गर्भवती महिलाओं में एचआईवी के बढ़ते मामलों ने अफसरों की नींद उड़ा दी है। ऐसा तब है जब सभी गर्भवती महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है। लक्ष्य के मुकाबले 42 से 82 फीसदी गर्भवती महिलाओं की ही जांच हो पा रही है। यूपी में हर साल करीब 65 लाख गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच का लक्ष्य है। सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की जांच मुफ्त की सुविधा है। 1737 सामुदायिक व प्राथमिक गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग जांच की सुविधा है। 464 सेंटरों में एचआईवी की पक्की (कनफर्ममेट्री) जांच की सुविधा है
सबकी जांच नहीं हो पाती
सभी गर्भवती महिलाओं के लिए एचआईवी जांच जरूरी है। इसके बावजूद अभी भी सभी महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है। बहुत सी महिलाएं जांच कराने में आनाकानी करती हैं। संसाधनों की कमी भी जांच में रोड़े अटका रही है। अभी भी 73 से 82 फीसदी गर्भवती महिलाओं की जांच हो रह है। करीब 18 फीसदी महिलाओं की जांच नहीं हो पा रही है।
संक्रमित से जन्में 95 फीसदी बच्चे सुरक्षित
पीपीटीसीटी में डिप्टी डायरेक्टर डॉ. माया बाजपेई के मुताबिक गर्भवस्था में सभी महिलाएं एचआईवी की जांच जरूर कराएं। संक्रमित महिलाएं गर्भावस्था के तीसरे माह से दवा खाना शुरू कर दें। इससे 95 फीसदी तक शिशु को संक्रमण से बचा सकते हैं। उन्होंने बताया कि जन्म के बाद शिशु को भी दवा दी जाती है। 18 माह तक शिशु को डॉक्टर के संपर्क में रहने की जरूरत है। डॉक्टर की सलाह पर शिशु की भी समय-समय पर जांच जरूर कराएं। जांच व इलाज से मरीज सेहतमंद जीवन जी सकते हैं।
एड्स कंट्रोल सोसाइटी के आंकड़े
70 फीसदी महिलाओं को संक्रमण उनके पति (रेगुलर पार्टनर) से मिला।
18 से 20 फीसदी ट्रक ड्राइवर संक्रमण बांट रहे हैं।
संक्रमित 30 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में एचआईवी के कारणों का पता ही नहीं चल पा रहा है।
एक लाख गर्भवती में करीब .02 फीसदी महिलाएं पॉजिटिव मिल रही हैं।
वर्ष जांच लक्ष्य जांचें हुई संक्रमित
2018 64 लाख 42 फीसदी 1159
2019 66 लाख 82 फीसदी 1269
2020 66 लाख 74 फीसदी 1273