मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि तिब्बत से श्रीलंका पाकिस्तान से बांग्लादेश तक नाथ पंथ फैला है। सामाजिक विकृतियों एवं कुरीतियों के विरोध में नाथ पंथ के अनुयायियों ने आवाज उठाई। झोपड़ी से लेकर राजमहल तक नाथ पंथ की परंपरा मिलेगी। नाथ पंथ की परंपरा बेहद समृद्ध है। यह तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक पाकिस्तान के पेशावर से लेकर बांग्लादेश के ढाका, अफगानिस्तान तक को एक सूत्र में जोड़ता है।
मुख्यमंत्री शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बतौर अध्यक्षीय सम्बोन्धन में यह बातें कही। वह नाथ पंथ का वैश्विक प्रदेय विषय बोल रहे थे। उन्होंने नाथ पंथ के कई अच्छे पल की चर्चा की। कुछ संस्मरण भी सुनाए।
उन्होंने बताया कि नेपाल के दांग के राजकुमार राजा रतन नाथ परंपरा को नेपाल में फैलाया। उनकी नाम की एक दरगाह का अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में है। उनका एक मठ दिल्ली में भी है। एक बांग्लादेश के ढाका में ढाकेश्वरी देवी का मंदिर स्थित है। इसके अलावा वहां पर आदिनाथ भगवान का मंदिर मौजूद है। नाथ पंथ की परंपरा राजस्थान से भी जुड़ी है। जोधपुर में नाथ पंथ से जुड़ा हुआ लाइब्रेरी मौजूद है। जहां नाथ पंथ से जुड़े साहित्य है, जो 400 साल पुराने हैं।
कहा कि जोधपुर में नाथ पंथ बेहद समृद्ध है। वहां नाथ पंथ से जुड़ी लाइब्रेरी है, जो 17वीं शताब्दी में जोधपुर में नाथ पंथ के साहित्यकारों ने श्रीनाथ तथा आवली की रचना की। इसमें नाथ पंथ से जुड़े सभी तीर्थ स्थलों का विस्तृत विवरण है। उनके महत्व की जानकारी है। बताया कि नाथ पंथ के सिद्धांतों के साथ ही उसका व्यवहारिक पक्ष भी बेहद मजबूत है। यह जीवन चर्या का सिद्धांत है। नाथ पंथ के सिद्धांतों का पालन करके व्यक्ति सामाजिक कुरीतियों के साथ ही शारीरिक बीमारियों से भी बच सकता है। यह खानपान जीवन संयम रहन-सहन सब की शिक्षा देता है। नाथ पंथ के सन्यासी वंदे मातरम गीत से भी जुड़े रहे हैं। हिंदी, सहित अन्य भाषाओं में नाथ पंथ की साहित्य की किताबें उपलब्ध हैं। युवा पीढ़ी इसे पढ़कर नाथ पंथ के बारे में जान सकते हैं। इनसाइक्लोपीडिया में इसकी जानकारी उपलब्ध हो इस दिशा में ही विश्वविद्यालय प्रयास करें जिससे कि नाथ पंथ का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में और फैल सके। कहा कि देश के हर हिस्से और राज्य में नाथ पंथ के लोग है।
कहा कि जोधपुर में नाथ पंथ बेहद समृद्ध है। वहां नाथ पंथ से जुड़ी लाइब्रेरी है, जो 17वीं शताब्दी में जोधपुर में नाथ पंथ के साहित्यकारों ने श्रीनाथ तथा आवली की रचना की। इसमें नाथ पंथ से जुड़े सभी तीर्थ स्थलों का विस्तृत विवरण है। उनके महत्व की जानकारी है। बताया कि नाथ पंथ के सिद्धांतों के साथ ही उसका व्यवहारिक पक्ष भी बेहद मजबूत है। यह जीवन चर्या का सिद्धांत है। नाथ पंथ के सिद्धांतों का पालन करके व्यक्ति सामाजिक कुरीतियों के साथ ही शारीरिक बीमारियों से भी बच सकता है। यह खानपान जीवन संयम रहन-सहन सब की शिक्षा देता है। नाथ पंथ के सन्यासी वंदे मातरम गीत से भी जुड़े रहे हैं। हिंदी, सहित अन्य भाषाओं में नाथ पंथ की साहित्य की किताबें उपलब्ध हैं। युवा पीढ़ी इसे पढ़कर नाथ पंथ के बारे में जान सकते हैं। इनसाइक्लोपीडिया में इसकी जानकारी उपलब्ध हो इस दिशा में ही विश्वविद्यालय प्रयास करें जिससे कि नाथ पंथ का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में और फैल सके। कहा कि देश के हर हिस्से और राज्य में नाथ पंथ के लोग है।