उत्तराखंड में पिछले 19 वर्षों में सड़कों की लंबाई तो बढ़ी, लेकिन उस गति से सड़कों के चौड़ीकरण का कार्य नहीं हो पाया. सोचने का विषय यह भी है कि आखिर पैदल चलने वालों की मौत कैसे हो सकती है. पिछले दो साल में प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य मार्गों पर 273 लोग पैदल चलते-चलते अपनी जान गंवा चुके हैं
- सड़कों का नहीं हुआ है चौड़ीकरण, हादसे का शिकार हो रहे लोग
- उत्तराखंड में बढ़ रहे हैं हादसों के आंकड़े, 2018 में 146 की मौत
देश के पहाड़ी राज्यों में सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं. उत्तराखंड और हिमाचल में देशभर में सड़क हादसों की संख्या दूसरे राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. हर साल कई लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवा देते हैं. कई इन हादसों में जीवनभर के लिए अपंग भी हो जाते हैं. दो साल के भीतर उत्तराखंड में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर 273 पैदल यात्री अपनी जान गंवा चुके हैं.
खतरनाक सड़कों पर होने वाले हादसों के अलावा उत्तराखंड और हिमाचल की सड़कों पर पैदल चलने वाले भी सुरक्षित नहीं हैं. सड़कें पैदल चलने वालों के लिए भी बेहद खतरनाक साबित हुई हैं. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली रिसर्च को लेकर उत्तराखंड पुलिस भी चिंतित है. इन हादसों पर लगाम लगाने के लिए कई तरह के उपाय भी पुलिस की ओर से किए जा रहे हैं.
हिमालयी राज्यों में हिमाचल के बाद उत्तराखंड में पैदल यात्रियों की मौत का ये आंकड़ा सबसे बड़ा है. हिमाचल में दो सालों के दौरान 353 पैदल यात्री सड़क पर चलते समय हादसे का शिकार हुए. पैदल यात्रियों की सड़कों पर मौत का ये आंकड़ा इसलिए भी ज्यादा प्रमाणिक है कि क्योंकि सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय ने ये आंकड़ा लोकसभा में दिया है
उत्तराखंड में 2015 में 106 पैदल यात्रियों की मौत
चिंता वाली बात यह है कि देश और प्रदेश की सड़कें पैदल चलने वालों के लिए घातक बनती जा रही हैं. राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2015 में 13,894 पैदल यात्री मारे गए थे . साल 2018 में मौत का यह आंकड़ा बढ़कर 22,656 पहुंच गया. पैदल यात्रियों की संख्या की बात करें तो उत्तराखंड में वर्ष 2015 में सड़कों पर 106 पैदल यात्री मारे गए थे. वर्ष 2018 में ये संख्या बढ़कर 146 पहुंच गई है. यानी प्रदेश में भी आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है.
क्या है हादसों की वजह?
उत्तराखंड में पिछले 19 वर्षों में सड़कों की लंबाई तो बढ़ी, लेकिन उस गति से सड़कों के चौड़ीकरण का कार्य नहीं हो पाया. सोचने का विषय यह भी है कि आखिर पैदल चलने वालों की मौत कैसे हो सकती है. पिछले दो साल में प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य मार्गों पर 273 लोग पैदल चलते-चलते अपनी जान गंवा चुके हैं.
हिमाचल इस मामले में पहले स्थान पर है. पिछले दो सालों में वहां 353 लोग पैदल चलते हुए अपनी जान गवां चुके हैं. लोकसभा दी गई जानकारी के अनुसार साल 2018 में पैदल चलने वालों लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़कर 22,656 पहुंच गया है. उत्तराखंड में 2015 में 106 पैदल यात्रियों की जान गई थी. 2018 में ये संख्या बढ़कर 146 तक जा पहुंची है.