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यूपी : 28 हजार करोड़ से ज्यादा की बिजली खरीदी, वसूले सिर्फ 21 हजार करोड़

बिजली कंपनियां लाइन हानियां (बिजली चोरी) कम करने के साथ-साथ राजस्व वसूली के मोर्चे पर भी फिसड्डी साबित हो रही हैं। राजस्व वसूली के ताजा आंकड़ों ने प्रदेश में बिजली सुधार के दावों की कलई खोलकर रख दी है। वित्तीय वर्ष के शुरुआती पांच महीने में बिजली कंपनियों ने केंद्र व राज्य के बिजली उत्पादकों से 28,411 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी है। इस पर मुनाफा कमाना तो दूर, बिजली कंपनियों ने जितने की बिजली खरीदी उतना राजस्व भी वसूल नहीं कर पाई हैं।

इस अवधि में कुल राजस्व वसूली महज 21,246 करोड़ रुपये ही हो पाई है। यानी पहले पांच महीने में ही पावर कॉर्पोरेशन का घाटा बढ़कर 9,148 करोड़ रुपये का हो चुका है। इसमें राजस्व वसूली के अतिरिक्त अन्य मदों से होने वाली कम आमदनी भी शामिल है। इसकी वजह से कॉर्पोरेशन यूपी को बिजली देने वाले उत्पादकों को समय से भुगतान नहीं कर पा रहा है। एनटीपीसी तो पिछले दिनों नोटिस देकर एक सप्ताह सीमित मात्रा में बिजली रोक भी चुका है।

कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार की ओर से बुधवार को सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को राजस्व वसूली को लेकर भेजे गए पत्र में एनटीपीसी का भी जिक्र किया गया है। चुनावी साल में भले ही बिजली दरें न बढ़ी हों, पर इन हालातों को देखते हुए देर-सवेर उपभोक्ताओं पर बिजली की दरों का बोझ बढ़ना तय है। साथ ही उत्पादकों को समय से भुगतान न होने की वजह से बिजली संकट भी खड़ा हो सकता है।

‘यह सही है कि लक्ष्य के मुकाबले राजस्व वसूली कम हो रही है। यह चिंता का विषय है, क्योंकि जिन उत्पादकों से बिजली खरीदी जा रही है, उन्हें समय से भुगतान नहीं हो पा रहा है। सभी बिजली कंपनियों के एमडी को राजस्व वसूली की नियमित रूप से सघन मॉनीटरिंग करके इसमें बढ़ोतरी करने के सख्त निर्देश दिए गए हैं ताकि स्थिति में सुधार हो सके।’ -एम. देवराज, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन
प्रदेश में पैदा हो सकता बिजली संकट, दरों में भी बढ़ोत्तरी संभव
प्रदेश की बिजली कंपनियों की माली हालत दिनोंदिन खस्ता होती जा रही है। राजस्व वसूली में फिसड्डी होने और उत्पादन कंपनियों को समय से भुगतान न होने पाने की दशा में प्रदेश में बिजली संकट पैदा हो सकता है। पावर कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार की ओर से सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को भेजे गए पत्र में इस साल बिजली खरीद और वसूल की गई धनराशि का ब्यौरा देते हुए साफ तौर पर कहा गया है कि बिजली कंपनियों द्वारा कम राजस्व वसूली से वित्तीय संकट खड़ा हो गया है।

इस अवधि में 21,411 करोड़ रुपये की जो राजस्व वसूली हुई है उसमें सरकारी विभागों से वसूले गई 3558 करोड़ रुपये की धनराशि भी शामिल है। अप्रैल से अगस्त तक कुल कैश गैप बढ़कर 9,148 करोड़ रुपये पहुंच गया है। इसकी वजह से पावर कार्पोरेशन यूपी को बिजली देने वाले उत्पादकों को समय से भुगतान नहीं कर पा रहा है। उन्होंने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि मौजूदा राजस्व वसूली के आंकड़ों से साफ है कि बिजली कंपनियां बिजली खरीद लागत तक नहीं निकाल पा रहीं।

पत्र में 20 सितंबर तक की राजस्व वसूली के आंकड़ों का खास तौर पर उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इस महीने गैर सरकारी उपभोक्ताओं से 4,912 करोड़ रुपये वसूली का लक्ष्य तय किया गया है। 20 सितंबर तक कुल 2485 करोड़ रुपये ही वसूल हो पाए हैं जो 50 फीसदी के आसपास है। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में 35.64 प्रतिशत, मध्यांचल में 43.34 प्रतिशत, दक्षिणांचल में 43.26 प्रतिशत, पश्चिमांचल वितरण निगम में 59.39 प्रतिशत तथा केस्को में 60.15 प्रतिशत वसूली हो पाई है। पावर कार्पोरेशन प्रबंधन अब अपने स्तर से राजस्व बढ़ाने के लिए बिजली कंपनियों पर दबाव बनाने में जुटा है।

सूत्रों का कहना है कि बिजली उत्पादकों खास तौर पर एनटीपीसी जैसी केंद्रीय एजेंसियों को समय से भुगतान न होने से आने वाले दिनों में बिजली का संकट खड़ा हो सकता है। राज्य विद्युत उत्पादन निगम को भी भुगतान करने में दिक्कत आ रही है। कोल इंडिया का बकाया बढ़ता जा रहा है। इससे बिजलीघरों को कोयले की आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है। जिस तेजी से पावर कार्पोरेशन का घाटा बढ़ रहा है उसे देखते हुए बिजली दरों में भारी वृद्धि की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

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