पड़ोसी राज्यों में पराली जलने की घटनाएं नहीं थम रही हैं। छठ महापर्व के दौरान भी दिल्ली-एनसीआर में जमकर आतिशाबाजी हुई। नतीजा, बृहस्पतिवार को हवा की सेहत बिगड़कर गंभीर श्रेणी में पहुंच गई है। दिनभर सड़कों पर स्मॉग की मोटी परत छाई रही और दृश्यता का स्तर कम रहा। स्मॉग के कारण लोगों को आंखों में जलन व सांस संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अगले 24 घंटे में भी दमघोंटू हवा से राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। हवा की रफ्तार कम होने के कारण आज हवा की गुणवत्ता और भी बिगड़ सकती है।
सफर के मुताबिक, बीते 24 घंटे में पड़ोसी राज्यों में 3,914 पराली जलने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। इसकी दिल्ली के प्रदूषण में 26 फीसदी हिस्सेदारी रही है। हवा की रफ्तार कम होने व उत्तर-पश्चिम दिशा से आने वाली हवाओं के कारण दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ रहा है।
सफर के परियोजना निदेशक गुरफान बेग के मुताबिक, स्थानीय स्तर पर चलने वाली हवाएं 5.5 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रही हैं। लेकिन, बृहस्पतिवार की रात से इनकी रफ्तार में कमी होगी और यह अधिक शांत हो जाएगी। इससे दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में बढ़ेगा। आगामी 13 नवंबर से प्रदूषण से हल्की राहत मिलने के आसार हैं। हालांकि, तब भी हवा बहुत खराब श्रेणी के उच्चतम स्तर में दर्ज की जाएगी। बीते 24 घंटे में हवा में पीएम 10 का स्तर 387 व पीएम 2.5 का स्तर 237 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। दोनों प्रदूषक बहुत खराब श्रेणी में दर्ज किए गए हैं।
लगातार दूसरे दिन गाजियाबाद का देश का सबसे प्रदूषित शहर
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, बृहस्पतिवार को दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 411 रहा। इससे एक दिन पहले यह 372 रहा था। वहीं, एनसीआर में गुरुग्राम को छोड़कर सभी शहर गंभीर श्रेणी में दर्ज किए गए हैं। दिवाली के बाद से सबसे खराब हालात गाजियाबाद के बने हुए हैं। बीते 24 घंटे में यहां का एक्यूआई 461 रिकॉर्ड किया गया है। लगातार दूसरे दिन गाजियाबाद देश का सबसे प्रदूषित शहर रहा है। इसके बाद सबसे गंभीर हालात उत्तरप्रदेश के वृंदावन के रहे। यहां का एक्यूआई 458 रहा।
दिल्ली-एनसीआर के आंकड़े
11 नवंबर 10 नवंबर
दिल्ली 411 372
फरीदाबाद 412 380
गाजियाबाद 461 428
ग्रेटर नोएडा 417 378
गुरुग्राम 378 340
नोएडा 434 374
पिछले के मुकाबले इस वर्ष अधिक जल रही है पराली
पड़ोसी राज्यों में लगातार पराली जलने की घटनाएं रिकॉर्ड हो रही हैं। यही नहीं पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष अक्तूबर से लेकर 11 नवंबर तक अधिक पराली जलने की घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं। पड़ोसी राज्यों से आने वाला पराली का जहरीला धुआं दिल्ली-एनसीआर की हवा को और दमघोंटू बना रहा है। इससे लोगों की सांसों पर संकट खड़ा हो गया है।
सफर के आंकड़ों के मुताबिक, 20 अक्तूबर से 11 नवंबर के बीच सबसे अधिक पराली जलने की घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं। बीते वर्ष जहां 30 अक्तूबर तक अधिकतम तीन हजार पराली जलने की घटनाएं रिकॉर्ड हुई थीं। इस वर्ष अक्तूबर में पराली जलने की घटनाएं चार हजार के करीब पहुंच गईं। एक से तीन नवंबर के बीच 3937 घटनाएं रिकॉर्ड हुई हैं।
पिछले वर्ष यह आंकड़ा तीन हजार के करीब रहा था। इस बार सबसे अधिक पराली जलने की घटनाएं दिवाली की रात के बाद से दर्ज हुई हैं। चार नवंबर की रात 5159 जगहों पर पराली जलाई गई। इसके बाद छह नवंबर को 5450 जगहों पर पराली जलने घटनाएं रिकॉर्ड हुई हैं। बीते वर्ष इन दिनों 3299 से लेकर 4189 जगहों पर पराली जलने की घटनाएं रिकॉर्ड हुई थीं।
वहीं, इस वर्ष नौ से 10 नवंबर तक 5317 जगहों पर पराली जली है, जबकि पिछले वर्ष इन दिनों दो हजार से 2500 जगहों पर पराली जलने की घटना रिकॉर्ड हुई थीं।
48 फीसदी रही पराली के धुएं की हिस्सेदारी
इस वर्ष पराली के धुएं की प्रदूषण में अधिकतम 48 फीसदी हिस्सेदारी रही है। पिछले वर्ष अधिकतम करीब 42 फीसदी तक पराली का धुआं प्रदूषण के लिए जिम्मेदार रहा था। बीते वर्ष 30 अक्तूबर से एक नवंबर के बीच सबसे अधिक पराली जलने की घटनाएं रिकॉर्ड की गई थीं। इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में अधिक तेजी देखी गई है।
तीन नवंबर तक पराली जलने की हिस्सेदारी सिर्फ आठ फीसदी रही थी। इसके बाद चार से सात नवंबर के बीच इसकी हिस्सेदारी 25 से 36 फीसदी के आंकड़े को पार करते हुए 42 से 48 फीसदी तक दर्ज की गई। आठ नवंबर के बाद से पराली के धुएं की हिस्सेदारी 11 नवंबर तक घटकर 26 फीसदी रह गई।
दिल्ली में शाम साढ़े सात बजे से लेकर सुबह साढ़े नौ बजे तक अधिक प्रदूषण
राजधानी में सर्दी की शुरुआत में सिर्फ वाहनों से 50 से अधिक प्रदूषण होता है। इसके बाद घरेलू, उद्योग, धूल व अन्य चीजें प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। ग्रीन थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ओर जारी एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष 24 अक्तूबर से आठ नवंबर तक सर्दियों के शुरुआती चरण में प्रदूषण में 50 फीसदी से अधिक वाहनों का योगदान है। इसके बाद घरेलू प्रदूषण (12.5-13.5 फीसदी), उद्योग (9.9-13.7 फीसदी), निर्माण (6.7-7.9 फीसदी), कचरा जलाने और सड़क की धूल ( 4.6-4.9 फीसदी और 3.6-4.1फीसदी) क्रमश: है।
यह रिपोर्ट पुणे में भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के वायु गुणवत्ता प्रबंधन के निर्णय समर्थन प्रणाली से स्रोत योगदान पर वास्तविक समय के आंकड़ों पर आधारित है। यह प्रणाली दिल्ली में संभावित उत्सर्जन स्रोतों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। साथ ही दिल्ली के बाहर के 19 जिलों से स्रोतों के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों में पराली जलने के डाटा को भी इकत्रित करती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, दो से छह नवंबर के बीच सर्दी के प्रारंभिक चरण में एनसीआर में प्रदूषण स्रोतों का योगदान 70 से 80 फीसदी तक रहा। दीपावली के बाद स्मॉग में गिरावट आई, लेकिन दिल्ली का स्थानीय स्तर का प्रदूषण बढ़ा।
वहीं, अन्य राज्यों में भी पराली जलाने का योगदान दिवाली से पहले कम रहा, लेकिन दिवाली के बाद इसकी संख्या में बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबी दूरी की हवा पड़ोसी राज्यों में जलने वाले पराली के अधिक प्रदूषण को दिल्ली लेकर आई है। वहीं, दिल्ली में शाम 7:30 बजे से सुबह 9:30 बजे तक प्रदूषण के स्तर में भी इजाफा देखा गया है।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक, रिसर्च एंड एडवोकेसी अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा है कि दिल्ली में अपशिष्ट प्रबंधन पर कार्रवाई के साथ धूल नियंत्रण के तेज प्रयास होने चाहिए।