–प्रो. भरत राज सिंह
लखनऊ : समय रहते न चेते तो सदी के अंत तक धरती को डगमगाने से कोई नहीं रोक सकता। धरती के ध्रुवों के भार में परिवर्तन जो समुद्रॉ में इतना बढ़ जाएगा कि न सिर्फ वह अपनी धुरी से खिसक जाएगी, बल्कि उसकी चाल भी धीमी हो जाएगी। यह दावा है पर्यावरण वैज्ञानिक व स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेस, लखनऊ के महानिदेशक प्रो. भरत राज सिंह की। उन्होंने अपनी पुस्तक ग्लोबल वार्मिंग: कॉजेस, इम्पैक्ट एण्ड रेमेडीज में जिक्र भी किया है। प्रो.सिंह का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन से उत्तरी ध्रुव पर जमी बर्फ तेजी से पिंघल रही है। ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। जिस गति से बर्फ पिघल रही है उससे 2040 तक उत्तरी ध्रुव पर न पर नाम मात्र की बर्फ बचेगी। अप्रैल 2003 से अप्रैल 2013 तक आर्कटिक क्षेत्र में बर्फीली चट्टानें दस (10) लाख टन प्रतिवर्ष की दर से पिघल रही हैं। सदी के अंत तक समुद्र तल में 3.5 से 13 फुट की बढ़ोतरी की संभावना है। इससे पृथ्वी के भार में 1397 अरब टन से 1450 अरब टन तक वृद्धि होनी संभावित है। इससे पृथ्वी के घुमाव कोण (23.43 डिग्री) में भी परिवर्तित होना संभावित है।
मध्यान्स रेखा पर भार व ब्यास बढ़ने से धरती की गति भी धीमी हो जाएगी। इसके अतिरिक्त समुद्र की सतह बढ़ने से चन्द्रमा के गुणत्तीय आकर्षण से पृथ्वी के घूर्णन गति अधिक धीमी हो जाएगी और पृथ्वी के कोण व घूमने की गति में परिवर्तन से होने वाली तबाही को कोई (भूकम्प में बढोत्तरी, मानवीय विकसित संरचनाओ की तवाही आदि) से रोक नहीं सकता। उन्होने बताया कि उनकी शोध के माडेल को तैयार करने में, किसी शासकीय वित्तीय संस्था और विश्वविद्यालय से न मिलने के कारण इसका उल्लेख पुस्तक में करना पडा। चूकि पृथ्वी का व्यास 12,756 किलोमीटर है जिससे परिधि 3.14 x 12,756कि.मी. = 40,054 कि.मी. मध्यांस रेखा पर है। इस प्रकार हम पृथ्वी पर 40,054 कि.मी. /24 घंटे =1,669 कि.मी. प्रति घंटे की गति से घूम रहे हैं। गति में 5-6 मिलीसेकंड के परिवर्तन से विश्व में विनाशकारी तबाही बन चुकी है।
तदोपरांत इस कार्य को दिसम्बर 2016 में अल्बर्टा युनिवर्सिटी, कनाडा के भौतिकी के प्रोफेसर व शोधकर्ता मैथ्यू डेबरी के द्वारा आगे बढाते हुये यह बात कही गयी कि समुद्र के जल स्तर में बढोत्तरी जो ग्लेशियर के पिघलने से लगातार हो रही है, पृथ्वी के घूर्णन गाति में बदलाव पैदा कर रहा है, और गति धीमी हो रही है, उनका भी यह कहना था कि इससे चन्द्रमा के गुरूत्वीय आकर्शण भी पृथ्वी के घूर्णन को कम करने में अपनी भूमिका निभाता है। उनका कहना था कि 21वीं शदी के अन्त तक 1.7 मिली सेकेण्ड तक एक दिन में गाति धीमी होने के अनुमान है, जबकि डा.भरत राज सिंह ने लगभग 4 मिलीसेकन्ड बताया है ।
अभी हाल में, ज्यूरिख यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन के जलवायु वैज्ञानिक विन्सेंट हम्फ्रे ने 2024 में बताया कि दुनिया में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसका असर पृथ्वी की धुरी पर हो रहा है। क्योंकि पृथ्वी के ऊपरी हिस्से से वजन हटा कर दूसरी ओर कर दिया जाए तो घूर्णन में बदलाव स्वभाविक है। पृथ्वी पर मौजूद द्रव्यमान के वितरण में बदलाव का असर धुरी पर हो रहा है। इससे हमारे दिन की लंबाई बढ़ जाएगी। हाल ही में हुए हालिया अध्ययन में इसकी पुष्टि हुई है। धरती अपनी धुरी पर करीब 1000 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूमती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती को एक चक्कर पूरा करने में 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सेकंड का समय लगता है। इससे धरती के एक हिस्से में दिन और दूसरे में रात होती है। धरती अपनी धुरी पर घूमती रहती है, लेकिन हमें इसका एहसास नहीं होता है।
प्रो.भरत राज सिंह का कहना है कि अमेरिका में सेंडी नामक तूफान ने जमकर उत्पात मचाया। न्यूयार्क शहर का एक तिहाई हिस्सा समुद्र में समा गया। इसकी आशंका उन्होंने मई 2014 में प्रकाशित हुई पुस्तक में पहले ही व्यक्त कर दिया था। तब से अमेरिका, कनाडा, व इंग्लैंड में हर साल भीषण बर्फबारी हो रही है। आने वाले समय में यूएसए, इंग्लैण्ड आदि देशों के कुछ प्रमुख तटीय शहर समुद्र में समा सकते हैं । इसके साथ ही उत्तरी-पश्चिमी सीमाओं पर बहुतायत में बर्फबारी होगी। नए ग्लेशियर का निर्माण होगा। उत्तरी ध्रुव के बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघलेंगे। विशाल हिमखण्ड टूटकर अटलांटिक महासागर में बहते हुए प्रमुख तटीय शहरों से टकराएंगे।
उन्होंने बताया कि देश में समुद्री तटों पर भीषण बारिश व हिमालय से सटे प्रदेशों में बर्फबारी व भीषण ठंड का प्रकोप बढ़ गया है जबकि उत्तर प्रदेश व बिहार में सूखा पड़ने की संभावना बढ़ती जा रही है। उनके इस शोध को, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा आदि देशों के शोधकर्ता विवेचना कर आगे बढ़ा रहे है। परन्तु डा. सिंह को मॉडल बनाने हेतु तकनीकी विश्वविद्यालय अथवा वित्तीय संस्थाओ से सहायता कि अत्यंत आवश्यकता है, जिससे विश्व के इस प्राथमिक शोध को बढ़ाया जा सके और देश को ग्लेशियर के तेजी से पिघलने व जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के निराकरण की अग्रणी बनाने के उद्देश्य को सार्थक बनाया जा सके। प्रो.सिंह का कहना है कि अभी समय है, जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से बचा जा सकता है। हाइड्रोकार्बन आधारित ऊर्जा प्रणाली की जगह अक्षय ऊर्जा का प्रयोग बढ़ाना होगा।