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सूरत-ए-हाल : कोरोना महामारी के बाद अब मौसमी बीमारियों के बोझ से दबे दिल्ली के अस्पताल

शुक्रवार सुबह करीब 11 बजे थे। सफदरजंग अस्पताल का मेडिसिन वार्ड दूर से पहचाना जा सकता था। एक से दूसरी और फिर तीसरी सीढ़ी पार करने के बाद जैसे ही 15 फुट चौड़ी गैलरी में प्रवेश किया तो सामने की तस्वीर शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। एक पल को यकीन ही नहीं हुआ कि यह देश की राजधानी के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक का नजारा है। 

हालात ऐसे, जैसे किसी जिला सरकारी अस्पताल में आ गए हों। गैलरी का फर्श मरीजों के लिए बिस्तर बना हुआ था। यहां जमीन पर पीड़ित के साथ उसके तीमारदार भी दीवार का सहारा लेकर बैठे थे। उसी वक्त स्ट्रेचर की लंबी लाइनें भी नजर आई। पूछने पर पता चला कि दोनों छोर पर मरीज और तीमारदार होने की वजह से यह वार्ड तक नहीं पहुंच सकती हैं।

डॉक्टर ही बाहर आकर एक-एक स्ट्रेचर पर जाकर इलाज की भागमभाग करते दिखाई दे रहे थे। डॉक्टर से भी कुछ पूछ पाते, उससे पहले ही वह बोला- ‘यहां स्थिति ठीक नहीं है, अंदर एक भी बेड नहीं है। मैं दवा लिख देता हूं। फिलहाल कोई चिंता की बात नहीं है। आप चाहें तो घर जाकर भी यह दवाएं ले सकते हैं।’

यह हालात देखने के बाद मेडिसिन वार्ड की स्थिति भी देखने का विचार आया। गैलरी में बढ़ते ही दीवारों पर टंगी सलाइनें हकीकत बयां कर रही थीं। ग्लूकोज चढ़ाने के लिए अस्पतालों में बाकायदा सलाइन स्टैंड होता है, लेकिन यहां इतने मरीज हैं कि अस्पताल के सलाइन स्टैंड कम पड़ गए हैं। खिड़की या दीवारों पर कील लगाकर सलाइन टांगने का ही विकल्प बचा है। इसके ठीक नीचे मरीज फर्श पर बैठे हैं और उन्हें ग्लूकोज दिया जा रहा है, ताकि कमजोरी से थोड़ी राहत मिल सके।

कोरोना महामारी के बीच ऐसे हालात में सामाजिक दूरी की बात उचित भी नहीं। वार्ड में जाने के बाद स्थिति और अधिक गंभीर मिली, जहां एक बेड पर तीन मरीज मिले। फर्श पर बैठे दो युवाओं से जब बातचीत की तो पता चला कि यह दोनों जामिया विश्वविद्यालय के छात्र हैं और इनमें से एक बुखार ग्रस्त है, जिसने अपना नाम यशवीर और दूसरे ने शकील बताया। इन्होंने कहा कि डॉक्टर इलाज करने तो आ रहे हैं, लेकिन यहां एक-दूसरे को देखकर ही बीमारी जैसा महसूस हो रहा है। पता चला कि सफदरजंग में ही 300 से ज्यादा मरीज केवल बुखार की परेशानी को लेकर मौजूद हैं और इमरजेंसी वार्ड में रोजाना 100 से ज्यादा मरीज रात के वक्त पहुंच रहे हैं। 

महामारी के बाद फिर संकट में योद्धा
अस्पताल के डॉक्टरों ने कहा कि महामारी के बाद फिर से योद्धा (स्वास्थ्य कर्मचारी) संकट में आ गए हैं। मौसमी बीमारियों की वजह से बुखार फैल रहा है। अभी कोरोना का तनाव कम भी नहीं हुआ है और फिर से स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ पड़ गया है। उन्हें पिछले तीन सप्ताह से एक दिन की छुट्टी नहीं मिली है। शनिवार और रविवार को उन्हें लगातार 48 घंटे तक काम करना पड़ रहा है। 

दूसरे अस्पतालों में लैब पर बोझ, दो शिफ्ट भी कम
सफदरजंग के अलावा एम्स, आरएमएल, लोकनायक अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में लैब को लेकर जब हालात पता किए तो जानकारी मिली कि यहां दो शिफ्ट भी कम पड़ रही हैं और जांच के सैंपल की संख्या भी तेजी से बढ़ गई। कोरोना और डेंगू के बीच लक्षण एक जैसे हैं, लेकिन हर मरीज को संदिग्ध मानते हुए सैंपल लेकर जांच जरूर कराई जा रही है। इसकी वजह से इन अस्पतालों के माइक्रो बायोलॉजी विभाग पर काफी दबाव है।

100 में से 25 को डेंगू
दिल्ली सरकार का कहना है कि डेंगू को लेकर अभी स्थिति काफी नियंत्रण में है, लेकिन अस्पतालों में बुखार के मामले ही सबसे ज्यादा हैं। स्थिति यह है कि हर चौथा मरीज यानी बुखार के 100 में से 25 मरीज डेंगू ग्रस्त मिल रहे हैं। हालांकि, अस्पतालों से मिली जानकारी के अनुसार केवल डेंगू ही नहीं, बल्कि वायरल-फ्लू, मलेरिया, पोस्ट कोविड और गैर कोविड की वजह से भी मरीजों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।