Monday , November 25 2024

ग्लोबल मंदी व महंगाई’ की आंच से झूलसता ‘कारपेट इंडस्ट्री

प्रतिद्वंदी देशों के मुकाबले भारतीय कालीनों की लागत अधिक होने से डिमांड में भी भारी गिरावट देखने को मिल रही है। काका ओवरसीज ग्रूप लिमिटेड के डायरेक्टर योगेन्द्र राय काका का कहना है कि सरकार जल्द ही इस मामले में ठोस पहल नहीं किया तो आने वाले छह महीनों में निर्यात दर में 50 फीसदी की गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि पहले से ही संकटग्रस्त कारपेट इंडस्ट्री को उबारने के लिए कारोबारी कई उत्पादों पर सीमा शुल्क हटाने, रॉड टेप खत्म कर कृषि इक्सपोर्ट के तहत मिलने वाली पांच प्रतिशत इंसेंटिव को बहाल करने की मांग करते रहे है। कालीन निर्यातक काका राय के मुताबिक प्रतिद्वंदी देशों में अधिकांश के कालीन मशीनमेड होते है। इसके चलते उनकी लागत कम होती है। जबकि 90 फीसदी भारतीय कालीनें हस्तनिर्मित होने से लागत अधिक होती है। यह अलग बात है कि हम भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों के नाम पर ही अब तक प्रतिद्वंदी देशों का मुकाबजा करते आ रहे है। लेकिन हाल के दिनों में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक मंदी की आशंका व कपास सहित अन्य वूलों के बढ़ते दाम से कालीनों की लागत में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गयी है

सुरेश गांधी

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक मंदी की आशंका व कपास सहित अन्य वूलों के बढ़ते दाम कालीन निर्यातकों के लिए इक्सपोर्ट अब घाटे का कारोबार होकर रह गया है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि प्रतिद्वंदी देशों के मुकाबले भारतीय कालीनों की लागत अधिक होने से डिमांड में भी भारी गिरावट देखने को मिल रही है। काका ओवरसीज ग्रूप लिमिटेड के डायरेक्टर योगेन्द्र राय काका का कहना है कि सरकार जल्द ही इस मामले में ठोस पहल नहीं किया तो आने वाले छह महीनों में निर्यात दर में 50 फीसदी की गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि पहले से ही संकटग्रस्त कारपेट इंडस्ट्री को उबारने के लिए कारोबारी कई उत्पादों पर सीमा शुल्क हटाने, रॉड टेप खत्म कर कृषि इक्सपोर्ट के तहत मिलने वाली पांच प्रतिशत इंसेंटिव को बहाल करने की मांग करते रहे है।

कालीन निर्यातक काका राय के मुताबिक प्रतिद्वंदी देशों में अधिकांश के कालीन मशीनमेड होते है। इसके चलते उनकी लागत कम होती है। जबकि 90 फीसदी भारतीय कालीनें हस्तनिर्मित होने से लागत अधिक होती है। यह अलग बात है कि हम भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों के नाम पर ही अब तक प्रतिद्वंदी देशों का मुकाबजा करते आ रहे है। लेकिन हाल के दिनों में रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक मंदी की आशंका व कपास सहित अन्य वूलों के बढ़ते दाम से कालीनों की लागत में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गयी है। खास बात यह है कि महंगाई दर को देखते हुए हम निर्यातक चाहकर भी बुनकरों की बुनाई दर में वृद्धि नहीं कर पा रहे है। परिणाम यह है कि मजदूरी न बढ़ने से बुनकरों का भी पलायन मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे बड़े शहरों की ओर तेजी से बढ़ा है। हाल ऐसे ही चलता रहा तो बुनकर ढूढ़े नहीं मिलेंगे और अगल छह माह में निर्यातक दर में 50 फीसदी की कमी आ सकती है। सरकार से उनकी मांग है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए ग्लोबल दबाव बनाने के साथ ही पूर्व में निर्यातकों को दिए जा रहे इंसेटिव को तत्काल प्रभाव से बहाल करने की जरुरत है। वरना भारत के इस उद्योग पर एक अनुमान के मुताबिक 4500 करोड़ का नुकसान हो सकता है।

कृषि उत्पाद में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग

कालीन निर्यातक एवं सीइपीसी के पूर्व प्रशासनिक सदस्य संजय गुप्ता का कहना है कि रुस युक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से विदेशों में कालीनों की मांग में लगातार गिरावट आई है। ईरान, पाकिस्तान और नेपाल से भी देश को कड़ी टक्कर मिल रही है। इसके अतिरिक्त चीन और टर्की के मशीन मेड कारपेट भी भारतीय कालीन का बाजार छीन रहे हैं। संजय गुप्ता ने जूट निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग की है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका जैसे देश कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ावा के लिए अपने निर्माताओं को 5 फीसदी इंसेटिव देता है तो भारत क्यों नहीं? जबकि भारतीय निर्यातक प्रधानमंत्री द्वारा के दिए गए 20 हजार करोड़ के निर्यात लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 16000 करोड़ तक पहुंच चुके है। संजय गुप्ता का दावा है कि सरकार यदि जूट निर्मित कालीनों पर 10 प्रतिशत का इंसेटिव देती है तो 2024 तक लक्ष्य को पार करते हुए 25000 करोड़ तक का निर्यात किया जा सकता है।

कालीन उद्योग का 16 हजार करोड़ टर्नओवर

बता दें, सीइपीसी के मुताबिक निर्यात में साल दर साल वृद्धि होती रही है। लेकिन हाल के दिनों में थम सा गया है। तकरीबन 25 लाख लोगों को रोजगार देने और 16 हजार करोड़ टर्नओवर के कालीन उद्योग पर मंदी के चलते इस वित्तिय साल के दुसरी छमाही तक 40 फीसदी बुनकरों को बेराजगारी का सामना करना पड़ रहा है। आगे संकट और बढ़ने के आसार है। देश से निर्यात होने वाली कालीन का 60 फीसदी उत्पाद कालीन नगरी भदोही, वाराणसी और मिर्जापुर से होता है। ऐसे में मंदी का खासा असर इस इलाके पर पड़ने वाला है। इसके लिए सरकार को निर्यातक सदस्यों की समस्याओ को प्राथमिकता से हल करना होगा। इसके अलावा भदोही मार्ट में अक्टूबर माह में आयोजित इंडिया कारपेट एक्स्पों को पहले से और बेहतर व भव्य करने का प्रयास करना होगा।

रॉड टेप स्कीम उंट के मुंह में जीरे के समान : उमेश गुप्ता

कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के पूर्व प्रशासनिक सदस्य उमेश कुमार गुप्ता मुन्ना का कहना है कि मालवहन की लागत बढ़ने और वैश्विक पोत-परिवहन कंपनियों पर निर्भरता होने से निर्यात क्षेत्र गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। निर्यातकों खासकर एमएसएमई के लिए विदेशी बाजार बड़ी चुनौती बने हुए हैं। अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए दोहरी कर कटौती योजना लाने की हमें जरूरत है, जिसमें 5 लाख रुपए की आय सीमा रखी जाएं। सरकार से उनकी डिमांड है कि पूर्व में कालीन निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कृषि इक्सपोर्ट स्कीम के तहत निर्यातकों को पांच प्रतिशत लाइसेंस शुल्क मिलता था, जिसे खत्म कर रॉड टेप स्कीम लागू कर दिया गया है। इस स्कीम में निर्यातकों के लिए उंट के मुंह में जीरे के समान है। सरकार यदि वाकई इक्सपोर्ट बढ़ाना चाहती है तो पूर्व में मिल रहे लाइसेंस शुल्क को बहाल करें। बेहतर होता कि निर्यातकों को पूर्व में मिल रही 9.7 फीसदी सब्सिडी को यथावत रखा जाएं, जिसे घटाकर 3.7 कर दिया गया है। इसके अलावा सरकार को मूलभूत व आधारभूत सुविधाएं जैसे 24 घंटे बिजली, सीमेंटेड सड़के व जलभराव जैसी समस्या को दूर करने का प्राविधान करें।