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लापरवाही : रोज जूस व फल लाता रहा बेटा, 4 दिन पहले हुई पिता की मौत का नहीं चला पता

कोरोना काल में अस्पतालों में बदइंतजामी की ऐसी-ऐसी खबरें आ रहीं हैं, जो लोगों को शायद ताउम्र सालती रहें। एक ऐसा ही मामला एजी ऑफिस से रिटायर बच्चीलाल के साथ हुआ है। उन्होंने कोरोना संक्रमित बुजुर्ग पिता मोतीलाल को एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया था। रोज जूस और फल उन्हें पहुंचाते रहे। लेकिन बुधवार को पता चला कि उनके पिता की तो मौत चार दिन पहले हो चुकी है। उनके शव का तो अंतिम संस्कार भी कराया जा चुका है।

ट्रांसपोर्ट नगर महेन्द्र नगर के बच्चीलाल ने बताया कि उनके पिता मोतीलाल (82) की कोविड रिपोर्ट 12 अप्रैल को पॉजिटिव आई। 13 को उन्हें एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया। 16 और 17 को तालाबंदी के कारण वे अस्पताल नहीं आ पाए। 18 को जूस और फल लेकर गए तो बताया गया कि पिता ठीक हैं उन्हें बेड नंबर 37 से 9 नंबर पर शिफ्ट कर दिया गया है। बुधवार को जब पहुंचे तो एक और तीमारदार आ गया। जिसे बच्चीलाल का पिता कहकर नौ नंबर पर शिफ्ट बताया जा रहा था, उसका असली बेटा यह तीमारदार था। संयोग यह था कि बच्चीलाल और उस शख्स के पिता का नाम एक ही था।

उस तीमारदार ने बच्चीलाल से कहा कि नौ नंबर पर तो मेरे पिताजी हैं। बच्चीलाल ने कहा कि नहीं वो मेरे पिता है। जब दोनों आशंकित हुए तो नर्स को बुलाया। नर्स ने नौ नंबर के मरीज को शीशे के सामने बुलाया तो वह आ गए। यह देख बच्चीलाल का माथा घूम गया। वह उनके पिता नहीं थे। फिर उन्होंने अपने पिता के बारे में पूछा तो कहा गया कि उन्हें दूसरे तल पर ले गए हैं, यहां नहीं हैं।

इसके बाद बच्चीलाल 9 से 11 बजे तक भटकते रहे लेकिन कोई कुछ नहीं बता सका। अधीक्षक के पास गए तो उन्होंने कहा जाइए ढूंढिए, वहीं होंगे जाएंगे कहां। काफी गिड़गिड़ाने पर एक आदमी को भेजा। उसने लौटकर जो बताया वो सुनकर बच्चीलाल का कलेजा बैठ गया। उसने कहा कि दूसरे तल में 16 अप्रैल को शिफ्ट किया गया था और 17 को सुबह 6.30 बजे उनकी मौत हो गई थी। उनका अंतिम संस्कार भी हो चुका है।

बच्चीलाल को मलाल
पिता की मौत के बारे में बुधवार को बताने के बाद अस्पताल की ओर से उन्हें डेथ सर्टिफिकेट थमा दिया गया, जो वहां रखा था। जब बच्चीलाल ने पू्छा कि आपने चार दिन पहले हुई मौत की सूचना तक क्यों नहीं दी तो कर्मचारी ने कहा कि आपका नंबर नहीं था। जब कहा कि नंबर तो लिखा है, तो कहा कि नंबर नहीं मिल रहा था। अब बच्चीलाल को मलाल है कि उनके पिता को लावारिस में जला दिए या फेंक दिए, यह भी उन्हें नहीं पता। वह तो पिता का अंतिम बार मुंह भी नहीं देख सके।