यूपी विधानसभा चुनाव के बहाने विपक्ष लोकसभा चुनाव की पटकथा भी लिख रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वाराणसी पहुंच गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ ममता बनर्जी की जनसभा करने के सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। इसे ममता का प. बंगाल से बाहर सियासी विस्तार के तौर पर देखा जा रहा है। इसमें गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दल की एकजुटता नजर आ रही है।
प. बंगाल के विधानसभा चुनाव में तीसरी बार जीत दर्ज कर ममता बनर्जी भाजपा विरोधियों की उम्मीद बनकर उभरी हैं। अब वह उत्तर प्रदेश में सक्रिय हैं। यहां से सियासी संदेश देकर वह भविष्य की रणनीति तैयार कर रही हैं। फरवरी में लखनऊ पहुंची ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया था कि यूपी से भाजपा का सफाया होने का मतलब है कि वर्ष 2024 में केंद्र से भी उसे बाहर कर देना।
उन्होंने यह भी दोहराया कि अब कम्युनिस्ट भी साथ आ गए हैं। वह विधानसभा चुनाव को केंद्र सरकार के खिलाफ हमला बोलने का माकूल वक्त मानती हैं। सपा सहित अन्य विपक्षी दलों के रणनीतिकार भी मानते हैं कि यूपी से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का मतलब है कि वर्ष 2024 की जंग जीत लेना। यही वजह है कि वाराणसी की रैली में अखिलेश यादव के साथ रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह, प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव सहित सपा गठबंधन में शामिल अन्य नेता भी मौजूद रहेंगे।
पवार से आगे निकलीं ममता
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार कुछ समय पहले नई दिल्ली स्थित आवास पर विभिन्न नेताओं के साथ बैठक करके भाजपा विरोधी मोर्चे की अटकलों को हवा दे चुके हैं। यूपी चुनाव में भी पवार के आने की चर्चा थी। सपा ने उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव मैदान में उतारा है, लेकिन वह यहां नहीं आए। ऐसे में ममता बनर्जी तो पवार से आगे निकलतीं दिख रही हैं। ममता ने यहां विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं ली। मगर वह सपा के पक्ष में चुनाव प्रचार में जुटी हैं। इसके भी सियासी मायने हैं। ममता सपाइयों को साथ लेकर यह साबित करना चाहती है कि वह यूपी में तात्कालिक तौर पर बिना किसी हिस्सेदारी के बड़ी लकीर खींचना चाहती हैं। इसमें सफलता मिली तो लोकसभा चुनाव में वह सपा से गठबंधन कर कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती हैं।
उठा चुकी हैं सांस्कृतिक मुद्दा
ममता बनर्जी अपने लखनऊ दौरे में सांस्कृतिक मुद्दा भी उठा चुकी हैं। उन्होंने गंगा सागर मेले का जिक्र करते हुए कहा था कि उस आयोजन में अयोध्या के संत आयोजक की भूमिका में होते हैं, पर उसका पूरा खर्च पश्चिम बंगाल सरकार उठाती है। क्योंकि हम धर्मनिरपेक्ष राजनीति करते हैं और उसे मानते हैं। ममता की रणनीति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह भाजपा के साथ-साथ असदुद्दीन ओवैसी पर भी हमलावर हैं। जबकि अन्य दलों के प्रति उनका रवैया नर्म रहता है।
राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा रहीं ताकत
ममता बनर्जी कांग्रेस में भी सेंधमारी कर रही हैं। उन्होंने चुनाव के वक्त साथ छोड़कर जाने वालों को अपने खेमे में वापस ले लिया और कांग्रेस नेताओं को भी जोड़ा है। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री एडवर्ड फलेरियो अब तृणमूल में हैं। ममता ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया है। मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा भी तृणमूल में आ गए हैं। कांग्रेस की सांसद रह चुकीं सुष्मिता देव भी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के यूपी से पूर्व विधायक ललितेश पति त्रिपाठी भी टीएमसी में हैं।