कोरोना की कुछ वैक्सीन लेने के बाद क्लॉटिंग की शिकायतें सामने आई हैं। लेकिन अब शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि असल में क्लॉटिंग वैक्सीन से नहीं बल्कि इसे गलत ढंग से इंजेक्ट करने के चलते हो रही है। टीओआई की खबर के मुताबिक, एक नई स्टडी में कहा गया है कि मसल्स के बजाए नसों में वैक्सीन के इंजेक्शन का लग जाना क्लॉटिंग की वजह बन रहा है। गौरतलब है कि एस्ट्राजेनका, जॉनसन एंड जॉनसन और स्पुतनिक की डोज लेने वालों में क्लॉटिंग की बातें सामने आई हैं. हालांकि ऐसे केसेज बहुत कम हैं.
जर्मनी की म्यूनिख यूनिवर्सिटी में एक क्लिनिकल ट्रायल में साइंटिस्ट द्वारा चूहों पर और इटली की एक रिसर्च लैब में हुई रिसर्च में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक कोरोना वायरस की वैक्सीन लगने के बाद ऐसी प्रॉब्लम इसलिए आ रही है क्योंकि वैक्सीन मसल्स के बजाए नसों में लग जा रही है। इस स्टडी का कुछ हिस्सा एक वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है। इस स्टडी में दिखाया गया है कि अगर नसों में वैक्सीन चली जाए तो क्या असर हो सकता है। यह स्टडी इंसानों पर नहीं की जा सकती थी, ऐसे में इसे चूहों पर अंजाम दिया गया। जब चूहों को मसल्स के अंदर वैक्सीन दी गई तब कोई समस्या नहीं हुई। लेकिन जब यह नसों में लगाई गई तो शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैल गई और क्लॉट की समस्या देखने को मिली।
आईआईएम द्वारा कोरोना वायरस के लिए बनाई गई नेशनल टास्क फोर्स के सदस्य, डॉक्टर राजीव जयादेवन ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि अगर निडिल की टिप मसल्स में पर्याप्त गहराई तक इंजेक्ट नहीं होती है तो वैक्सीन नसों में पहुंच सकती है। डॉक्टर राजीव के मुताबिक गलत ढंग से ट्रेंड किए गए हेल्थ वर्कर्स वैक्सीन लगाने से पहले स्किन को खींचते हैं। जबकि मसल्स के अंदर दिए जाने वाले इंजेक्शन को लगाने से पहले स्किन को खींचना नहीं चाहिए।
अगर स्किन खींची जाती है तो सुई कुछ ही टिश्यूज तक पहुंचती है। ऐसे में एक तो वैक्सीन पूरी तरह से अब्जॉर्ब नहीं होती दूसरे कुछ मामलों में वैक्सीन नसों में पहुंच जाती, जो बाद में अन्य धमनियों तक चली जाती है। इससे पूर्व अप्रैल की शुरुआत में भी डॉक्टर जयदेवन वैक्सीन की गलत इंजेक्शन तकनीक को लेकर चेतावनी दे चुके हैं। तब डेनमार्क में हुई स्टडी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि गलत तकनीक से वैक्सीन लगाने से क्लॉटिंग की प्रॉब्लम सामने आ सकती है।