड़ों का निर्माण देश में ही कराने की तैयारी की जा रही है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आर्डिनेंस फैक्टरियों के निगमीकरण की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है तथा सैन्य बलों के लिए कपड़ों का निर्माण करने वाली अवदी आर्डिनेंस फैक्टरी को एक्सट्रीम कोल्ड वैदर क्लोथिंग सिस्टम (ईसीडब्ल्यूसीएस) के निर्माण का जिम्मा सौपा जाएगा। डीआरडीओ ने ऐसे वस्त्रों का विकास भी किया है। सेनाओं के द्वारा डीआरडीओ निर्मित वस्त्रों के परीक्षण भी किए गए हैं और उनकी गुणवत्ता को बेहतर बनाया गया है।
एक हजार करोड़ का आयात
सूत्रों के अनुसार अत्यधिक सर्द क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों का भारत हर साल औसतन एक हजार करोड़ से भी अधिक का आयात करता है। इसमें एक बड़ी समस्या यह है कि आयातित कपड़े की समय पर आपूर्ति सेना को नहीं हो पाती है। इसलिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इनके देश में ही निर्माण की योजना है।
विदेशी निर्माता लगा सकेंगे कारखाना
सरकार ने हाल में संसदीय समिति के समक्ष कहा कि इस प्रकार के कपड़ों का निर्माण करने वाली विदेशी कंपनियों को भी भारत में अपनी ईकाई लगाने की अनुमति होगी। वह भारतीय निजी क्षेत्र या सरकारी कंपनियों के साथ साझीदार में भी यूनिट लगा सकेंगे।
आयात पर रोक का ऐलान संभव
सूत्रों ने यह भी कहा कि रक्षा मंत्रालय आने वाले दिनों में ऐसे कपड़ों के आयात पर रोक लगाने का ऐलान कर सकता है। मंत्रालय अब तक करीब दो सौ रक्षा उपकरणों एवं सामग्रियों के आयात पर रोक का ऐलान कर चुका है। ईसीडब्ल्यूसीएस को भी इस सूची में डाला जा सकता है।
तीन लेयर के होते हैं ये कपड़े
ईसीडब्ल्यूसीएस कपड़े तीन परते वाले होते हैं जो 12000 फुट की ऊंचाई, शून्य से 40 डिग्री नीचे तापमान और 40-50 कीमी तेज गति की हवाओं में भी जवानों के शरीर को गर्म रखने में कारगर होते हैं।