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प्रदूषण का हमला: खराब हुए कान, नाक और गला, 10 माह की सर्वे रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

प्रदूषण नाक, कान और गले को बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है। जिला अस्पताल की ओपीडी में 10 माह में पहुंचे 12 हजार मरीजों पर हुए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। जनवरी 2021 से अक्तूबर 2021 के बीच जिला अस्पताल में पहुंचे ईएनटी के करीब 25 प्रतिशत मरीज ऐसे निकले, जिनके सुनने की क्षमता प्रभावित थी इनमें से अधिकांश को टिनिटस (कान बजना) बीमारी निकली है। चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकांश मरीज 20 से 50 साल उम्र के बीच के थे। इन्हें नाक की एलर्जी और गले में संक्रमण की भी शिकायत थी। सामान्य तौर पर यह बीमारी पहले 60 साल की उम्र के बाद होती थीं, मगर अब युवाओं को भी चपेट में ले रही है।  

जुकाम और एलर्जी को हल्के में न लें : जिला अस्पताल में ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. बीपी कौशिक ने बताया कि मानक से ज्यादा ध्वनि प्रदूषण तो सीधे कानों को प्रभावित करता है, वहीं वायु प्रदूषण से साइनोसाइटिस, जुकाम और एलर्जी होती है, जो बाद में कानों को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है। जैसे-टिनिटस बीमारी जुकाम के बाद प्रभावित करती है। इसलिए जुकाम और एलर्जी को हल्के में न लें। 

नाक बहने से भी सुनने की क्षमता पर असर
ईएनटी डॉ. शिवम कुमार ने बताया कि जुकाम में मरीजों की नाक बहती है। नाक से कान के बीच स्थित यूस्टेकियन ट्यूब में नाक से पानी चला जाता है। इस पानी के कारण मध्य कान में संक्रमण हो जाता है। कई बार कफ के कारण ट्यूब ब्लॉक हो जाती है। इससे कान संक्रमण होने के साथ ही सुनने की क्षमता भी मरीज की कम हो जाती है।

मोबाइल से भी कान को नुकसान 
तेज स्वर में संगीत सुनने और ईयरफोन पर घंटों गाना सुनने के कारण कान की बाहरी परत क्षतिग्रस्त हो जाती है और इस कारण सुनने की क्षमता कम हो जाती है। कानों में दर्द होना, धीमी आवाजें न सुनाई देना, किसी तरह का दबाव महसूस होना, सूजन आना या कान से तरल पदार्थ का बहना, कानों की प्रमुख समस्याएं निकली हैं। 20 से 50 साल आयु वर्ग के करीब 80 प्रतिशत लोग मोबाइल फोन का अधिक प्रयोग करते हैं, जिनसे उन्हें कानों की समस्याएं हो रही हैं। वाहनों के बढ़ते उपयोग से ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ गया है, जो कानों को नुकसान पहुंचा रहा है।

ध्वनि और वायु प्रदूषण सबसे बड़ा कारण
जिला अस्पताल में ऑडियो मीटर के जरिए मरीजों की सुनने की क्षमता मापी जाती है, जिसमें पता चला कि बड़ी संख्या में युवा प्रदूषण (वायु-ध्वनि) के कारण कानों की बीमारियों और सुनने की क्षमता कम होने के शिकार हो रहे हैं।

तो हो जाएं सावधान
-कानों में संक्रमण के चलते दर्द का उभरना सबसे पहला लक्षण होता है।
-कान में भारीपन महसूस होना।
-मवाद होना, बुखार, कानों का बहना।
-सोने में परेशानी, सिरदर्द, भूख न लगना।
-कानों में घंटी की आवाज सुनाई देना।
-चक्कर आना, उल्टी होना, सुनने की क्षमता का कमजोर होना।
यह हैं सुनने की क्षमता के मानक
-15 से 20 डेसीबेल तक की आवाज से कान को कोई नुकसान नहीं होता है
-60 से 65 डेसीबेल के बाद कान को आवाज चुभने लगती है
-115 डेसीबेल की आवाज से कान का पर्दा फट सकता है
-85 से 120 डेसीबेल आवाज पटाखे की होती है
-85 से 115 डेसीबेल आवाज हेडफोन का होता है

एनसीआर के प्रदूषित शहरों में तीसरे नंबर पर मेरठ, एक्यूआई 269 
प्रदूषण का कहर कम नहीं हो रहा। रविवार को भी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 296 रहा। बेगमपुल पर 320 और कमिश्नरी आवास चौराहे पर 314 रहा। उधर अधिकतम तापमान 26.6 और 9.4 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। कृषि विवि के मौसम वैज्ञानिक डॉ. यूपी शाही का कहना है कि दो तीन दिन तक अभी मौसम में ज्यादा परिवर्तन के आसार नहीं है। दिन में थोड़ी हवा की गति बढने से मौसम  थोड़ा ठंडा होगा। रात में ठंड में और भी इजाफा होगा।
 
शहर और एक्यूआई

जयभीमनगर   294
बेगमपुल      320 
बच्चा पार्क    298 
ईव्ज चौराहा   288 
हापुड़ चौराहा  301 
केसर गंज      311 
कैंट चौराहा    285     
साकेत चौराहा 314

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