मंदिरों में पुरोहितों को धातु से बने नाग देवता दान किए, दूध लावा चढ़ाकर नागदेव से परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना की
सुरेश गांधी
वाराणसी : शहर से लेकर देहात तक में सोमवार को नाग पंचमी का पर्व मनाया गया। सुबह से ही मंदिरों और शिवालयों में भक्तों की भीड़ लगी रही। लोग पीपल एवं अन्य पुराने वृक्षों के नीचे पहुंचे और दूध लावा चढ़ाकर नाग देवता से परिवार की रक्षा के लिए प्रार्थना की। मंदिरों से पूजा कर लौट रहे भक्तों ने बाहर बैठे महुआरों की डोलची में विराजमान नाग देवता की पूजा अर्चना कर चढ़ावा अर्पित किया। कई लोगों ने नाग देवता को गले में लपेट कर फोटो भी खिंचवाई। कई लोगों ने घरों में विशेष पूजा अर्चना कर नाग देवता की आकृति बनाई। इस दिन कई घरों में खीर सहित अन्य मीठे व्यंजन बनाए गए और भगवान को अर्पित किया। वहीं कई लोगों ने धातु से बने नागदेवता को मंदिरों के पुरोहितों को दान दिया। इस अवसर पर मंदिरों में भव्य श्रृंगार किया गया।
ग्रामीण अंचलों में श्रद्धालु सुबह से ही शिव मंदिरों व घरों में पूजा करते नजर आए। महिलाओं ने घरों की दीवारों पर गोबर से नागदेव की आकृति उकेरकर अपने परिवार की रक्षा का आशीर्वाद मांगा। शिव मंदिरों में सुबह से भक्तों की भीड़ देखने को मिली। भक्त भगवान शिव की वैदिक विधि विधान से पूजा के बाद नागदेवता को भक्त, दूध, लावा अर्पित करते नजर आए। कई जगह कुश्ती स्पर्धा का आयोजन किया गया। जहां शहर समेत ग्रामीण क्षेत्रों से आए पहलवानों ने दांव-पेंच दिखाते हुए जोर-आजमाइश की। दंगल में आए पहलवानों ने दंगल की गरिमा बढ़ाई और देखने आई जनता में उत्साह भर दिया। जैतपुरा स्थित नागकूप पर दिनभर दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा। नागकूप में कालसर्प दोष दूर करने के लिए लोग दूध, लावा व बेलपत्र अर्पित किया।
नागकूप पर भगवान नागेश्वर महादेव की पूजा व्याकरण के 108 बटुकों ने पूर्व मंत्री एवं विधायक नीलकंठ तिवारी व स्वामी जितेन्द्रानंद की मौजूदगी में बिल्वार्चन और दुग्धाभिषेक करने के बाद सुक्त और श्लोक अंत्याक्षरी किया। पुजारी कुंदन पांडेय ने बताया कि नागकूप नागलोक में जाने मार्ग भी है। मान्यता है कि इससे कुंडली से कालसर्प दोष खत्म होता है। उन्होंने बताया कि इस प्राचीन कुंड में नागेश्वर महादेव का शिवलिंग है। नागदेवता को तुलसी की माला प्रिय है। इसलिए तुलसी की माला भी चढ़ाई जाती है। कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए इस कूप में लोग स्नान भी करते हैं। यह नागकूप महर्षि पतंजलि की तपस्थली है। यहीं पर महर्षि पतंजलि ने अपने गुरु महर्षि पाणिनि के अष्टाध्यायी ग्रंथ पर महाभाष्य पूरा किया था। इसलिए यहां पर शास्त्रार्थ करने की परंपरा चली आ रही है। नागकूप शास्त्रार्थ समिति के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि आज यहां शास्त्रार्थ किया गया, जिसमें विभिन्न प्रांतों के संस्कृत शिक्षण संस्थानों के विद्वानों और शोध छात्रों ने भाग लिया।