सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि छंटनी करते समय यदि औद्योगिक विवाद कानून की धारा 25 एफ की शर्तों का पालन नहीं किया गया है तो ऐसी स्थिति में कर्मचारी को पिछले वेतन के साथ दोबारा सेवा में लिया जाना जरूरी नहीं है। यह फैसला देकर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला रद्द कर दिया, जिसमें बुंदेलखंड क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (टीकमगढ़) के छंटनी किए गए कर्मचारी को पूरे पिछले वेतन के साथ नौकरी पर रखने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कर्मचारी को दिया गया 5 लाख रुपये का मुआवजा पर्याप्त है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने बैंक की अपील मंजूर करते हुए कहा, दलीलों पर विचार करने के बाद हमारा मानना है कि प्रतिवादी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए कानून के मद्देनजर बहाली का हकदार नहीं है। मामले में दिए गए फैसलों पर आधारित निर्णय में यह स्पष्ट है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ के तहत छंटनी की शर्तों का उल्लंघन बकाये वेतन के पूर्ण भुगतान के साथ बहाली के लिए स्वत: ही आवश्यक नहीं होगा।
इस मामले में पंचम यादव बैंक से हटाए जाने को केंद्र सरकार औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण ने दावेदार के खिलाफ फैसला दिया और माना कि वह एक नियमित कर्मचारी नहीं था, क्योंकि वह दैनिक मजदूरी पर कार्यरत था। वह यह साबित नहीं कर सका कि उसने एक कैलेंडर वर्ष में लगातार 240 दिनों से अधिक काम किया है। इस फैसले को यादव ने रिट याचिका में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने यादव की याचिका स्वीकार कर ली और फैसला दिया कि बैंक यह बताने में सफल नहीं हो सका है कि यादव ने 240 दिनों तक लगातार काम नहीं किया है। इस फैसले के खिलाफ बैंक सुप्रीम कोर्ट आया था।
धारा 25एफ कामगारों की छंटनी से पहले की शर्तों को सूचीबद्ध करता है :
किसी उद्योग में नियोजित कोई भी कामगार, जो किसी नियोक्ता के अधीन कम से कम एक वर्ष तक निरंतर सेवा में रहा हो, उस नियोक्ता द्वारा तब तक छंटनी नहीं की जाएगी जब तक कि कामगार को लिखित में एक महीने का नोटिस दिया गया है जिसमें छंटनी के कारणों का संकेत दिया गया है।