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माया और अखिलेश के जातीय आधार पर यूपी में केशव जरूरी

 

keshv akhi maya

यूपी में बीजेपी लम्बे समय तक सत्ता में बने रहना चाहती है तो केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा . गलती से अमित शाह किसी और नेता को सीएम बना दी तो सपा और बसपा अपनी गलती सुधार कर किसी बड़े ओबीसी नेता को आगे करके बड़ी आबादी को अपने साथ लाने की मुहीम तेज कर देगे . जिसका खामियाजा 2019 के चुनाव में बीजेपी को भारी कीमत चुकानी पड सकता है .

उत्तर प्रदेश की राजनीत जातीय आधार पर टिकी हुई है . समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का विधान सभा चुनान में हारने का मुख्य कारण था की ये दोनों पार्टियाँ 13 प्रतिशत यादव और 21 प्रतिशत दलित इनकी वेस वोट बैक था . ये मुस्लिम के 19 प्रतिशत मत के सहारे यूपी में राज करते रहे और एक बड़ी आबादी गैर यादव पिछडो को उपेछित रखा जिसको भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने समझा की गैर यादव ओबीसी  ,मुस्लिम और फार्वड वोट बैक पर निशाना साधने में सफल रहे . ट्रिपल तालाक का मुद्दा भी मुस्लिम महिलाओं को बीजेपी की तरफ खीचा और महिलाओं के वोट भी आए . इसी समीकरण के चलते के चलते यूपी की सत्ता में प्रचंड बहुमत से जीत कर बड़े बड़े राजनितिक पंडितो की आकलन झुठला दिया .

संघ प्रचारक मौर्य की बीजेपी में इंट्री हुए ज्यादा दिन नही हुए है लेकिन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने जैसे ही जिम्मेदारी दी कही से अमित शाह को अपने भाषण और प्रेस कांफ्रेस में अपरीपक्त नही दिखे हमेशा आत्मविश्वास के साथ कहते थे की 265 हम सीट जीतेगे .

उत्तर प्रदेश के चुनाव में जातिगत समीकरण को खूब महत्त्व दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां के मतदाता अपना वोट नेता को नहीं, जाति को देते हैं।  इसलिए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि हमेशा की तरह इस बार भी मतदाता वोट तो जाति को ही देंगे। इसलिए सभी राजनीतिक दल अधिकाधिक जातियों को साधने में लगे हैं। उत्तर प्रदेश में जातिगत वोटबैंक की बात करें तो यहां अगड़ी जाति से 16 प्रतिशत और पिछड़ी जाति से 35 प्रतिशत वोट आते हैं, वहीं 25 प्रतिशत दलित, 18 प्रतिशत मुस्लिम, 5 प्रतिशत जाट और 1 प्रतिशत अन्य वोटर्स तय करते हैं कि राज्य में सर्कार किसकी बनेगी। अगड़ी जाति में 8 प्रतिशत ब्राह्मण, 5 प्रतिशत ठाकुर और 3 प्रतिशत अन्य हैं, वहीं पिछड़ी जातियों में 13 प्रतिशत यादव, 12 प्रतिशत कुर्मी और 10 प्रतिशत अन्य हैं।

उत्तर प्रदेश की चुनावी गणित के अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी को 30 प्रतिशत वोट मिलेंगे, उसकी जीत पक्की है। 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने 25 प्रतिशत दलित, 8 प्रतिशत ब्राह्मण और 18 प्रतिशत मुस्लिम वोटों को अपनी पार्टी में जोड़ने में सफल रहीं थीं और यूपी में बसपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी। इसी तरह 2012 में 35 प्रतिशत पिछड़ी जातियों सहित 18 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) को सफलता मिली और सपा की पूर्ण बहुमतवाली सरकार बनी। पर 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी लहर के चलते यूपी में भाजपा गठबंधन को 80 में से 73 सीटें मिली, जबकि बसपा सफा हो गई और सपा को केवल 5 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था।

इसलिए मौर्य का चयन सटीक

केशव प्रसाद मौर्य कोइरी समाज के हैं और प्रदेश में कुर्मी, कोइरी और कुशवाहा ओबीसी में आते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के साथ ही अन्य चुनावों में भी भाजपा को गैर यादव जातियों में इन जातियों का समर्थन मिलता रहा है। भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य का प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में चयन कर पिछड़ी जातियों को अपने समर्थन का संदेश भी दे दिया जिसका लाभ भिचुनाव में मिला  है।

उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के लिए भाजपा को अगड़े-पिछड़े दोनों का समर्थन प्राप्त करना बेहद जरुरी है। केशव प्रसाद मौर्य की हिंदुत्व छवि जहां सवर्णों का विश्वास अर्जित करने में सक्षम है, वहीं उनकी पिछड़ी जाति होने के कारण वे प्रदेश की पिछड़ी जातियों और दलित वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने में कारगर साबित हुई  है। इस दृष्टि से मौर्य एक उत्तर प्रदेश के लिए एक संतुलित चेहरा है और उत्तर प्रदेश भाजपा मुख्यमंत्री  के रूप में नियुक्ति बेहद सटीक निर्णय माना जा रहा है। भाजपा ने ज़िला और मंडल स्तर पर भी बड़ी संख्या में ओबीसी नेताओं को कमान दे दिया है। भाजपा के इस कदम से सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त करने की कोशिश किया और सफल भी रही , जिसने विरोधियों की बेचैनी को बढ़ा दिया है । अखिलेश यादव और मायावती जैसे बड़े चेहरों के सामने केशव प्रसाद मौर्य की चुनौती विधानसभा चुनाव में जमीदोज कर दिया , इसपर सब अपने-अपने तरीके से अलग-अलग विश्लेषण कर रहे हैं।