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उम्मीद: मुफ्त कोरोना टीकाकरण से खत्म होगी असमानता

देश में कोविड-19 से बचाने के लिए नागरिकों का टीकाकरण जरूरी है, लेकिन मौजूदा हालात में असमानता बढ़ी है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां नागरिक टीके का इंतजार ही कर रहे हैं, वहीं शहरों में ज्यादा तेजी से टीकाकरण हो रहा है। 18 से ज्यादा वालों को मुफ्त टीकाकरण की प्रधानमंत्री की घोषणा से परिस्थितियों में कोई बदलाव आएगा, यह अभी देखना है।

तथ्य यह है कि नौ प्रमुख शहरों में बाकी के मुकाबले 16 प्रतिशत ज्यादा टीके लगे
सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, देश के 114 सबसे कम विकसित जिलों में 17.60 करोड़ लोग रहते हैं, वहां 2.30 करोड़ टीके ही दिए गए। खास बात यह है कि इतने ही टीके देश के नौ प्रमुख शहरों नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूरू, हैदराबाद, पुणे, ठाणे और नागपुर में दिए जा चुके हैं।

आबादी के लिहाज से 114 जिलों के मुकाबले यहां 50 फीसदी नागरिक हैं। मई में टीकाकरण की असमानता और बढ़ी क्योंकि सरकार ने निजी अस्पतालों को 45 साल से कम उम्र के नागरिकों के लिए टीके बेचने की अनुमति दे दी। इन प्रमुख शहरों में निजी अस्पतालों की संख्या व लोगों के पास खरीदने की क्षमता ज्यादा है, ऐसे में टीकाकरण ज्यादा हुआ।

महाराष्ट्र के सतारा में ग्रामीण अतुल पवार ने बताया कि दूसरे शहरों में रहने वाले उनके कई दोस्तों ने निजी अस्पतालों में टीके लगवा दिए हैं। वे खुद भी टीके की कीमत देने को तैयार हैं, लेकिन उनके जिले में टीके उपलब्ध ही नहीं।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने शनिवार को बयान दिया कि टीकाकरण में असमानता की बात कोरी कल्पना है। मंत्रालय ने ऐसे राज्यों को अपने टीकाकरण अभियान का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए कहा, जहां निजी अस्पताल कम हैं। सरकारी पैनल में शामिल अस्पतालों को फार्मा कंपनियों से टीके खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया।

ग्रामीण क्षेत्रों में खतरा बढ़ा
देश की दो-तिहाई आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, लेकिन शहरों में ज्यादा टीकाकरण से आशंका जताई जा रही है कि ग्रामीण हिस्सों में वायरस फैल सकता है। मोदी सरकार ने मई में राज्यों को 45 वर्ष से कम उम्र के नागरिकों के लिए टीके खरीदने के लिए कहा था, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर राज्य का कहना है कि अगर निशुल्क टीके नहीं दिए गए, तो उनके नागरिक बड़ी संख्या में कोरोना के खतरे की जद में आ जाएंगे। 

बड़ी कंपनियों ने खुद लगवाए टीके
कई मल्टीनेशनल और बड़ी घरेलू कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को खुद ही अभियान लगाकर टीके लगवा दिए। उन्होंने प्राइवेट अस्पतालों से समझौते किए। यह सब तब हुआ जब टीकाकरण के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है।

यह कंपनियां बड़े शहरों में होने से भी यहां टीकाकरण ज्यादा हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कई बार इंटरनेट की सुविधा भी ठीक से नहीं मिलती, टीकाकरण के लिए ऑनलाइन स्लॉट बुक करना अपने आप में एक चुनौती है। जागरूकता की कमी से भी यहां टीकाकरण को लेकर झिझक है।