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पर्यावरण के विषैले तत्वों से पुरुषों में घट रही प्रजनन दर? रिसर्च में हैरान करने वाला दावा

अमेरिका में, हर आठ में से एक करीब एक दंपति बांझपन का शिकार है। दुर्भाग्य से, रिप्रोडक्टिव मेडिसिन में विशेषज्ञता प्राप्त चिकित्सक करीब 30 से 50 प्रतिशत मामलों में पुरुषों में बांझपन का कारण नहीं समझ पाते। बांझपन का पता चलने के बाद कई दंपति लगभग एक ही तरह के सवाल पूछते हैं, क्या काम का, उनके फोन का, हमारे लैपटॉपों का, इन सारे प्लास्टिकों का कोई असर पड़ता है? आपको लगता है कि इन सबके कारण बांझपन हुआ है?

आजकल मरीज पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह पूछ रहे हैं कि क्या पर्यावरण में मौजूद विषैले पदार्थ प्रजनन क्षमता पर असर डाल रहे हैं? पुरुषों की घटती प्रजनन क्षमता बांझपन एक साल तक नियमित तौर पर शारीरिक संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण करने की अक्षमता को कहा जाता है। ऐसे मामलों में, चिकित्सक इसका निर्धारण करने के लिए दोनों साथियों का आकलन करते हैं।

पुरुषों के लिए, प्रजनन का मूल्यांकन का आधार वीर्य का विश्लेषण होता है और शुक्राणओं का आकलन करने के कई तरीके होते हैं। शुक्राणुओं की संख्या- पुरुष द्वारा उत्पन्न शुक्राणुओं की कुल संख्या और शुक्राणु सांद्रता यानी प्रति मिलीलीटर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या- आम तरीके हैं लेकिन वे प्रजनन क्षमता के सबसे सटीक मानक नहीं हैं। ज्यादा बेहतर तरीके में कुल गतिशील शुक्राणुओं को देखा जाता है जो तैरने और चलने में सक्षम शुक्राणुओं के अंशों का मूल्यांकन करता है।

पहले की तुलनाम में आज कम शुक्राणु बन रहे

कई कारक- मोटापे से लेकर हार्मोनों का असंतुलन और आनुवंशिक बीमारियां प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। कई पुरुषों को इलाज से मदद मिल सकती है। लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में रिसर्चरों ने चिंताजनक प्रवृत्ति देखी। कई जोखिम कारकों को नियंत्रित करने के बावजूद, पुरुषों की प्रजनन क्षमता दशकों से घटती दिख रही है। विभिन्न अध्ययनों में इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि आज पुरुषों में पूर्व की तुलना में कम शुक्राणु बन रहे हैं और वे कम सेहतमंद हैं। अब सवाल उठता है कि किस कारण से क्षमता प्रभावित हो रही है।

पर्यावरणनीय विषैलापन और प्रजनन

वैज्ञानिकों को कई वर्षों से जानकारी थी कि कम से कम जानवरों के मॉडल में, पर्यावरणीय विषाक्तता के संपर्क में आने से हार्मोनों का संतुलन बिगड़ता है और प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। मनुष्यों को परिणाम जानने के लिए जान-बूझकर इन खतरनाक पदार्थों के संपर्कों में नहीं रखा गया लेकिन स्थिति को समझने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने वातावरण में खतरनाक रसायनों पर गौर करना शुरू किया। हालांकि, उन्हें किसी खास रसायन को निर्धारित करने में मदद नहीं मिली लेकिन साक्ष्य बढ़ते जा रहे हैं

क्यों सेहत पर पड़ रहा बुरा असर?

इस अनुसंधान में पाया गया कि प्लासिटिसाइजर (ज्यादातर प्लास्टिक में मिलने वाला) के साथ ही कीटनाशक, शाकनाशी, भारी धातु, जहरीली गैसें और अन्य सिंथेटिक सामग्रियां इन खतरनाक रसायनों में शामिल है। इसके अलावा वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार अति सूक्ष्म कण, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य पदार्थों के कारण शुक्राणु की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

अनियंत्रित रसायनों का इस्तेमाल

आज कई रसायनों का प्रयोग हो रहा है और सभी का पता लगाना बहुत मुश्किल है। राष्ट्रीय विष विज्ञान कार्यक्रम के पास 80 हजार से ज्यादा रसायन पंजीकृत हैं। मौजूदा नियमन प्रणालियों के तहत रसायनों को बहुत कम जांच के साथ बाजार में उतार लिया जाता है और नुकसान साबित होने के बाद ही वापस लिया जाता है। और इसमें दशकों लग सकते हैं। अनुसंधानकर्ता इसे चिंता की घड़ी बताते हैं और वैश्विक प्रजनन स्वास्थ्य पर अभी और भविष्य में अधिक जन जागरुकता की जरूरत बताते हैं।