लखनऊ । लखनऊ में बड़े मंगल की शुरुआत ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगल से शुरू होकर प्रत्येक मंगलवार को शहर भर में भंडारे का आयोजन होता है। उसी क्रम में राजघराना ग्रुप भी तीसरे बड़े मंगल को स्मार्ट सिटी के प्रांगण में भव्य भंडारे का आयोजन किया गया है।
बताते चले कि बड़े मंगल की परंपरा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगल शासक ने की थी। नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबिया ने उसका कई जगह इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर
पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा। रूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड गईं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक ही रात में बीमार बेटा पूरी तरह से चंगा कैसे हो सकता है। तब रूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। जीर्णोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांद तारा का चिह्न आज भी मंदिर के गुंबद पर चमक रहा है।
मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़-धनिया, भूने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद.. बंटवाया और प्याऊ लगवाए थे। तभी से इस बडे़ मंगल की परंपरा की नींव पडी़।
बडा मंगल मनाने के पीछे एक और कहानी है। नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है। सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिए आलिया ने हनुमानजी की मूर्ति मंगवाई। हनुमानजी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी।
मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा। आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता है।
मंदिर का निर्माण ज्येष्ठ महीने में पूरा हुआ। मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई और बडा़ भंडारा हुआ। तभी से जेष्ठ के महीने का हर मंगलवार बडा़ मंगल के रूप में मनाने की परंपरा चल पडी़।
चार सौ साल पुरानी इस परंपरा ने इतना बृहद रूप ले लिया है कि अब पूरे लखनऊ के हर चौराहे, हर गली और हर नुक्कड पर भंडारा चलता है। पूरे दिन शहर बजरंगबली की आराधना से गूंजता रहता है और हर व्यक्ति जाति, धर्म, अमीरी-गरीबी सब भूला कर भंडारा में हिस्सा लेने और हनुमानजी का प्रसाद ग्रहण करने की होड़ में लग जाता है।
पुराने हनुमान मंदिर की मान्यता है कि बडे़ मंगल के दिन अपने निवास स्थान से लेटकर जमीन नापते हुए मंदिर तक जाने से मन्नत पूरी होती है। इसलिए बडे़ मंगल के दिन प्रातःकाल सैकड़ों लोग सड़क पर लेट-लेट कर मंदिर तक जाते हुए दिखाई पड़ते हैं और हर बार लेटते हुए… लाल लंगोटे वाले की जय.. बोलते हैं।
इन परिक्रमा करने वालों में पांच वर्ष के बच्चे से लेकर बूढे़ तक दिखाई पडते हैं। मन्नत पूरी होने पर फिर यही परिक्रमा करते हैं।
अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर के साथ अभिनेता स्वर्गीय सुनील दत्त का भी नाम जुडा़ हुआ है। देश विभाजन के बाद लखनऊ आने पर अभिनेता सुनील दत्त ने इसी मंदिर के प्रांगण में रात बिताई थी और उन्हें सोते समय स्वप्न हुआ था कि मुंबई जाओ। वहां तुम्हारा भाग्य चमकेगा। सुनील दत्त ने लखनऊ से सीधे मुंबई का रूख किया और सफलता प्राप्त की।
बडा़ मंगल की सबसे बडी़ विशेषता यह है कि इतने बृहद रूप में पूरे दिन भंडारा होता है और हनुमान जी की आराधना लाउडस्पीकर पर गूंजती रहती है, लेकिन इस दिन कभी भी, कहीं भी कोई तनाव की घटना नहीं हुई। मुस्लिम बहुल क्षेत्र में भी सभी मंदिरों में हजारों श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं।