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लोकसभा चुनाव मे योगी मैन आफ़् दी मैच बने, बडा सियासी कद ऐसे शुरू हुआ संन्यासी से राजनेता का सफर

 

ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर 15 फरवरी 1994 को दीक्षा लेने के साथ ही योगी आदित्यनाथ के सियासी सफर की ्क्रिरप्ट लिखनी शुरू हो गई थी। 1996 में योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरू को लोकसभा चुनाव जिताने के लिए प्रचार अभियान का नेतृत्व किया। 2 साल बाद अवैद्यनाथ ने उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी और वह सबसे युवा सांसद बने।

मार्च 2019 में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दो साल पूरे करते हुए एक मिसाल पेश की। सरकार ने दावा किया कि उसने अब तक तीन करोड़ लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया है। यह एक ऐसे शख्स की बड़ी उपलब्धि है जो पहले योगी था, फिर राजनेता बना और अब अपने काम के बलबूते जननेता बन गया। इसलिए लोगों का कहना है कि उनको सिर्फ संन्यासी या राजनेता कहना तो नाइंसाफी होगी, क्योंकि जननेता की जीवटता और संन्यासी वाले त्याग की वो जीती जागती मिसाल हैं।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दो साल का सफर पूरा कर लिया है. मार्च, 2017 में बीजेपी 14 साल के सियासी वनवास के बाद यूपी की सत्ता में लौटी तो मुख्यमंत्री पद का ताज योगी आदित्यनाथ के सिर सजा. 19 मार्च, 2017 को उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी, इस तरह आज उनके दो साल पूरे हो गए हैं. मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरू होती है और रात 11 बजे तक जारी रहती है. इस तरह से वो हर रोज 19 घंटे काम करते

जिंदगी की जद्दोजहद का कहकहा उन्होंने दुर्गम पहाड़ों में सीखा और उसको गंगा-यमुना के आंचल में आकर मैदानों में आजमाया। एक संत के रूप में लोगों को आशीर्वाद देते हैं तो जननायक बनकर अपनी प्रजा से वोट भी मांगते हैं। अपने प्रशंसकों की नजर में ऐसा विशाल, सहज, सरल और कई खूबियों को अपने में समाए हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का व्यक्तित्व। अपनी बुलंद आवाज, बेदाग छवि और सख्त प्रशासक वाली शख्सियत से उन्होंने जनता का दिल जीता और अपने सियासी विरोधियों पर जमकर वार भी किया

पहाड़ों में सीखी राजनीति और मैदान में लिया संन्यास

उत्तर प्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल की यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव में एक गढ़वाली राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम आनन्द सिंह बिष्ट और माता का नाम सावित्री देवी है। अपनी माता-पिता के सात बच्चों में वे पांचवे नंबर की संतान हैं।योगी आदित्यनाथ ने 1977 में टिहरी में गजा के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई शुरू की और 1987 में इसी स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की। सन 1989 में इन्होंने ऋषिकेश के श्री भरत मन्दिर इण्टर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। 1990 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए ये अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए और 1992 में श्रीनगर के हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से योगी ने गणित में बीएससी की परीक्षा पास की। साल 1993 में योगी की जिंदगी में अहम मोड़ आया और गणित में एमएससी की पढ़ाई के दौरान गुरु गोरखनाथ पर शोध करने के लिए ये गोरखपुर कूच कर गए।

महंत अवैधनाथ से हुआ संपर्क और बन गए योगी

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नाथ संप्रदाय के महत्वपूर्ण तीर्थ गोरखपुर में योगी महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए थे जो इनके पड़ोस के गांव के निवासी और परिवार के पुराने परिचित थे। महंत अवैद्यनाथ के साथ रहते इनका दुनिया से मोह भंग हो गया और ये मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर सन्यास की राह पर निकल पड़े। योगी आदित्यनाथ ने महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ले ली और इस तरह से 1994 में भगवा चोला धारण कर वह पूरी तरह संन्यासी बन गए, इस तरह से पहाड़ों के अजय सिंह बिष्ट गोरखपुर आकर योगी आदित्यनाथ हो गए। 12 सितंबर 2014 को गोरखनाथ मंदिर के पूर्व महन्त अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी आदित्यनाथ को मंदिर का महंत बनाया गया। उसके बाद योगी को नाथ पंथ के पारंपरिक अनुष्ठान के अनुसार मंदिर का पीठाधीश्वर बना दिया गया।

योगी का सियासी सफर

संन्यास मार्ग पर खुद को तपाने के बाद योगी ने जनसेवा का जिम्मा उठाया और अपने सियासी सफर की शुरूआत की। साल 1998 में योगी आदित्यनाथ ने महज 26 साल की उम्र में अपना पहला चुनाव गोरखपुर से बतौर भाजपा प्रत्याशी लड़ा और जीत दर्ज की। उस वक्त बारहवीं लोक सभा (1998-99) के वे सबसे युवा सांसद थे। इस जीत के बाद योगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके राजनीतिक सफर ने रफ्तार पकड़ ली।

1999 में ये गोरखपुर से पुनः सांसद चुने गए। साल 2002 में योगी ने हिन्दू युवा वाहिनी का गठन किया और 2004 में तीसरी बार गोरखपुर से जीतकर लोकसभा में पहुंचे। 2009 और 2014 में भी योगी की जीत का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। इस तरह योगी ने लगातार छह बार भाजपा के लिए गोरखपुर सीट को जीता। 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपा सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए सूबे में भगवा परचम फहरा दिया और इस तरह से 19 मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश के बीजेपी विधायक दल की बैठक में योगी आदित्यनाथ को विधायक दल का नेता चुनकर मुख्यमंत्री पद सौंपा दिया गया।गोरखनाथ पीठ का भारतीय जनता पार्टी से पुराना नाता रहा है। योगी आदित्यनाथ के गुरु और गोरखनाथ मठ के पूर्व प्रमुख महन्त अवैद्यनाथ भी भारतीय जनता पार्टी से 1991 तथा 1996 का लोकसभा चुनाव जीत चुके थे।

हियुवा से नौजवानों को जोड़ा


योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी  (हियुवा) का गठन कर बड़ी तादाद में नौजवानों को अपने साथ जोड़ा। घरवापसी, गोरक्षा और हिन्दू पुनर्जागरण के अभियान में यह संगठन योगी आदित्यनाथ का बड़ा आधार बना। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में बड़े पैमाने पर हियुवा की इकाइयां बनीं। इन इकाइयों में बड़ी संख्या में नौजवान शामिल हुए। इसके कई नेता आगे चलकर भाजपा के जरिए सक्रिय राजनीति में भी आए। 2017 के चुनाव में भाजपा के टिकट वितरण से नाराज होकर इसके प्रदेश अध्यक्ष ने ही बगावत भी कर दी। हालांकि योगी का हमेशा कहना रहा कि हियुवा राजनीतिक नहीं सिर्फ सांस्कृतिक संगठन है।

योगी पर हुआ था जानलेवा हमला 


सात सितंबर 2008 को आजमगढ़ में उनपर जानलेवा हमला हुआ। उस हमले में वह बाल-बाल बच गए थे। उन्हें 2007 में गोरखपुर में दंगों के बाद तब गिरफ्तार किया गया जब मोहर्रम के दौरान फायरिंग में एक हिन्दू की जान चली गई।

लेखक भी हैं योगी 
योगी आदित्यनाथ लेखक भी हैं। योगी नियमित डायरी भी लिखते हैं। उन्होंने ‘राजयोग: स्वरूप एवं साधना’, ‘यौगिक षटकर्म’, ‘हठयोग: स्वरूप एवं साधना’और ‘हिन्दू राष्ट्र नेपाल’ शीर्षक से पुस्तकें लिखीं। वह गोरखनाथ मन्दिर की वार्षिक पुस्तक ‘योगवाणी’ के प्रधान संपादक हैं।

व्यक्तिगत परिचय
जन्म 5 जून, 1972 को उत्तराखंड में पौढ़ी गढ़वाल के यमकेश्वर में हुआ
गढ़वाल विश्वविद्यालय में गणित में बीएसएसी की डिग्री हासिल की
सात भाई बहनों में पांचवें नंबर पर हैं योगी आदित्यनाथ
1993 में योगी आदित्यनाथ घर छोड़कर गोरखपुर चले आए

बड़े बयान
हिन्दुत्व मेरे जीवन का मिशन और राजनीति सेवा का माध्यम है। धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
कोई काम चाहे जितना अच्छा किया गया हो उसे और अच्छा करने की गुंजाइश बनी रहती है।
गरीबों की पीड़ा के साथ मजाक करने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता।

1990 में योगी आदित्यनाथ की गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ से भेंट होने के बाद गोरखपुर आए।

1994 में नाथ पंथ में दीक्षा ली। बाद में महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें गोरक्षपीठ  का उत्तराधिकारी बनाया।

1998 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़कर संसद पहुंचे।

ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर

15 फरवरी 1994 को दीक्षा लेने के साथ ही योगी आदित्यनाथ के सियासी सफर की ्क्रिरप्ट लिखनी शुरू हो गई थी।

1996 में योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरू को लोकसभा चुनाव जिताने के लिए प्रचार अभियान का नेतृत्व किया।

2 साल बाद अवैद्यनाथ ने उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी और वह सबसे युवा सांसद बने।