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पर्यावरण संरक्षण के प्रति वैश्विक स्तर पर एकजुटता जरूरी

विश्व पर्यावरण दिवस (05 जून) पर विशेष

मुकेश कुमार शर्मा

“कंक्रीट के बढ़ते जंगलों” ने आज हमारे पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। इसके चलते जहाँ एक ओर वृक्षों की कटान हुई है वहीँ दूसरी ओर हमारे परम्परागत जल स्रोतों का नामोनिशान मिटता जा रहा है। इसके प्रति हम आज सचेत न हुए तो आने वाली पीढ़ी के सामने यह स्थिति बड़ी मुसीबत पैदा करने वाली साबित होगी। इसके सबसे बड़े दुष्परिणाम के रूप में हम आज बढ़ते तापमान का सामना कर ही रहे हैं। वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट होने के उद्देश्य से ही हर साल पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

“हमारी भूमि-हमारा भविष्य” नारे के साथ इस साल मनाये जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है- भूमि पुनरुद्धार तथा मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता वृद्धि किया जाना। इसका मूल मकसद भूमि की उर्वरा शक्ति को वापस लाना, मरुस्थलीकरण में कमी लाना और धरती को सूखे की मार से बचाना है। इस दिवस पर आज का सबसे विचारणीय प्रश्न यही है कि हम समय को तो किसी भी तरह से वापस नहीं लौटा सकते लेकिन हम पौधों को रोपकर धरती को गहने के रूप में एक बड़ी सौगात तो दे ही सकते हैं। जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने के साथ ही बारिश के पानी का संग्रह तो कर ही सकते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ हमारी पीढ़ी को बेहतर स्वास्थ्य के रूप में तो मिलेगा ही साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी स्वस्थ और समृद्ध बनाने में सहायक साबित होगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस भयावह स्थिति का अंदाजा लगाते हुए ही वर्ष 1972 में पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मान्यता दी थी। “केवल एक पृथ्वी” नारे के साथ इसे पहली बार वर्ष 1973 में मनाया गया, जिसके तहत पर्यावरण प्रदूषण के संभावित जोखिम से वैश्विक स्तर पर लोगों को आगाह किया गया और इससे बचने के उपाय भी सुझाए गए।

पर्यावरण प्रदूषण के चलते आज दुनिया में गम्भीर शारीरिक एवं मानसिक समस्याएं पैदा हो रही हैं जो कि सामाजिक जीवन को भी प्रभावित कर रही हैं। जल, वायु, ध्वनि, रासायनिक प्रदूषण ने मानव जीवन के समक्ष गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ पैदा कर दी हैं। खुली हवा में सांस लेना तक मुश्किल हो गया है। वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों की बीमारियों के साथ कैंसर, आंखों में जलन, खुजली, साँस के रोग, दमा, खाँसी, ब्रांकाइटिस, नाक से पानी आना, छींकें, हार्ट, किडनी, लिवर सम्बन्धी बीमारियाँ बढ़ रहीं हैं। वातावरण मेँ बढ़ते शोर के कारण बहरापन, उच्च रक्तचाप, सिर दर्द, अनिद्रा, नाड़ी का तेज चलना, हार्ट बीट बढ़ना, सिरदर्द जैसी समस्याएँ पैदा हो रहीं हैं। फलों एवँ सब्जियों पर प्रयोग किये जाने वाले केमिकल, फैक्ट्रियों से निकलने वाले रासायनिक कचरे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की सेहत को बिगाड़ रहे हैं। प्रदूषित पानी के कारण दस्त, गैस्ट्रोएन्टेराइटिस, उल्टी, कोलाइटिस, मियादी बुखार, जॉन्डिस, पेट मे कीड़े, अपच, कब्ज जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। ऐसे मेँ वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखना हर किसी के लिए नितांत आवश्यक हो गया है, जिससे स्वस्थ समाज का निर्माण करने में हम सभी सहायक बन सकें।

हमारे जीवन की शुरूआत सांस से होती है और जीवन का अंत भी सांस से ही होता है। इस प्रकार इन्हीं सांसों के बीच जीवनचक्र चलता रहता है। प्राणों को जिंदा रखने के लिए जिस वायु की जरूरत होती है उसका नाम ही है आक्सीजन। इस प्राणवायु से शरीर में प्राण शक्ति मिलती है, इसी प्राण शक्ति से हम सभी क्रियाएं करते हैं। आक्सीजन केवल पौधों, वृक्षों और पर्यावरण से मिलती है। इसलिए केवल पर्यावरण दिवस पर ही नहीं बल्कि हमेशा खुद वृक्षारोपण करें और दूसरों को भी प्रेरित करें। आज इस दिवस पर सभी को प्रण लेने की जरूरत है कि हम पेड़-पौधों के प्रति संवेदशील बनेंगे, पेड़-पौधों का एहसान मानेंगे की उनकी बदौलत ही हमारी साँसों की डोर सलामत है और केवल पर्यावरण दिवस पर ही नहीं बल्कि जब जहाँ मौका मिला वहां पौध रोपण जरूर करेंगे। इसके साथ ही आज के दिन यह संकल्प भी लेने की जरूरत है कि जन्मदिन-शादी की सालगिरह से लेकर हर समारोह में लोगों को पौधा भेंट करने के साथ ही उसकी उपयोगिता भी भलीभांति जरूर समझाएंगे। पौधों को लगाने के साथ उसकी देखभाल कर पर्यावरण को सुरक्षित बनाने में भागीदार बनेंगे।

(लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल-इंडिया के एक्जेक्युटिव डायरेक्टर हैं)