Monday , May 20 2024

लखनवी विरासत में समा रही आधुनिक भारत जाने नजदीक से शहर को…..

लखनऊ । यह जिन्दा दिल लोगों की शहर है,लाटूश रोड पर आज भी वह दुकान आबाद है, जहां से निकल कर नौशाद ने पूरी दुनिया में अपने फन का डंका बजाया। लखनऊ महज एक शहर नहीं, बल्कि मिजाज है। यहां की हवाओं में नेह भरा आमंत्रण है। फिजा में संगीत की सुमधुर स्वर लहरियां सुनाई देती हैं। यह दुनिया के उन चुनिंदा शहरों में से एक है, जो गोमती नदी के दोनों किनारों पर आबाद है। लखनऊ की शाम तो विश्वप्रसिद्ध है।

हर बात में अलहदा: हजरतगंज का एक चक्कर लगा लीजिए, तो चोला मस्त हो जाएगा। लखनऊ के नवाब जहां अपनी नजाकत, नफासत के साथ ही स्थापत्य के लिए जाने गए, वहीं अंग्रेजों ने भी इल्म का परचम फहराने में पूरा जोर लगा दिया। बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबड़ा हो या भूलभुलैया या घंटाघर, नवाबी दौर कीतमाम इमारतें अब भी तनकर खड़ी पर्यटकों को आमंत्रण देती दिखती हैं। लखनऊ की गलियों के तो क्या कहने, कंघी वाली गली से लेकर बताशे वाली गली तक यहां मौजूद है। यूं भी कह सकते हैं कि वह कौन-सी गली है, जो लखनऊ में मौजूद नहीं। जी हां, चोर वाली गली भी है यहां।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के उद्घोष ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ की प्रेरणा आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व मुंशी नवलकिशोर द्वारा लखनऊ की सरजमीं से की गई घोषणा ‘आजादी हमारा पैदाइशी हक है’ से उपजी थी।लखनऊ से ही सूफी फकीर हजरत मोइनुदीन चिश्ती, हजरत निजामुद्दीन की पुस्तकों के प्रकाशन का श्री गणेश हुआ। लखनऊ की पृष्ठभूमि रजत पट को भी खासी भाती रही। अपने दौर की चर्चित और यादगार फिल्मों की शूटिंग और प्रेरणा यहीं हुई और यहीं के लेखकों-कलाकारों ने उन्हें समृद्ध किया। यहां का नॉनवेज भोजन दुनियाभर में मशहूर है। यहां तक कि नॉनवेज वाले चेहरा पढ़ना भी जानते हैं। एक वाकया है। एक होटल में मैंने रोस्टेड चिकन की डिमांड की। उसने पहले तो मुझे घूरकर देखा, फिर बड़ी नजाकत के साथ कहा,‘अमां मियां, चेहरे से तो आप गोश्तखोर लगते नहीं।’
ऐसा नहीं कि लखनऊ फकत नॉनवेज का शहर है, यहां की चाट भी ऐसी है कि बस चाटते ही रहो। लखनऊ शायद अकेला ऐसा शहर है, जहां के हींगयुक्त समोसे इसका जायका बढ़ा देते हैं। यह एक प्रयोगधर्मी शहर है। मिष्ठान के नित नूतन अन्वेषण होते रहते हैं यहां। किस्सा है कि नवाब वाजिद अली शाह को जर्दायुक्त पान की जबर्दस्त लत लग गई थी। हकीमों ने भी उन्हें इस लत से बाज आने को कहा, पर वह न माने। आखिर हलवाई राम आसरे को बुलवाया गया और ऐसी मिठाई तजवीजने को कहा गया, जो सेहत को नुकसान भी न पहुंचाए और पान का मजा भी दे। कुछ यूं ही आविष्कार हुआ यहां मलाई गिलौरी का।
पहले आप की संस्कृति: मिजाज में नजाकत और अंदाज में नफासत। लखनवी की नजाकत का जिक्र अक्सर किसी नामालूम शायर के इस शेर से होता है, अल्लाह रे नाज़ुकी, ये चमेली का एक फूल/सिर पर जो रख दिया तो कमर तक लचक गई। नफासत का नमूना यहां की ‘पहले आप’ वाली संस्कृति है, जो दुनियाभर में मशहूर है।इसीलिए तो कहते हैं, हम फिदा-ए-लखनऊ, है किसमें हिम्मत जो छुड़ाए लखनऊ…!

छोटा इमामबाड़ा
इसका वास्तविक नाम ‘हुसैनाबाद इमामबाड़ा’ है। इसे मोहम्मद अली शाह ने साल 1837 में बनवाया था। सआदत अली का यह मकबरा बेगम हजरत महल पार्क के समीप है। इसके साथ ही खुर्शीद जैदी का मकबरा भी बना हुआ है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण है। ये दोनों मकबरे देखने में जुड़वां लगते हैं।

बड़ा इमामबाड़ा

इसे आसिफी इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इसे लखनऊ के नबाव आसफउद्दौला द्वारा बनवाया गया था। इस इमामबाड़े का निर्माण उन्होंने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अंतर्गत करवाया था। यह विशाल गुंबदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। परिसर में एक श्राइन, एक भूलभुलैया यानी भंवरजाल, एक बावड़ी (सीढ़ीदार कुंआ) और नवाब की कब्र भी है, जो एक मंडपनुमा आकृति से सज्जित है। इमामबाड़ा की वास्तुकला ठेठ मुगल शैली को प्रदर्शित करती है, जो पाकिस्तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती-जुलती है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी पांचवीं मस्जिद माना जाता है।

भूल-भुलैया बड़ा इमामबाड़ा परिसर में ही भूल-भुलैया है, जिसके कारण बड़ा इमामबाड़ा काफी मशहूर है। भूलभुलैया में कई भ्रामक रास्ते हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनमें कुल 489 दरवाजे हैं।

रूमी दरवाजा
बड़े इमामबाड़े के बाहर ही रूमी दरवाजा बना हुआ है। यहां की सड़क इसके बीच से निकलती है। नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1782 ई. में अकाल राहत परियोजना के अंतर्गत लोगों को रोजगार दिलाने के लिए बनवाया था।

घंटाघर
लखनऊ का घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर माना जाता है। हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप ही 19वीं शताब्दी में बनी एक पिक्चर गैलरी भी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।

रेजीडेंसी


लखनऊ रेजीडेंसी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर दिखाते हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय यह रेजीडेंसी ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत लखनऊ के दिल कहे जाने वाले हजरतगंज चौराहे से डालीगंज जाने वाली रोड पर शहीदस्मारक पार्क के करीब है।

सतखंडा पैलेस

यह इमारत हुसैनाबाद इलाके में स्थित है। अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने 1842 में इसे बनवाया था। यह इमारत इटली में बनी ‘पीसा की झुकी मीनार’ की झलक पेश करती है। सतखंडा पैलेस के निर्माण के दौरान इसके चार खंड ही बन पाए थे कि इस बीच 16 मई, 1842 में मुहम्मद अली शाह का निधन हो गया। बादशाह की कई इमारतें अधूरी रह गईं, जिनमें सतखंडा या नौखंडा पैलेस, जुम्मा मस्जिद और बारादरी प्रमुख थी। जुम्मा मस्जिद को ‘खुदा का घर’ मानकर बादशाह की बेगम मलका ने पूरा करवाया, लेकिन दूसरी इमारतों को अगले बादशाहों ने भी पूरा नहीं करवाया, क्योंकि उस वक्त का दस्तूर था कि वे इमारतें मनहूस मानी जाती थीं, जिनके निर्माण के दौरान बनवाने वाले की मौत हो जाए। यही कारण है कि सतखंडा पैलेस भी तब से आज तक वैसे ही अधूरा पड़ा है

चिड़िया घर 

रोशन-उद्दौला की कोठी
कैसरबाग बस अड्डे के सामने स्थित जिस बिल्डिंग में आज पुरातत्व निदेशालय का ऑफिस है, वह भी लखनऊ की धरोहरों में से एक है। करीब पौने दो सौ साल पुरानी इस इमारत का निर्माण 1827 से 1837 के बीच लखनऊ के दूसरे बादशाह नसीरुद्दीन हैदर ने करवाया था।

सिकंदर बाग
अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह (1847-56 ई.) ने अपनी प्रिय बेगम सिकंदर महल के नाम पर सिकंदरबाग का निर्माण कराया था। इसके निर्माण में करीब एक साल का समय लगा था। इसके प्रवेश द्वार में उत्कृष्ट स्थापत्य के दर्शन होते हैं, जो भूरी सतह पर सफेद रंग की उभारी गई फूल-पत्तियों से अलंकृत है।

दादा मियां की दरगाह
लखनऊ से 32 किमी. की दूरी पर बाराबंकी जिले के देवा शरीफ में हजरत वारिस अली शाह की दरगाह है। इसे लोग दादा मियां की दरगाह भी कहते हैं। करीब 130 फीट ऊंची दरगाह की दिव्यता देखते ही बनती है। हर साल कार्तिक महीने में यहां एक विशाल मेला लगता है।

अम्बेडकर पार्क

अम्बेडकर पार्क का निर्माण निर्माण उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहनजी मायावती द्वारा वर्ष 2008 में कराया गया था। यह पार्क करीबन 107 एकड़ में फैला हुआ है
कब रखी गयी थीं नींव

इस पार्क की नींव वर्ष 1995 में रखी गई थी जब पहली बार मायावती यूपी की मुख्य मंत्री बनी थी। ये पार्क डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को समर्पित है और स्मृति चिन्ह के रूप में पार्क के अंदर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है। शुरू में इस पार्क का नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर पार्क हुआ करता था । फिर 1997 में पार्क का नाम बदल कर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मेमोरियल रख दिया गया।
खास है पार्क

इस पार्क में आप अन्यों पार्कों की तरह पेड़ पौधे नहीं बल्कि कई कलाकृतियों और स्मारकोण को देख सकते हैं।

जनेश्वर मिश्र पार्क

एशिया का सबसे बडा पार्क कहे जाने वाले जनेश्वर मिश्र पार्क हरा भरा प्राकृतिक की बेहद करीब लाता है।
जनेश्वर मिश्र का जन्म ५ अगस्त 1933 को बलिया के शुभनथहीं के गांव में हुआ था। उनके पिता रंजीत मिश्र किसान थे। बलिया में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद १९५३ में इलाहाबाद पहुंचे जो उनका कार्यक्षेत्र रहा। जनेश्वर को आजाद भारत के विकास की राह समाजवादी सपनों के साथ आगे बढ़ने में दिखी और समाजवादी आंदोलन में इतना पगे कि उन्हें लोग ‘छोटे लोहिया’ के तौर पर ही जानने लगे।

एकना अंतराष्ट्रीय स्टेडियम

लखनऊ. इस साल का इंडियन क्रिकेट डॉमेस्टिक सीजन दुलीप ट्रॉफी हो चूका है। ओपनिंग मैच लखनऊ में बने नए इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम एकाना ही हुआ। लखनऊ मेट्रो की तरह यह स्टेडियम भी अखिलेश और योगी सरकार के बीच क्रेडिट लेने का मुद्दा बना हुआ है। पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने इस प्रोजेक्ट को 2014 में मंजूरी दी थी, जिसका काम 2015 में शुरू हुआ। प्राइवेट कंपनी एकाना ने इस स्टेडियम को 2 साल 8 महीने में तैयार किया है।

सिग्नेचर बिल्डिंग

अखिलेश सरकार ने प्रदेश की अपराध स्थिति पर प्रभावी नियंत्रण तथा कानून-व्यवस्था को और अधिक चुस्त – दुरुस्त बनाने के उद्देश्य से एक ही स्थान पर पुलिस की विभिन्न शाखाओ को लाने का निर्णय लिया गया है|

इसके लिए लखनऊ में बहुमंजिला पुलिस भवन बनाये जाने की मंज़ूरी दी गई है जिससे पुलिस की विभिन्न शाखाओ को आपस में सूचनाओ के आदान–प्रदान में तेज़ी आयेगी | सिग्नेचर बिल्डिंग के रूप में नवनिर्मित होने वाला यह पुलिस भवन गोमती नगर विस्तार योजना के सेक्टर – 7 में निर्मित कराया जा रहा है | इसके निर्माण से पुलिस की विभिन्न इकाइयों से संपर्क में लगने वाले समय में बचत व कार्य में सुगमता होगी| इसका फिनिशिंग का काम तेजी से चल रहा ह।

माल दुबई के बाद लखनऊ में

आलीशान, बेहतरीन मॉल बनाने के लिए मशहूर दुबई की कंपनी लूलू ग्रुप अब लखनऊ में निवेश कर रही है। यह कंपनी सुल्तानपुर रोड पर एक मेगा-कॉमर्शियल हब बनाने की तैयारी में है। इसके लिए जगह का भी चयन कर लिया गया है।

सुशांत गोल्फ सिटी में शहीद पथ के किनारे बहुत तेजी से निर्माण कार्य चल रहा है। यह   शॉपिंग मॉल कम फाइव स्टार होटल का निर्माण हो सके, इसके लिए एलडीए से गोल्फ सिटी के ले-आउट में बदलाव के लिए अनुमति मांगी है