इन 2 शहरो में बढ़ गया है वायु प्रदूषण, पढ़े पूरी ख़बर
उत्तराखंड में दिवाली से पहले आबोहवा बिगड़ने लगी है। चिंता की बात है कि दो शहरें में प्रदूषण बढ़ गया है। सबसे ज्यादा प्रदूषण हरिद्वार एवं देहरादून में है। हरिद्वार में वायु की गुणवत्ता (एक्यूआई) का स्तर 138 और देहरादून में 126 पहुंच गया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिवाली से पूर्व कराई गई थर्ड पार्टी मॉनीटिरिंग में यह आंकड़े सामने आए हैं।
एक्यूआई के मध्यम स्तर पर पहुंच जाने से फेफड़े, सांस, दमा एवं दिल के मरीजों, बच्चों एवं बुजुर्गों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने बताया कि दिवाली से पहले और बाद में प्रदेशभर में सात जगहों पर थर्ड पार्टी निगरानी कराई जा रही है।
देहरादून में घंटाघर, नेहरू कॉलोनी समेत ऋषिकेश, हरिद्वार, काशीपुर, रुद्रपुर और हल्द्वानी में निगरानी शुरू की गई है। सभी क्षेत्रीय अधिकारियों को इसके लिए निर्देशित किया गया था। एयर क्वालिटी इंडेक्स निकालने के लिए पीएम-10, पीएम 2.5, एसओटू, एनओएक्स पैरामीटर पर वायु की गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है।
ध्वनि प्रदूषण की निगरानी को दीपावली से एक दिन पहले एवं एक दिन बाद साउंड लेवल मीटर से रीडिंग ली जाएगी। जिसका औसत निकाल लिया जाएगा।
यह है स्थिति
दिनाक घंटाघर, दून नेहरू कॉलोनी, दून ऋषिकेश, हरिद्वार, काशीपुर, हल्द्वानी, रुद्रपुर
17 अक्टूबर 115 102, 95, 108, 105, 102, पता नहीं
18 अक्टूबर 118 104, 96, 117, 106, 100, 102
19 अक्टूबर 119 107, 94, 129, 108, 103, 104
20 अक्टूबर 114 106, 98, 134, 114, 106, 108
21 अक्टूबर 126 118, 106, 138, 109, 99, 105
ये है एक्यूआई के मानक
एक्यूआई स्तर
0-50 अच्छा
51-100 संतोषजनक
101-200 मध्यम
201-300 खराब
301-400 बेहद खराब
401-500 गंभीर
प्रदूषण से इन्हें समस्या
सांस एवं दमा रोग विशेषज्ञ डा. अनुराग अग्रवाल ने कहा कि प्रदूषण बढ़ने से बच्चे, गर्भवती महिलाएं और सांस समेत दिल के मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। हवा में धूल के कणों के साथ घुले बारूद के कण और धुएं के संपर्क में ज्यादा देर रहने वालों को खांसी, आंखों में जलन, त्वचा में चकत्ते पड़ने के साथ उल्टी की समस्या भी हो सकती है। पटाखों के प्रयोग से और ज्यादा प्रदूषण बढ़ेगा।
यह है प्रदूषण का कारण
सडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल के मुताबिक वायु प्रदूषण के लिए वाहन प्रदूषण, निर्माण गतिविधियां, निर्माण सामग्री, सड़कों पर धूल, कृषि या फसल अवशेषों को जलाना, औद्योगिक और बिजलीघर, उत्सर्जन, नगर निगम के कचरे को जलाना, थर्मल एनर्जी पावर प्लांट, पहाड़ी क्षेत्रों में खनन आदि है। इन पर मॉनीटिरिंग जरूरी है।