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प्रयागराज : उत्तराधिकार को लेकर सामने आईं महंत नरेंद्र गिरि की तीन वसीयत, अभी मामला अधर में

बाघंबरी गद्दी मठ के उत्तराधिकार को लेकर महंत नरेंद्र गिरि की तीन वसीयतों का पता चला है। पांच दिन पहले फंदे से लटके मिले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के सुसाइड नोट में जिस उत्तराधिकारी का जिक्र है, उनके नाम ही वर्ष 2020 में आखिरी बार रजिस्टर्ड वसीयत किए जाने का दावा किया जा रहा है। इस वसीयत में भी उत्तराधिकारी के तौर पर बलवीर गिरि का ही नाम है।

 पिछले एक दशक के दौरान महंत नरेंद्र गिरि ने अपने उत्तराधिकारी को लेकर तीन वसीयतें बनवाईं। पहली बार बाघंबरी गद्दी मठ के महंत ने 2010 में उत्तराधिकार को लेकर वसीयत की, जिसमें उन्होंने शिष्य बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद वर्ष 2011 में उन्होंने दूसरी वसीयत तैयार करवाई, जिसमें अपने शिष्य स्वामी आनंद गिरि को उन्होंने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। 

इस बीच आनंद गिरि से बढ़ती दूरियों की वजह से चार जून 2020 को उन्होंने अपनी पूर्व की दोनों वसीयतों को निरस्त कराते हुए तीसरी रजिस्टर्ड वसीयत फिर तैयार कराई, जिसमें बलवीर गिरि को दोबारा बाघंबरी मठ का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। महंत नरेंद्र गिरि के वकील ऋषिशंकर द्विवेदी ने अमर उजाला को बाघंबरी मठ के उत्तराधिकार को लेकर महंत नरेंद्र गिरि की तीन वसीयतों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 29 अगस्त 2011 को महंत ने अपनी दूसरी वसीयत में आनंद गिरि को अपना उत्तरधिकारी बनाया था। 

तब उन्होंने कहा था कि बलवीर गिरि हरिद्वार में व्यस्त रहते हैं, इसलिए आनंद गिरि ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन, इस बीच कुंभ-2019 में महंत नरेंद्र गिरि ने बलवीर गिरि को हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर मंदिर से प्रयागराज के बाघंबरी मठ बुला लिया था। पिछले तीन साल से बलवीर गिरि बाघंबरी गद्दी मठ में ही महंत नरेंद्र गिरि के साथ रह रहे थे। हालांकि निरंजनी अखाड़े की परंपरा के मुताबिक उत्तराधिकारी पर निर्णय किस आधार पर और कैसे किया जाता है, यह भविष्य में देखने वाली बात होगी। ऐसे में वसीयत, सुसाइड नोट के सच के आधार पर निरंजनी अखाड़े का निर्णय क्या होगा, इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

चर्चा में आई बलवीर गिरि के नाम अंतिम वसीयत
सीबीआई जांच शुरू होने और उत्तराधिकार पर अनिर्णय की स्थिति के बीच शुक्रवार को महंत नरेंद्र गिरि की अंतिम वसीयत भी चर्चा में आ गई। महंत के वकील रहे ऋषि शंकर द्विवेदी ने दावा किया है कि महंत ने चार जून 2020 को बलवीर गिरि को रजिस्टर्ड वसीयत कर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर अखाड़े सुसाइड नोट पर संदेह और महंत नरेंद्र गिरि के हस्ताक्षर में भिन्नत को लेकर बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी नहीं भी मानते तो भी वह अपने अधिकार के लिए कोर्ट की शरण ले सकते हैं। इस वसीयत को सच माना जाए तो महंत बलवीर गिरि ही महंत नरेंद्र गिरि के अगले उत्तराधिकारी होंगे। 
 
एक हजार करोड़ से अधिक संपत्ति का मालिक होगा महंत नरेंद्र गिरि का उत्तराधिकारी
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और बाघंबरी गद्दी मठ के महंत की रहस्यमय मौत के बाद अगले उत्तराधिकारी पर सस्पेंस कायम हो गया है। शुक्रवार को धूल रोट की रस्म के बाद भी निरंजनी अखाड़े की ओर से इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। हालांकि, महंत नरेंद्र गिरि से जुड़े बाघंबरी गद्दी मठ और निरंजनी अखाड़े के पास मौजूदा समय एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। ऐसे में कहा जा रहा है कि महंतई चादर चाहे जिसे नसीब हो, लेकिन महंत नरेंद्र गिरि का होने वाला उत्तराधिकारी अथाह संपत्ति का मालिक बनेगा।

प्रयागराज के अलावा, मेजा, करछना, कौशांबी, झूंसी के अलावा मध्यप्रदेश, हरिद्वार और दिल्ली समेत अन्य राज्यों में महंत नरेंद्र गिरि के अधिपत्य वाले मठ, मंदिर और जमीन हैं। यही वजह है कि महंत नरेंद्र गिरि की मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। बाघंबरी मठ और निंरजनी अखाड़े की संपत्ति को भी महंत की मौत से जोड़कर देखा जा रहा है।

पंचायती निरंजनी अखाड़े के मंहत नरेंद्र गिरि के अधीन संपत्तियों में मठ और अखाड़े की सात सौ बीघे से अधिक सिर्फ जमीन है। संगमनगरी के अल्लापुर में आलीशान वैभव वाले बाघंबरी गद्दी मठ की सात बीघे से अधिक भूमि है। यहां मठ की ओर से संचालित स्वामी विचारानंद संस्कृत महाविद्यालय के अलावा गीर और शाहीवाल नश्ल की गायों की गोशाला देखने लायक है।

इसके अलावा दारागंज में भी निरंजनी अखाड़े का आश्रम और जमीन है। इसके अलावा संगम के पास त्रिवेणी बांध के नीचे बड़े हनुमान मंदिर के अलावा झूंसी में भी करीब  20 बीघा से अधिक भूमि के अलावा मंदिर, मठ और भवन करोड़ों की संपदा के रूप में मौजूद है। इसी तरह मांडा में 100 बीघा और मिर्जापुर के महुआरी में भी 400 बीघे से ज्यादा की जमीन बाघंबरी गद्दी मठ की है।

इसके अलावा कौशांबी में भी सौ बीघे से अधिक भूमि मठ की है, जिस पर खेती की जाती है। मिर्जापुर के नैडी में 70 और सिगड़ा में भी 70 बीघा जमीन अखाड़े की है। इस तरह देखा जाए तो प्रयागराज और आसपास के जिलों में ही बांघबरी गद्दी मठ की संपदा एक हजार करोड़ से अधिक की हो जाती है। इसके अलावा दूसरे राज्यों में निरंजनी अखाड़े की उज्जैन 250 बीघा जमीन, आधा दर्जन मठ और दर्जनभर आश्रम हैं। इसी तरह नासिक में भी 100 बीघा से अधिक जमीन, दर्जनभर आश्रम और मंदिर हैं।

बड़ोदरा, जयपुर, माउंटआबू में भी करीब जमीनें और दर्जन भर मंदिर और आश्रम हैं। निरंजनी अखाड़े का मुख्यालय हरिद्वार में है। वहां भी महंत नरेंद्र गिरि के अधीन आश्रम के अलावा जमीन भी है। नोएडा में भी बाघंबरी मठ से जुड़े आश्रम हैं। हालांकि जहां तक निरंजनी अखाड़े की बात है तो इस अखाड़े में महंत नरेंद्र गिरि को लेकर चार सचिव थे। उनकी मौत के बाद अब तीन सचिवों में मंहत रवींद्र पुरी, महंत रामरतन गिरि, महंत ओंकार गिरि के नाम शामिल हैं।

अखाड़े के सचिवों की यही टीम पूरी संपदा के संरक्षण, रखरखाव के अलावा उनके स्वामित्व का दायित्व संभालती है।  निरंजनी अखाड़े के सचित महंत ओंकार गिरि ने शुक्रवार को अमर उजाला को बताया कि धूल रोट के बाद पंच परमेश्वरों ने उत्तराधिकार पर किसी तरह की चर्चा से इनकार कर दिया है। अभी पूरा अखाड़ा गम में है। सीबीआई जांच पूरी होने तक अभी उत्तराधिकार पर निर्णय नहीं लिया जाएगा।

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