Mahashivratri Abhishek Vidhi: महाशिवरात्रि की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। भगवान शिव के भक्तों का यह सबसे बड़ा त्योहार 1 मार्च 2022, मंगलवार को पड़ रहा है। कोरोना की पाबंदियां घटने के बाद 2 साल में यह पहला मौका है जब शिवालयों में भक्त जा सकेंगे और पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजा-अर्चना कर सकेंगे। भोलेनाथ को अभिषेक बहुत प्रिय है। शिव पुराण में लिखा है कि जो भक्त सही विधि के साथ शिवजी का अभिषेक करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। सवाल यही है कि शिवजी के अभिषेक करने का सही तरीका (Mahashivratri Abhishek Vidhi) कौन-सा है? दरअसल, समय के साथ बदली रीतियों के कारण भक्त अंजाने में अभिषेक के दौरान कई गलतियां करते हैं। उन्हें लगता है कि यही सही है, लेकिन शास्त्र सम्मत नहीं होने के कारण सही फल नहीं मिलता है। यहां जानिए शिवजी का अभिषेक करने की सही विधि
सबसे पहले भगवान शिव का ध्यान करें। तांबे के बर्तन में दूध लेकर उसके चारों ओर कुमकुम से तिलक करें। ‘ऊं श्री कामधेनवे नमः’ मंत्र का जाप करते हुए पात्र में ‘मोली’ बांध दें। भगवान शिव के प्रिय मंत्र ‘ऊं नमः शिवाय’ का जाप करते हुए ‘शिवलिंग’ पर फूल चढ़ाएं। इसके बाद ‘शिवलिंग’ को साफ पानी से धोकर साफ कपड़े से पोंछें। इसके बाद गाय के दूध से अभिषेक करें। फिर शहद चढ़ाएं। गाय के दूध से बने घी, चंदन, केसर के लेप करें। गंगा जल से शिवलिंग को एक बार फिर साफ करें। शक्कर का लेप करें। शुद्ध जल चढ़ाएं और आखिरी में चंदन का लेप लगाकर बिल्वपत्र तथा धतूरा चढ़ाएं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरैन ऊं नम: शिवाय का जाप करते रहें। अगरबत्ती जलाएं। धूप दें और आरती करें।
Mahashivratri Abhishek Vidhi: भूलकर भी इस्तेमाल न करें ये चीजें
भगवान शिव की पूजा और अभिषेक में कुछ चीजों का उपयोग वर्जित है। इनमें शामिल हैं- तुलसी, शंख, नारियल पानी, केतकी का फूल और हल्दी। शिवलिंग को कभी भी हल्दी नहीं लगाई जाती है क्योंकि महिलाओं की सुंदरता के लिए हल्दी का उपयोग किया जाता है, और शिवालिंग को शिव का रूप माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार केतकी के फूल ने झूठ में ब्रह्मा जी का साथ दिया था। इस कारण शिवजी ने केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह शिवलिंग पर कभी नहीं चढ़ाया जाएगा।
शिवलिंग पर नारियल चढ़ाया जाता है, लेकिन नारियल पानी नहीं, क्योंकि नारियल पानी को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। भगवान शिव ने जालंधर नामक राक्षस का वध किया था। पति की मृत्यु के बाद जालंधर की पत्नी वृंदा तुलसी का पौधा बन गई। यही कारण है कि तुलसी को शिव की पूजा में शामिल नहीं किया जाता है।