साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को पूरे देश में ‘विकास पुरुष’ के रूप में पेश किया. इसका फायदा भी मोदी और भारतीय जनता पार्टी को हुआ.
भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज पर तरजीह देते हुए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया और इसके बाद भारतीय राजनीति ने जर्बदस्त तरीके से करवट ली. 1984 के बाद पहली बार किसी सियासी दल को आम चुनाव में अपने दम पर बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद ताजपोशी हुई.
सोशल मीडिया पर जर्बदस्त प्रचार
समाजवादी पार्टी में चल रहे रार को कुछ इसी तरीके से भी देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर जर्बदस्त प्रचार और लुभावनी योजनाओं के जरिए अखिलेश भी खुद की ऐसी छवि बनाने में जुटे हैं.
एक ऐसा युवा मुख्यमंत्री जो यूपी की दलगत राजनीति से उलट विकास की राजनीति करना चाहता है. उसका एकमात्र एजेंडा विकास ही है. यहां तक कि प्रदेश के विकास के लिए खुद की पार्टी के सुप्रीमो और अपने पिता से भी उलझने से बाज नहीं आता है.
इस युवा नेता को आम लोगों की नब्ज पर गहरी पकड़ है. समाजवादी पार्टी से विद्रोह करने के बाद इस नेता की पैठ सभी जातियों में बढ़ी है. खासकर उस प्रदेश में जहां की राजनीति का आधार ही जातिगत वोटबैंक है.
नरेंद्र मोदी की तरह ही अखिलेश की इस छवि को गढ़ने में सोशल मीडिया की टीम की अहम भूमिका है. वर्चुअल वर्ल्ड में यह छवि बेहद मायने रखती है. लैपटॉप स्कीम से लेकर लखनऊ में मेट्रो रेल का उद्घाटन भी इसी मुहिम का हिस्सा है.
दंगों के बाद खुद को ऐसे बदला
इतिहास के पन्नों को जरा पीछ पलटें तो साल 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को नई दिशा दी थी. मुलायम ने समाजवादी पार्टी का जो वोटबैंक तैयार किया, यादवों और दलितों की अहम भागीदारी थी.
इस पार्टी को दलितों का भी साथ मिला था. इसके बाद मुलायम यूपी की राजनीति में लगातार आगे बढ़ते गए. यहां तक कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे में इसमें सेंध तो जरूर लगी, लेकिन यह दरक नहीं सका.
नरेंद्र मोदी ने भी गुजरात दंगे के बाद प्रदेश में विकास को नई रफ्तार दी. खुद को विकास पुरुष के रूप में सामने रखा और एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाई.
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद भी अखिलेश भी कुछ ऐसी ही राह पर चल पड़े. कई लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान कर अखिलेश ने खुद की सकारात्मक छवि बनाई है. जनता के बीच यही संदेश गया कि उनकी सरकार का पूरा फोकस अब केवल विकास पर ही है.
युवाओं से जोड़ने के लिए नई पहल
इसके अलावा भी मोदी और अखिलेश के बीच कुछ समानता है. मसलन, प्रधानमंत्री मोदी ‘मन की बात’ के जरिए आम लोगों से सीधे संवाद करते हैं. मोदी अपने टि्वटर और फेसबुक पेज पर लगातार अपने प्रशंसकों से रूबरू होते रहते हैं.
ठीक उसी तरह अखिलेश ने भी ‘टॉक टू योर सीएम’ से फेसबुक पर कैंपेन शुरू किया. इसका साफ मकसद युवाओं से खुद को जोड़ना था.
इस तरह नरेंद्र मोदी ने इस तरह के कदम उठाकर भारतीय राजनीति में नई क्रांति ला दी. ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या अखिलेश भी यूपी की राजनीति में कुछ ऐसा ही परिवर्तन ला पाएंगे?