Thursday , December 19 2024

अफगान की तालिबान 2.0 सरकार पर पाकिस्तान की छाप, हक्कानी का गृह मंत्री बनना भारत के लिए झटका

अफगानिस्तान में नई अंतरिम सरकार को नई बोतल में पुरानी शराब करार देते हुए, पूर्व भारतीय राजनयिकों ने बुधवार को कहा कि काबुल में गठित कैबिनेट ने तालिबान 2.0 को लेकर मिथकों को दूर कर दिया है। उनका कहना है कि अफगानिस्तान की नई सरकार पर पाकिस्तान की पुख्ता छाप है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।तालिबान ने मंगलवार को मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद के नेतृत्व वाली एक अंतरिम सरकार की घोषणा की, जिसमें प्रमुख भूमिकाएं विद्रोही समूह के रसूखदार सदस्यों को दी गई हैं। इसमें हक्कानी नेटवर्क के विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है। अमेरिका ने उस पर एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा है। सरकार में हालांकि शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई जैसे कुछ लोग भी शामिल हैं जिनका रुख भारत के प्रति मित्रवत रहा है, लेकिन वह वरिष्ठता क्रम में नीचे हैं। उन्हें उप विदेश मंत्री बनाया गया है। पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह, पूर्व राजनयिक मीरा शंकर, अनिल वाधवा और विष्णु प्रकाश ने कहा कि नई सरकार में चरमपंथी तत्व हैं और भारत को अपने प्रतीक्षा करो और देखो (वेट एंड वॉच) दृष्टिकोण को आगे भी जारी रखना चाहिए।

पुरामने कलेवर में ही है अफगान की नई तालिबान सरकार
अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत राकेश सूद ने कहा कि काबुल में घोषित अंतरिम सरकार तालिबान 2.0 के बारे में किसी भी मिथक को दूर करती है। उन्होंने कहा, यह स्पष्ट रूप से तालिबान 1.0 जैसी है, जिस पर हर जगह आईएसआई की छाप है। अमेरिका में 2009 से 2011 के बीच भारत की राजदूत के तौर पर काम करने वाली शंकर ने कहा कि हमें इंतजार करना होगा और यह देखना होगा कि तालिबान द्वारा अपनाई गई नीतियों के संदर्भ में इस घटनाक्रम के भारत के लिये क्या मायने हैं। उन्होंने कहा, लेकिन यह आशाजनक नहीं लगता और वास्तव में चिंता का विषय है क्योंकि नई बोतल में पुरानी शराब सरीखा लग रहा है, नियुक्त किए गए कई चेहरे वही हैं (जो तालिबान की पिछली सरकार में थे)।

भारत के लिए झटका
शंकर ने कहा कि सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्रालय के प्रमुख के रूप में नियुक्त करना चिंता का विषय है, जबकि तालिबान का उदारवादी चेहरा पेश करने वाले दोहा समूह को काफी हद तक हाशिए पर डाल दिया गया है। इसका भारत के लि झटके के तौर पर उल्लेख करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में इसे (नए अफगान शासन को) देखने के बजाय जो अधिक महत्वपूर्ण था वह यह कि अफगानिस्तान के लोगों के लिए यह एक झटका होगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार गठन पर जब चर्चा हो रही थी तब पाकिस्तान के इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद की मौजूदगी स्पष्ट रूप से दिखाती है कि उसमें पाकिस्तान का खुला हस्तक्षेप था।

तालिबानी गुटों ने अपना संतुलन साधा
वाधवा 2017 में सेवानिवृत्ति से पहले विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) के तौर पर सेवा दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि इसकी काफी उम्मीद थी कि सरकार समावेशी सरकार नहीं होगी जैसा कि लोग सोच रहे थे। उन्होंने बताया, तालिबानी गुटों ने अपना संतुलन साधा है और चरमपंथी तत्व वहां व्याप्त हैं तथा अन्य को दरकिनार कर दिया गया है। इसलिए मूल रूप से दोहा गुट को दरकिनार किया गया है। इस तरह के संगठन से समावेशी सरकार की उम्मीद करना, विशेष तौर पर तब जब पाकिस्तान वहां पुरजोर दखल दे रहा हो, असल में वास्तविकता पर निर्भर नहीं था।

वाधवा ने कहा, ”जो कुछ हुआ है, वह अपेक्षित रूप से हुआ है और यह निश्चित रूप से भारत, अमेरिका और कुल मिलाकर पश्चिमी देशों के लिए एक झटका है। मुझे हालांकि लगता है कि चूंकि ये देश (पश्चिम) अफगानिस्तान में कार्रवाई से बहुत दूर हैं, वे धीरे-धीरे समय के साथ इस परिस्थिति को स्वीकार कर उसके साथ रहने लगेंगे, लेकिन जिस देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, वह संभवत: भारत होगा, शायद बाद में ईरान और रूस जैसे देशों पर भी इसका असर हो, लेकिन चीन ज्यादा प्रभावित नहीं होगा।