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कोरोना का खौफ: जहां मृत्यु उत्सव की तरह दिखती थी आज वहां दहशत, मुंहमांगी कीमत देकर घाट से घर लौट जा रहे परिजन

काशी के महाश्मशान पर जहां मृत्यु उत्सव की तरह दिखती थी वहां आज दहशत है। जीवन का अंतिम सत्य बखानने वाले पलभर भी रुकना नहीं चाहते। वाराणसी के घाट की सीढ़ियों पर जगह-जगह रखे शव संस्कार के लिए घंटों-घंटों पड़े रहते हैं। बुधवार को कुछ ऐसे ही दृश्य रोंगटे खड़े कर रहे थे। कोरोना पीड़ितों के चार शव विशेष किट में रखे थे तो पास ही स्वाभाविक मृत्यु के शिकार दर्जनभर पार्थिव शरीर कफन और टिकठी में लिपटे पड़े थे। चौधरी समाज के आगे-पीछे लगे शवयात्रियों की भीड़ थी कि किसी तरह जल्दी नंबर लग जाए ताकि वे दहशतवाले माहौल से दूर चले जाएं। इस बीच कुछ लोग चौधरी से रुंधे गले बातचीत करते मिल जाते हैं, भाई संस्कार कर देना, कितना लोगे बता दो…। रकम तय हुई, नोट थमाया और निकल गए। 

ऐसा माहौल पहले कभी नहीं 
बुधवार, शाम के चार बजे हैं। हरिश्चंद्र घाट की पहली सीढ़ी से 50 मीटर पहले से ही शव रखे हैं, आसपास कोई नहीं है। शवों को खास तरह के मोटे कपड़े में लपेटा गया है, बगल में पीपीई किट, मास्क पड़े हैं जो वहां से गुजरने वाले लोगों को डरा रहे है और बता रहे हैं कि ये शव कोरोना संक्रमण से मृत लोगों के हैं।
चंदौली से बुजुर्ग महिला का अंतिम संस्कार करने परिजन टेम्पो से शव लेकर पहुंचे। साथ में 10 लोग और आए। दोपहिया वाहनों से आए चार लोग घाट से पहले ही कोरोना मरीजों के शवों को देख दहल से गए। जिस शव के अंतिम संस्कार में आए थे, उनको दूर से मन ही मन प्रणाम कर लौट गये। अन्य चार परिजन खुद को बचाते आगे बढ़े। सीएनजी शवदाह गृह के मुख्य प्रवेश द्वार पर कोरोना मरीजों के चार शव संस्कार के इंतजार में पड़े हैं। उनके साथ आए परिजन मास्क पहने, हाथों में सेनेटाइजर लिये दूर खड़े हैं।

भयभीत हैं शवयात्री
बुजुर्ग महिला का शव लेकर लोग घाट पर पहुंचे। वहां भी लकड़ी पर कोरोना मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार हो रहा था। करीब आधे घंटे इंतजार के बाद बुजुर्ग महिला के साथ आए परिजनों की हिम्मत टूट गई, संक्रमण का भय सताने लगा। चौधरी समाज के लोगों से बातचीत की, बोले-संस्कार कर देना भाई, कितना लोगे ये बताओ। रुपया हाथ में थमाया। हो जाएगा न कि और देना होगा। चौधरी समाज के दो युवाओं ने कहा, थोड़ा इंतजार कर लीजिए। परिजन बोले, देख के डर लग रहा है। हमारे साथ आए लोग भी घबरा रहे हैं। ठीक है पांच हजार और लगेगा।
चौधरी समाज के एक बुजुर्ग ने बताया कि पिछले साल से भी ज्यादा डराने वाली स्थिति है। लोग अपने मां-बाप-भाई के शवों का बिना संस्कार किए ही चले जा रहे हैं। पैसे देकर किसी को सौंप दे रहे हैं। हाल तो यह है कि शव के साथ आने वाले काफी लोग घाट से आधा किलोमीटर दूर सोनारपुरा चौराहे पर ही ठिठक जा रहे हैं।

रोज दर्जनभर से ज्यादा संक्रमण के मृत लोगों का संस्कार
हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना मरीजों की संख्या ज्यादा होने से वहां सामान्य रूप से शव लेकर आनेवाले लोगों में दहशत दिख रही है। घाट से पहले ही पूरे रास्ते कोरोना मरीजों के शवों को देख करीब एक सप्ताह से यहां का यही नजारा है। हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता देखी जा सकती है। केवल सीएनजी शवदाह गृह में प्रतिदिन एक दर्जन से ज्यादा कोरोना मरीजों के शवों का संस्कार हो रहा है। बनारस समेत पूर्वांचल के शव भी शामिल हैं।

मणिकर्णिका घाट पर तीन गुना बढ़ा लोड
मणिकर्णिका घाट पर भी शवों के संस्कार के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। हालात ये है कि शवदाह स्थल से लेकर सीढ़ियों तक शव को रखकर लोग अंतिम संस्कार के लिए बारी का इंतजार करते रहे हैं। जितने शव जलाए जाते हैं उससे चार गुना ज्यादा रखे मिलते हैं। चौधरी परिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले पांच दिनों से यहां पर आनेवाले शवों की संख्या में अचानक तेजी आ गई। सामान्य दिनों में पहले प्रतिदिन 80 से 100 शव जलाए जाते थे। अब यहां संख्या 300 तक पहुंच जाती है।

प्रदेश के कई जिलों में ऐसे ही हालात
लखनऊ, आगरा, कानपुर, प्रयागराज आदि में भी अंतिम संस्कार के लिए लोगों को कई-कई घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है। जिम्मेदार महकमा भले ही अपेक्षित व्यवस्था का दावा कर रहा हो, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।

यहीं बिके थे राजा हरिश्चंद्र
हरिश्चंद्र घाट सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां अपनी सत्यनिष्ठा के लिए महाराज ने स्वयं को डोमराजा के हाथों बेच दिया था। यही नहीं, बताते हैं कि सिद्ध संत बाबा कीनाराम ने यहां साधना भी की थी। इस घाट पर भी मणिकर्णिकाघाट की भांति ही चौबीस घंटे शवदाह किया जाता है।
हरिश्चंद्र घाट पर वाहनों की पहुंच आसान है। यहां घाट की सीढ़ियों तक चौड़ी सड़क होने के कारण वाहन आसानी से पहुंच जाते हैं। यहां सीएनजी शवदाह गृह भी है। जहां तय शुल्क लिया जाता है, जो लकड़ी से संस्कार की अपेक्षा काफी कम है। इन सभी कारणों से यहां ज्यादा लोग पहुंचते हैं। इन दिनों इस घाट का महत्व ज्यादा बढ़ गया है, कारण कोरोना संक्रमण से मृत लोगों को लेकर स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस सीधे शवदाह गृह तक पहुंच जाती है।