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सियासत से सत्ता : गुजरात के बदलाव में यूपी के लिए भी बड़ा संदेश, असंतुष्टों को नसीहत

गुजरात में नए मंत्रिमंडल के गठन से भाजपा ने सिर्फ स्थानीय समीकरणों को ठीक करने का काम नहीं किया है बल्कि इसके जरिये यूपी व भाजपा शासित अन्य राज्यों के पार्टी नेताओं को समझाने के साथ बड़ा और कड़ा संदेश देने की कोशिश की है। असंतुष्टों को नसीहत भी दी है कि भाजपा में किसी को कभी भी किसी भूमिका के लिए मौका मिल सकता है, लेकिन उसके लिए संयम रखना होगा। दबाव बनाने से कुछ हीं मिलेगा। पाने के लिए क्षमता व योग्यता साबित करना ही होगा। संदेश सिर्फ  पार्टी के लोगों को नहीं है बल्कि विपक्ष को भी है कि भाजपा कभी भी कोई फैसला कर सकती है। 

भाजपा हाईकमान ने पिछले कुछ महीनों में उत्तराखंड में दो और कर्नाटक में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर नए चेहरों को मौका दिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल से रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर जैसे बड़े चेहरों को बाहर किया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात में बदलाव कर दिया। गुजरात में मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि पूरा मंत्रिमंडल बदलकर यह बता दिया गया कि कोई खुद को पार्टी के ऊपर न समझे। पार्टी हित पर आंच आने या चुनावी राज्यों में भाजपा की सत्ता वापसी में संकट दिखने पर किसी की भी कुर्सी छिन सकती है, उसका कद और पद कितना भी ऊंचा क्यों न हो। 

साधने का साथ समझाया भी

गुजरात में मुख्यमंत्री के साथ पूरा मंत्रिमंडल बदलकर शीर्ष नेतृत्व ने यूपी के उन लोगों को साधने के साथ समझाने की भी कोशिश की है जो किसी कारण खुद को उपेक्षित या अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। नेतृत्व ने संदेश दिया है कि भाजपा में संभावनाओं व तरक्की के द्वार हमेशा खुले हैं। भले ही किसी पर बड़े या ताकतवर नेता का हाथ हो या न हो। बशर्ते अनुशासन के साथ संयम और विवेक रखें। पहली बार का विधायक मुख्यमंत्री बन सकता है और कई बार के विधायक अगर पार्टी की पुन: सत्ता प्राप्ति की राह में सक्रिय योगदान नहीं दे रहा है तो मंत्रिमंडल से ही नहीं किसी भी पद से किसी वक्त हटाया जा सकता है।

साथ चलें तो हो सकता है समायोजन

वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल भी कहते हैं कि गुजरात के जरिये मोदी और शाह ने प्रदेश में भाजपा के असंतुष्ट खेमे को प्रकारांतर से यह संदेश देने की कोशिश की है कि कोई असंतुष्ट नहीं रहेगा। आज नहीं तो कल उसे मौका मिलेगा जरूर। शर्त एक ही है कि अनुशासन में रहे और संगठन व सरकार के साथ चलें। लाल की बात मानें तो मोदी व शाह के गुजरात के फैसले से यूपी के उन विधायकों के लिए खासतौर से संदेश निकला है जिनको लेकर बीते दिनों तरह-तरह की खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं। संदेश साफ  है कि दबाव या खेमेबाजी से कुछ नहीं होने वाला। कुछ चाहिए तो संगठन व सरकार के साथ समन्वय बनाकर कदमताल करें। नहीं तो आने वाले दिनों में टिकट भी कट सकता है।

विपक्ष में भी सेंधमारी की कोशिश

राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व ने गुजरात के जरिये विपक्ष को भी सियासी बिसात पर कठघरे में खड़़ा कर उसमें सेंधमारी की कोशिश की है। राजनीतिक समीक्षक प्रो. एपी तिवारी कहते हैं कि छत्तीसगढ़, पंजाब और  राजस्थान की सियासी उठापटक को लेकर कांग्रेस नेतृत्व की असमंजस व अनिर्णय की स्थिति के बीच उत्तराखंड, कर्नाटक और अब गुजरात के फैसलों से भाजपा ने जन सरोकारों व दायित्वों के साथ पार्टी के आंतरिक फैसलों को लेकर विपक्ष से ज्यादा स्पष्ट और सजग होने का संदेश देने की कोशिश की है।

तिवारी कहते हैं कि राजनीति में मुद्दों पर सजगता और स्पष्टता जनता के बीच ही नहीं अन्य राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच उस दल की विश्वसनीयता बढ़ाती है। साथ ही दल और बाहर के लोगों की महत्वाकांक्षाओं को भी उत्साह व उम्मीद प्रदान करती है। इससे स्पष्ट है कि भाजपा ने विपक्षी दलों के भीतर भी उन लोगों को संकेतों में भाजपा के साथ चलने का न्यौता देने की कोशिश की है जो अपने दलों में किसी गुट या हाईकमान के कारण महत्वाकांक्षाओं को मुकाम तक पहुंचाने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं।