सियोल। दक्षिण कोरियाई सेना ने कहा कि उत्तर कोरिया ने मध्यम दूरी की एक रोड मोबाइल बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएम) विकसित की है, जो पनडुब्बी आधारित बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक पर आधारित है। जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ (जेसीएस) के अनुसार, उत्तर कोरिया ने एक नया ठोस ईंधन चालित आईआरबीएम का परीक्षण किया, जो एसएलबीएम पर आधारित है।
उत्तर कोरिया ने रविवार को बैलिस्टिक मिसाइल पुकगुकसॉन्ग-2 का प्रक्षेपण किया। इसने पूर्वी सागर में 500 किलोमीटर की दूरी तय की और 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर यह फट गया।
प्रक्षेपण के बाद, जेसीएस ने कहा यह मध्यम दूरी के बैलिस्टिक मिसाइल मुसुदन का विकसित रूप हो सकता है, जिसने जून में परीक्षण में 500 किलोमीटर की दूरी तय की और 1413.6 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भरी।
सियोल की सेना ने रविवार के अपने आंकलन में बदलाव करते हुए कहा कि उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता किम जोंग उन ने संभवत: सतह से सतह पर मार करने वाली लंबी दूरी की मिसाइल विकसित करने का निर्देश दिया था, जो एसएलबीएम प्रौद्योगिकी पर आधारित है। एसएलबीएम प्रौद्योगिकी का परीक्षण पिछले साल अगस्त में किया गया था।
नया मिसाइल एक प्रकार के क्रॉलर मोबाइल लांचर से छोड़ा गया था और दक्षिण कोरियाई सेना ने इसकी मारक क्षमता मुसुदन और एसएलबीएम के बीच रखी है।
उत्तर कोरिया के स्वामित्व वाली एसएलबीएम की क्षमता 2000-2500 किलोमीटर है, वहीं मुसुदन की क्षमता 3000-3500 किलोमीटर मानी जाती है। पुकगुकसॉन्ग-2 की क्षमता 2500-3000 किलोमीटर तक हो सकती है।
रविवार को किया गया परीक्षण उत्तर कोरिया द्वारा विकसित एक नए प्रकार की अंतरद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) हो सकती है। इसके अतिरिक्त उत्तर कोरिया के पास केएन-08 बैलिस्टिक मिसाइल भी है, जिसे वह हवासांग-13 के नाम से पुकारता है
केनाइन-08 को 2012 में पहली बार सैन्य परेड में प्रदर्शित किया गया था। लेकिन अभी इसका सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया जाना बाकी है।
उत्तर कोरिया ने सितंबर में नए रॉकेट इंजन का परीक्षण किया था, जिसका उपयोग आईसीबीएमएस और मुसुदन मिसाइलों के लिए किया जाता है।
कुछ अनुमानों के अनुसार, आईसीबीएसएस के पहले चरण के प्रणोदक का उपयोग मुसुदन मिसाइल के चार इंजनों के लिए किया जा सकता है।
पुकगुकसॉन्ग-2, एसएलबीएम प्रौद्योगिकी पर आधारित है।
उत्तर कोरिया ने पिछले साल अगस्त में एसएलबीएम मिसाइल का सफल परीक्षण किया था, जिसे पुकगुकसॉन्ग-1 कहा गया। उसके बाद सतह से सतह पर मार करने वाली इस मिसाइल के निर्माण में छह महीने का वक्त लगा।