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हौसलों ने भरी उड़ान तो छोटा पड़ गया आसमान, उत्‍तराखंड की सविता कंसवाल ने विपरीत परिस्थितियों से लड़कर बनाया रास्ता

हौसला अगर पहाड़ से भी ऊंचा तो विपरीत परिस्थितियां भी आखिरकार घुटने टेक ही देती है। इसी हौसले की मिसाल हैं उत्तरकाशी जिले के लौंथरू गांव निवासी सविता कंसवाल। सविता का चयन इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) के माउंट एवरेस्ट मैसिव एक्सपिडीशन के लिए हो चुका है। यह अभियान अप्रैल 2020 में होना था, लेकिन कोविड-19 के कारण इसे स्थगित कर दिया गया है। अब वर्ष 2021 में यह आरोहण होने की उम्मीद है। प्री एवरेस्ट अभियान के तहत सविता त्रिशूल समेत देशभर की पांच चोटियों का सफल आरोहण कर चुकी हैं।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 15 किमी दूर भटवाड़ी ब्लॉक के लौंथरू गांव निवासी 24 वर्षीय सविता कंसवाल का बचपन कठिनाइयों में गुजरा। पिता राधेश्याम कंसवाल और मां कमलेश्वरी देवी ने खेती से आर्थिकी जुटाकर किसी तरह चार बेटियों का पालन-पोषण किया। चार बहनों में सविता सबसे छोटी थी। वर्ष 2011 में राइंका मनेरी से सविता का चयन दस दिवसीय एडवेंचर कोर्स के लिए हुआ। इस दौरान जब सविता ने भारत की प्रथम एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल, वरिष्ठ पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल समेत कई पर्वतारोही महिलाओं के नाम सुने तो आंखों में सपने तैर गए। तय किया अब तो एवरेस्ट ही मंजिल है।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 15 किमी दूर भटवाड़ी ब्लॉक के लौंथरू गांव निवासी 24 वर्षीय सविता कंसवाल का बचपन कठिनाइयों में गुजरा। पिता राधेश्याम कंसवाल और मां कमलेश्वरी देवी ने खेती से आर्थिकी जुटाकर किसी तरह चार बेटियों का पालन-पोषण किया। चार बहनों में सविता सबसे छोटी थी। वर्ष 2011 में राइंका मनेरी से सविता का चयन दस दिवसीय एडवेंचर कोर्स के लिए हुआ। इस दौरान जब सविता ने भारत की प्रथम एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल, वरिष्ठ पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल समेत कई पर्वतारोही महिलाओं के नाम सुने तो आंखों में सपने तैर गए। तय किया अब तो एवरेस्ट ही मंजिल है।