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यूपी पंचायत चुनाव : आजादी के बाद से अब तक इन गांवों में एक परिवार से चुने जाते हैं प्रधान

प्रयागराज की मुकुंदपुर, बस्ती की डुहवा, उन्नाव की सुमेरपुर सहित प्रदेश में कई ऐसी ग्राम पंचायतें हैं, जहां आजादी के बाद से एक या दो बार को छोड़ लगातार एक ही परिवार के सदस्य ग्राम प्रधान चुने जा रहे हैं। इन ग्राम पंचायतों की पहचान इन परिवारों से हो गई है। पहचान को बनाए रखने के लिए वर्तमान पंचायत चुनाव में एक बार इन परिवारों के लोग मैदान में उतर चुके हैं या उतरने की तैयारी में हैं।

प्रयागराज के होलागढ़ ब्लॉक के मुकुंदपुर की प्रधानी एक चुनाव को छोड़ 1952 से देव परिवार के ही पास है। शुरूआत महादेव प्रसाद शुक्ल से हुई थी। जो बाद में लगातार तीन बार तक बहादुरपुर ब्लॉक के प्रमुख भी रहे। उनके बाद छोटे भाई, भतीजे, पुत्रबधू, प्रपौत्र से होते हुए प्रधान की कमान उनके प्रपौत्र की पत्नी तक पहुंची। फूलपुर ब्लॉक के अमहुआ ग्राम पंचायत की स्थिति भी कुछ इसी तरह की है। यहां दो चुनाव छोड़ बाकी चुनावों में एक परिवार की तीन पीढ़ियों के सदस्य ग्राम प्रधान रह चुके हैं। सबसे पहले मासूम खान के पिता प्रधान रहे फिर उनके भाई आलम खान, भाभी आशिया बेगम फिर आलम खान के पुत्र सालिम खान उनकी पत्नी शबनम बेगम प्रधान रहीं।

बस्ती जिले के गौर ब्लॉक की डुहवा ग्राम पंचायत में 1952 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय सीताराम सिंह प्रधान बने थे, जो 1981 तक रहे। 1981 में उनके निधन के बाद उनके पुत्र गणेश सिंह और उनकी पत्नी शारदा सिंह के हाथ गांव की बागडोर रही। 2010 में डुहवा ग्राम पंचायत पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हुई तो परिवार अपने पुश्तैनी ड्राइवर बंसराज यादव को निर्विरोध प्रधान बनाने में कामयाब रहा। पुनः 2015 में सीट सामान्य महिला हुई तो सीताराम सिंह के बड़े पुत्र अवधेश सिंह की पत्नी श्रीमती सुदामा सिंह प्रधान बनी। इस तरह से सात दशक से डुहवा ग्राम पंचायत पर एक ही परिवार का एकाधिकार बदस्तूर बना हुआ है। 1982 से इसी परिवार के लोग ब्लॉक प्रमुख भी हो रहे हैं।

वाराणसी समेत पूर्वांचल के कई जिलों में ऐसे परिवार है, जिनके घर उस समय से प्रधानी है जब से पंचायती राज व्यवस्था लागू है। ऐसे परिवार में बलिया के पूर्वमंत्री बच्चा पाठक का परिवार है। कई ऐसे परिवार हैं जिनके घर प्रधानी चार दशकों से हैं। इसमें से जौनपुर के नन्हकू यादव का परिवार है। नन्हकू के घर 37 साल से प्रधानी है। जौनपुर के हौज गांव के भृगुनाथ चौहान के घर 25 सालों से प्रधानी है। ऐसे ही बलिया के सुग्रीव सिंह, जौनपुर के उदय प्रताप सिंह का परिवार है।

सैफई ग्राम पंचायत में मुलायम सिंह यादव के बालसखा दर्शन सिंह यादव 1972 से लेकर अक्टूबर 2020 तक निर्विरोध प्रधान रहे। अक्टूबर 2020 में उनके निधन के बाद अब चुनाव हो रहा है। इस बार सैफई ग्राम पंचायत में प्रधान का पद एससी महिला के लिए आरक्षित हो गया है।

उन्नाव के सुमेरपुर ब्लॉक की सहिला ग्राम पंचायत  में बाजपेयी परिवार में आजादी के बाद से एक बार को छोड़ अब तक प्रधानी कायम है। आजादी के बाद से 1995 तक डॉ. रामविशाल बाजपेयी गांव के प्रधान रहे। 1995 में सीट आरक्षित होने पर इस परिवार ने अपने सहायक प्रेमलाल को प्रधान का चुनाव लड़वाया। वह जीत गए। 2000 में डॉ. रामविशाल की पुत्रवधू शिवकुमारी बाजपेयी प्रधान बनीं। 2015  में वह जिला पंचायत सदस्य हुईं तो उन्होंने अपनी पुत्रवधू किरन बाजपेयी को प्रधान का चुनाव लड़ाया। वह जीत गईं। इस बार भी वह चुनाव लड़ रही हैं।

कानपुर देहात के सरवनखेड़ा ब्लॉक में 1965 में गुजराई ग्राम पंचायत बनी। कानपुर नगर से विधायक महेश त्रिवेदी के पिता राम गणेश त्रिवेदी पहली बार से वर्ष 2000 तक निर्विरोध प्रधान रहे। 2000 में उनके परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ा। 2005 में राम गणेश त्रिवेदी के भतीजे उमेश त्रिवेदी प्रधान हुए। 2010 में सीट पिछड़ा वर्ग की थी। शशि देवी कुशवाहा प्रधान बनी। 2015 में फिर उमेश त्रिवेदी प्रधान हुए। इस बार इस परिवार से कोई चुनाव नहीं लड़ सकेगा। नए आरक्षण में सीट पिछड़ा वर्ग के लिए है।

हरदोई के कोथावा विकास खंड की ग्राम पंचायत अटिया शाहपुर में 20 साल तक पूर्व मंत्री व मौजूदा बालामऊ के विधायक रामपाल वर्मा की मां गजरानी देवी प्रधान चुनी जाती रहीं। वह 1995 से लेकर 2015 तक लगातार चार बार प्रधान चुनी गईं। वर्ष 2015 में विधायक की पत्नी सरोजनी निर्विरोध प्रधान बनीं। 2021 के चुनाव में भी सरोजनी देवी निर्विरोध निर्वाचित होंगी। उनके खिलाफ किसी ने नामांकन नहीं किया है।

औरैया के हरदौली ग्राम पंचायत में 1962 से सपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे रामबाबू यादव के परिवार के लोग प्रधान हो रहे हैं। यहां 1962 में उजियारे लाल यादव प्रधान हुए। फिर इसी परिवार के राम बाबू यादव और श्याम बाबू यादव, सुषमा देवी, हरि बाबू और प्रदीप कुमार प्रधान चुने गए।