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मथुरा में कंस वध मेला आज: शाम चार बजे से शुरू होगा आयोजन, लोगों ने लट्ठ किए तैयार

मथुरा में गोपाष्टमी और अक्षय नवमी के बाद अब शनिवार को कंस वध मेला का आयोजन होगा। इसकी तैयारियां शहर में चतुर्वेदी समाज द्वारा कर ली गई हैं। माथुर चतुर्वेद परिषद इस आयोजन को भव्य बनाने में जुटा है। परिषद ने व्यवस्थाओं की दृष्टि से मेला क्षेत्र को चार सेक्टरों में विभाजित किया है। लोगों ने मेला के लिए अपने लट्ठ तैयार कर लिए हैं, जिनके साथ मेले में शामिल होंगे।

कंस मेला को लेकर श्री माथुर चतुर्वेद परिषद के मुख्य संरक्षक एवं अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश पाठक ने मेला के दौरान किसी भी व्यक्ति या समाज को कोई परेशानी न हो इसी के दृष्टिगत मेला क्षेत्र को 4 सेक्टरों में बांटा है। परिषद के महामंत्री राकेश तिवारी ने बताया कि प्रथम सेक्टर में हनुमान गली से कंस पुतले को और ठाकुरजी को कंस टीले तक ले जाने की जिम्मेदारी नीरज चतुर्वेदी, अनुज पाठक, आशीष चतुर्वेदी, आदित्य चतुर्वेदी, चिराग चतुर्वेदी, आकाश चतुर्वेदी को दी गई है। 

द्वितीय सेक्टर में संजय चतुर्वेदी अल्पाइन, कमल चतुर्वेदी, अमित चतुर्वेदी व गोपाल चतुर्वेदी, कृष्णा चतुर्वेदी, कान्हा चतुर्वेदी, तिलक पाठक को दी है। तृतीय सेक्टर में मनोज पाठक, संजीव चतुर्वेदी, अनिल चतुर्वेदी, पम पम उदय चतुर्वेदी, अभिषेक चतुर्वेदी कंस टीले की सभी व्यवस्थाओं को पूर्ण करेंगे। चतुर्थ सेक्टर में नवीन नागर व गिरधारी लाल पाठक, अमित चतुर्वेदी, राजकुमार कप्पू, अमित पाठक को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह मेला सायं 4 बजे से शुरू होगा।
चतुर्वेदी समाज ने दिया था कृष्ण-बलराम का साथ
कंस वध के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले मेला की परंपरा प्राचीन है। इस परंपरा को उत्सव के रूप में शहर का चतुर्वेदी समाज सदियों से मनाते आ रहा है। यही धार्मिक परंपरा एक बार फिर शनिवार को शहर में निभाई जाएगी, जिसका उत्साह चतुर्वेदी समाज में घर-घर देखने को मिलेगा। समाज का दावा है कि जिस वक्त कृष्ण-बलराम कंस को मारने गए थे तो चतुर्वेदी समाज के पहलवानों ने साथ दिया था।

देश-विदेश से मथुरा आए चतुर्वेदी समाज के लोग
कंस मेला के लिए चतुर्वेदी समाज के लोग देश-विदेश से मथुरा में डेरा डाल चुके हैं। कोई मुंबई और बड़ौदा से आया है तो कोई दुबई से आकर इस आयोजन की प्रतीक्षा में है।

62 वर्षीय स्वतंत्रदेव चतुर्वेदी कंस मेला का इंतजार कर रहे हैं। वह बताते हैं कि दुबई जाने के बाद भी वे इस आयोजन में शामिल होने के लिए मथुरा आते हैं। यहां दिवाली भी अन्य परिजनों के साथ मनाने के बाद कंस मेला में शामिल होने के बाद वापसी करते हैं। 

61 वर्षीय महेंद्र चतुर्वेदी मुंबई में रहते हैं, लेकिन कंस मेला के लिए वे पिछले 40 वर्षों से निरंतर मथुरा आते हैं। इन दिनों वे काफी समय पहले आ गए थे, लेकिन वापसी के लिए कंस मेला का इंतजार कर रहे हैं। वे कहते हैं कि रिटायर्ड होने के बाद भी उनका मेला के प्रति आकर्षण युवा अवस्था जैसा ही है। 
क्या कहते हैं लोग 
संस्कृत शिक्षक मुकेश चतुर्वेदी ने कहा कि कंस वध के बाद मथुरा के लोगों को यह विश्वास नहीं हो रहा था कि कंस मारा गया है। यहां के लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए कंस के मृत शरीर को घसीटकर किले से कंसखार तक लाया गया। किले से सामान भी लेकर लाए। इसमें छज्जू नामक चौबे ने खाट के पाये लोगों को दिखाए। जिसे देखकर मथुरावासियों ने इसका विश्वास किया।

द्वारिकेश संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य सहदेव कृष्ण चतुर्वेदी ने कहा कि चतुर्वेदी समाज के पहलवानों ने कंस वध के लिए भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का साथ दिया था। उनके साथ गए थे। यही कारण है कि कंस वध के बाद चतुर्वेदी समाज इस उत्सव के रूप में मनाता आ रहा है। द्वारका बनने पर भगवान श्रीकृष्ण ने संपूर्ण मथुरावासियों को वहां पहुंचा दिया था, लेकिन चतुर्वेदी समाज को द्वारका में रहना पसंद नहीं आया ओर वे फिर मथुरा आ गए। इसके बाद फिर मथुरा को बसाया गया।

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