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लखनऊ में इस साल की सबसे ज्यादा बारिश,उत्तर प्रदेश में भारी बारिश का रेड एलर्ट

लखनऊ : सप्ताह के अंत में राजधानी लखनऊ में बारिश शुरू हुई और रविवार को दिन साफ़ होने के बाद भी रात में मौसम भारी बारिश में बदल गया, जिससे शहर में अधिकाँश हिस्सों में पानी भर गया और बड़े पैमाने पर यातायात जाम पैदा हो गया। बिजली बंद कर दिए जाने से पंखे, लाईट भी 2:00 बजे दोपहर तक नदारत रही| चूंकि लखनऊ की यह सबसे तेज और लगातार बारिश रही, जिससे जिला प्रशासन ने शहर के भीतर सभी शैक्षणिक संस्थानों को बंद करने का आदेश दिया। खराब मौसम जारी रहने तक निवासियों को असुरक्षित इमारतों और पेड़ों से बचने की सलाह दी गई है। यही नहीं जल निकासी की समस्या के कारण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दो-दर्जन से अधिक इलाके जलमग्न हो गए और बारिश का पानी अधिकांश घरों में भी घुस गया। बिजली व्यवधान और पेड़ों के उखड़ने के कारण सप्ताहांत में शहरी जीवन और यातायात पर काफी असर पड़ा। यह सक्रिय मॉनसून घटनाक्रम एक चक्रवाती तूफ़ान के पश्चिम की ओर बढ़ने और अंततः मध्य प्रदेश में स्थिर होने के बाद हुआ। इसके अलावा, एक ट्रफ रेखा अब इस क्षेत्र से दक्षिण छत्तीसगढ़ तक बनी हुई है, और अगले कुछ दिनों तक इस क्षेत्र में भारी वर्षा होने में कि संभावना दर्शाती है।

भारत का मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) भी सोमवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बहुत भारी बारिश (115.6 मिमी-204.5 मिमी) की भविष्यवाणी किया था। सोमवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश और सोमवार, बुधवार और गुरुवार (11, 13, 14 सितंबर) को उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में भारी बारिश (64.5 मिमी-115.5 मिमी) होने की भी संभावना को बताया है। पूर्वानुमानों से पता चलता है कि इस दौरान इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश या गरज के साथ बौछारें पड़ेंगी। सोमवार से गुरुवार सुबह तक तीन दिन बारिश का पूर्वानुमान भी है| विश्व के लगभग सभी देश अमेरिका के कैलफोर्निया से लेकर न्यूयार्क, टेक्सास, वाशिंगटन, फ्लोरिडा, स्पेन, फ्रांश, जर्मनी, चीन, पाकिस्तान, जापान, यूनाइटेड अरब एमिरात, भारत के कछारी प्रदेश व हिमांचल तथा उतराखण् आदि लगातार भीषण व प्रलयकारी बारिश के प्रकोप को झेल रहे हैं| यहाँ तक कि जन-जीवन कि भारी हानि देखी गयी है|

डा. भरत राज सिंह, पर्यावरणविद व महानिदेशक
स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट सांइसेस, लखनऊ

इसका कारण सभी को मालूम है, जलवायु में भीषण बदलाव|यह भी मालूम है कि इसके जिम्मेदार भी हमी आप है और आखे बंदकर बैठे हैं| जब वैश्विक तापमान की वृद्ध कि बात कि जा रही थी कि 2007 के आकडे दर्शा रहे है कि यदि तापमान कि बढोत्तरी को 1.58 डिग्री से अधिक बढ़ने दिया जाएगा तो प्रलयकारी स्थिति से रोका नहीं जा सकता है| इस पर डा. आर.के. पचौरी जिन्हें नोबल पुरस्कार से नवाजा गया इन सभी विन्दुओ का जिक्र करते हुए 2015 तक स्थिति को रोकने में सफल होने कि बात कही थी, अभी तो वह नहीं है, लेकिन इस पर कोई कारगर उपाय नहीं किया गया| सभी देश 2015 के नवम्बर में जलवायु की पेरिस समिति में भाग लिया और भारत के अलावा कार्बन को कम करने में तैयार नहीं हुए| भारत के प्रधानमंत्री ने 1 से 1.5% कार्बन कम करने कि बात कही और अपना प्रयास विश्व के जी-20 समिति में 5 ट्रिलियन इकॉनामी बनने के वावजूद भी कार्यरूप दिया | उक्त समिति कि वैठक कि कार्यवृत्त पर सालभर वाद कुछ विकसित देशो विशेषकर अमेरिका के अलावा हस्ताक्षर किये| आज जो कुछ प्रलयकारी परिस्थिया बन चुकी हैं उसकी जिम्मेदारी ना लेते हुए भी भीषण परिस्थितियों से गुजर रहा है और सम्पूर्ण विश्व को तवाही के कगार पर लाकर खडा किया है|

मैं उपरोक्त बिना तथ्य के नहीं कह रहा हूँ| 2012 की पुस्तक – ग्लोबलवार्मिंग के पृष्ठ -114 में लिखा था कि अगले दशक में न्यूयार्क शहर तूफानी वार्ष से डूब जा सकता है| अक्टूबर 2012 के 29-30 को सैंडी तूफ़ान ने 4 लाख खाड़ी स्थित लोगो को विस्थापित होना पड़ा तथा 15 दिनों तक विजली व हवाई जहाज बंद रहा| फिर भी चेतना नहीं जगी| जलवायु परिवर्तन कि दूसरी पुस्तक जो पुनः इनटेक से छपी उसमें उत्तरी ध्रुव कि वर्फ के 33% पिघलने का जिक्र किया तथा 2037–2040 तक विश्व के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवो पर जमी ग्लेशियर तथा भारत के हिमालय से ग्लेशियर लगभग समाप्त होने का भी उल्लेख किया गया और जलवायु के भारी परिवर्तन से भीषण व प्रलयकारी आपदा उत्पन्न होने कि स्थिति होगी| जिसे अमेरिका अपने 9-12 ग्रेड के बच्चो के पाठ्यक्रम में मुझसे इजाजत लेकर सामिल तो कर लिया, परन्तु अमलीजामा नहीं पहना सका| जब कोई अमेरिका जैसे 33 करोड़ आवादीवाला देश, सम्पूर्ण विश्व के 700 करोड़ कि अवादी का ऊर्जा श्रोत का 34 प्रतिशत अकेले उपयोगकर रहा हो और दूसरो को जलवायु को ठीक करने को कहे तो स्थितिया यही होगी|

आइये जानें इसके कारण और निवारण

कारण-
*विश्व के जन मानस को जागृत करें |
*आज 90 प्रतिशत ग्लेशियर जो ध्रुवो व हिमालय पर मौजूद था उसका 60 प्रतिशत पिघल चुका है और उससे जो सूर्य कि किरणे वापस हो जाती थी, अब पृथ्वी को तेजी से गरम कर रही हैं तथा वहाँ की जमींन उठ रही हैं और ज्वालामुखी फूट रहे हैं|
*ग्लेशियर जो पानी में बदल रहा है, उससे समुद्र का सतह उंचा उठा रहा है और पानी का फैलाव भी बढ़ रहा है जिससे वाष्प तेजी से बन रही हैं और भारी मात्रा में आसमान में 15 किलोमीटर की उचाई पर एकत्रित हो गयी हैं|
*यही नहीं समुद्र के अन्दर फूट रहे ज्वालामुखी से वाष्पीकरण तेजी से बढ़ गया है|
*यही मुख्य कारण है, जिससे जलवायु में थोड़ी सी हलचल होने से चक्रवाती तूफान पैदा हो रहे हैं और प्रलयकारी वारिश का प्रभाव पैदा कर रहे है|
*भारत का बिहार व उत्तर-प्रदेश का अधिक भाग सूखाग्रस्त रहेगा|

उपाय–
*हमें ऐसे प्रलयकारी तूफानी वारिश में घरों में सुरक्षित रहना चाहिए|
*तड़ित गिरने की सम्भावना ऊंचे पेड़ों और ऊँचे भवनों में होती है, अतः उससे दूर रहना चाहिए|
*समुद्र के किनारे के प्रदेशों के निवासियों के लिए बचाव के निर्देश व प्रशिक्षण|
*आबादी की अधिकाश संख्या (40-50%) तरह-तरह के रोगों से ग्रसित होगीं, उनके लिए समुचित दवा का प्रबंध|
*विकास को जलवायु व कार्बन क्रेडिट से जोड़ा जाना चाहिए|